आस्था का एक ही नाम है ओरछा

0
169

मनोज कुमार
ओरछा मध्यप्रदेश का गौरव है. धार्मिक दृष्टि से यह जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही पर्यटन और पुरातत्व की दृष्टि से इस स्थान की साख अलग सी है. दुनिया में शायद इकलौता नगर होगा जिसे राजा राम की नगरी कहा जाता है. दशकों से भगवान राम को सशस्त्र जवान प्रतिदिन अनुशासन के साथ सलामी देते हैं. यह अद्भुत है, अविश्वसीनय है और रोमांचक भी. लोक परम्परा का गवाह भगवान राम का मंदिर सुख-दुख में बुंदेलखंड के लोगों का साक्षी बनता है. लोगों को यह विश्वास है कि भगवान राम के चरणों में जाने के बाद उनका हर कार्य मंगल मंगल हो जाता है. शादी-ब्याहो हो या गृह प्रवेश, नए सदस्यों का घर में आगमन हो या किसी और खुशी का पल, पहला आमंत्रण भगवान श्रीराम के चरणों में. आस्था और धर्म की यह परम्परा जाने कब से चली आ रही है. उल्लेखनीय बात यह है कि ओरछा में ब्याह के लिए किसी मुर्हूत की जरूरत नहीं. जब आ गए तभी ब्याह की रस्म पूरी हो जाती है. सच भी है भगवान श्रीराम के दरबार में किसे और क्यों मुर्हूत की जरूरत होगी. इस आस्था का एक ही नाम है ओरछा.उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश की पहचान एक उत्सवधर्मी राज्य के रूप में है. यह होना भी स्वाभाविक है क्योंकि जब मध्यप्रदेश देश का ह्दय प्रदेश है तो सांस्कृतिक गमक दिल की धडक़न को स्वस्थ्य बनाता है. और बात तब बनती है जब उत्सव औपचारिक ना होकर गमक से भरा हो. उत्सव की गूंज दूर और देर तक सुनाई दे. उत्सव वह हो, जिसमें जन की सहभागिता हो. अपने जन्म से लेकर अब तक मध्यप्रदेश में विविध उत्सव होते रहे हैं. बीते एक वर्ष में उत्सव औपचारिक ना होकर उत्सव की गमक देखने को मिल रही है. बात चाहें आप नर्मदा उत्सव की करें, खजुराहो डांस फेस्टिवल की करें या बात नमस्ते ओरछा की करें. यही नहीं, सालों से बंद पड़े राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय सम्मान समारोह को पूर्ण भव्यता के साथ आरंभ कर मध्यप्रदेश ने सांस्कृतिक चेतना को लौटाने की कोशिश की है तो उसका देश-दुनिया में वेलकम हो रहा है.

आइफा अवार्ड हो या नमस्ते ओरछा का आयोजन मध्यप्रदेश की संस्कृति, पुरात्तत्व एवं पर्यटन की श्रीवृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित होगा. नमस्ते ओरछा के बहाने थोड़ा तलाश कर लें मध्यप्रदेश की उस विरासत को जो समूचे प्रदेशवासियों को गर्व से भर देती है.बुन्देला राजाओं की प्राचीन राजधानी रही है ओरछा। ओरछा की स्थापना वर्ष 1501 में रूद्रप्रताप सिंह ने की थी। उन्होंने ओरछा में मंदिरों, भवनों और दुर्गों का निर्माण कराया। रामराजा मंदिर को ओरछा नरेश भारतीचंद्र ने 1532 ई. में बनवाया था। इसे नौ चौकिया भवन भी कहते है। ई. 1574 में श्री रामराजा भगवान इस महल में विराजमान हुए। इसी समय से यह रामराजा मंदिर कहलाने लगा। पूर्व में यह महल था। पर्यटन नगरी ओरछा में मौजूद करीब 54 स्मारकों में से प्रथम श्रेणी के ऐतिहासिक स्मारक राजा महल, जहाँगीर महल, लक्ष्मी मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, राय प्रवीण महल एवं बेतवा नदी किनारे स्थित बुंदेला राजाओं की छतरियों सहित करीब 15 ऐतिहासिक इमारतों की एक बड़ी श्रृंखला है. ये सब अपने अपने वैभव के गीत गाते हैं. यकीन ही नहीं होता कि हम इतने धनवान हैं कि कोई भी आकर देशी-परेदसी हम पर मोहित हो जाए. ओरछा का जादू सब पर चलता है. मध्यप्रदेश सरकार ने ओरछा को देश-दुनिया में नए स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए नमस्ते ओरछा महोत्सव मनाने की पहल की है। नमस्ते ओरछा महोत्सव से पहले रामराजा की नगरी ओरछा नए रंग में रंगी होगी। सरकार ने श्री रामराजा मंदिर के लिए एक नया मास्टर प्लान तैयार किया है, जिससे मंदिर की भव्यता अलग ही दिखाई देगी। राज्य सरकार ने जब ओरछा में महोत्सव की योजना तैयार की तो सबसे पहले यहाँ स्थित प्राचीन स्मारकों को संवारने और उन्हें आकर्षक बनाने के लिए विशेष प्रयास किया है. राज्य सरकार के इन प्रयासों से ओरछा के प्राचीन स्मारक नये स्वरूप में पर्यटकों के सामने आएंगे। महोत्सव के दौरान जहांगीर महल की दीवारें ओरछा के इतिहास की कथा-गाथा सुनाएंगी. इसके लिए ओरछा की ऐतिहासिक गाथा थ्री-डी मेपिंग की कल्पना की गई है.एक साल में मध्यप्रदेश सुप्त पड़ी सांस्कृतिक धडक़न को राज्य सरकार ने जैसे वाइबे्रट कर दिया है. बात आप खजुराहो डांस फेस्टिवल की करें तो इस बार के आयोजन में एक अलग सी गमक देखने को मिली. भारत भवन का गौरव लौटता हुआ दिखाई देता है तो वर्षों से कागज में बंद सम्मानों को उनकी भव्यता और गरिमा के साथ वाजिब हकदारों को नवाजने का सिलसिला आरंभ हुआ. लता मंगेश्कर राष्ट्रीय सम्मान, किशोर कुमार राष्ट्रीय सम्मान एवं कवि प्रदीप राष्ट्रीय सम्मान से नवाचार का सिलसिला आरंभ हो चुका है. मां नर्मदा की जयंती को औपचारिक होने से रोक कर जनसहभागिता का उत्सव बनाया गया है. निमाड़ उत्सव से लेकर प्रदेश में सांस्कृतिक हलचल तेज हो चुका है. विश्व विख्यात महाकाल के लिए 3सौ करोड़ का बजट सरकार ने आवंटित कर धर्म, आस्था और आध्यात्म का ऐसा सुंदर केन्द्र विकसित करने की दिशा में पहल की गई है जिसकी जरूरत वर्षों से महसूस की जा रही थी. मध्यप्रदेश खूबसूरत है, इस पर कोई संदेह नहीं लेकिन इस खूबसूरती को पर्यटन के रूप में विकसित कर मध्यप्रदेश को पर्यटन नक्शे में उभारने की सुनियोजित पहल की जरूरत थी. इसका माकूल स्वरूप धीरे-धीरे आकार ले रहा है. फिल्म पर्यटन को इस योजना का एक हिस्सा मानना चाहिए. निश्चित रूप से जो कुछ प्रयास हो रहे हैं, वह सांस्कृतिक स्पंदन का गुंजन सुनाई दे रहा है.

Previous articleहमारी सूरत ही नहीं, सीरत भी बदलें
Next articleराम रावण युद्ध से मनुष्यों को परस्पर व्यवहार की शिक्षा मिलती है
मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here