पाती : कविता – सतीश सिंह

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पाती

मोबाईल और इंटरनेटletters

के ज़माने में

 भले ही

हमें नहीं याद आती है

पाती

 

पर आज़ भी

विस्तृत फ़लक

सहेजे-समेटे है

इसका जीवन-संसार

 

इसके जीवन-संसार में

हमारा जीवन

कभी

 पहली बारिश के बाद

सोंधी-सोंधी

 मिट्टी की ख़ुशबू

 की तरह

फ़िज़ा में रच-बस जाता है

तो कभी

नदी के

दो किनारों की तरह

एक-दूसरे से जुड़कर भी

अलग-अलग रहने के लिए

मज़बूर हो जाता है

 

 कभी

बर्तन से छिटक कर

तड़पती मीन

की तरह

अंतिम सांसे

गिनता रहता है

 

 

 

तो कभी

अचानक!

ढेर सारी

खुशियाँ

भर देता है

हमारे जीवन में

तो कभी

पहाड़ सा गम

 

हर पल

सपने की तरह

अच्छी-बुरी

सम्भावनाओं से

युक्त रहता है

पाती का ज़ीवन-संसार

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