मुठभेड़ फर्जी या तर्क फर्जी ?

simiभोपाल की मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों को लेकर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई है। एक-दो प्रमुख राजनीतिक दलों के सिवाय सभी दल उस मुठभेड़ को फर्जी बताने पर तुल पड़े हैं। सारे भाजपा-विरोधी नेताओं के बयान पढ़ने पर ऐसा लगता है कि मप्र सरकार ने गजब का षडयंत्र किया है। यदि नेताओं के बयानों में छिपे अर्थों को समझने की कोशिश की जाए तो हम इस नतीजे पर पहुंचेगे कि मप्र की सरकार ने इन आठों आतंकवादियों से मिलकर यह साजिश रची है। सरकार ने इधर आतंकवादियों से कहा होगा कि तुम भागने की तैयारी करो। हम पूरी अनदेखी करेंगे। हम तुम्हें नई पेंट, कमीजें, घड़ियां और नए जूते भी मुहय्या करवा देंगे ताकि जब तुम जेल से फरार होकर शहर में जाओ तो कैदियों-जैसे नहीं लगोगे। उधर पुलिस को सरकार ने पहले से सावधान कर दिया होगा कि सावधान रहो। दिवाली के दिन या रात को कोई भी घटना घट सकती है। तुमको पूरी छूट है। जो अपराधी दिख जाएं, उसे सीधा ऊपर पहुंचा दो।

विरोधियों का कहना है कि सरकार ने यह नाटक इसलिए रचा है कि वह अपनी बहादुरी और मुस्तैदी का सिक्का जनता पर जमाना चाहती थी।  पहले ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और अब यह फर्जी मुठभेड़ ! सरकार ने सिर्फ मुसलमान कैदियों को ही अपना शिकार क्यों बनाया? उसने कुछ हिंदू कैदियों से भी जेल क्यों नहीं तुड़वाई? इसीलिए कि भाजपा वोटो का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना चाहती है।

ऐसे तर्क देकर देश के ये नेता अपने तर्कों को फर्जी सिद्ध कर रहे हैं। फर्जी तर्क देने वाले ये नेता यह नहीं जानते कि वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। वे हिंदू वोट बैंक को मजबूत बना रहे हैं। उन्होंने अपने दिमाग ताक पर रख दिए हैं। उन्होंने इन हत्यारे आतंकियों पर रो-रोकर अपने कपड़े गीले कर लिये हैं लेकिन उस बहादुर शहीद हवलदार रमाशंकर यादव के लिए उनके पास एक शब्द भी नहीं है।

पूरा देश हतप्रभ है। वह इन नेताओं को लानत मार रहा है। किसी भी घटना पर सवाल पूछने का हक हर नागरिक को है लेकिन आप नेता है और आपको सवाल पूछने का भी तमीज नहीं है? मजहब की दुहाई देकर सांप्रदायिकता का जहर तो आप फैला रहे हैं। आतंकी या मुजरिम कोई भी हो, उसे कठोरतम दंड मिलना ही चाहिए। आतंकियों के हाथ में हथियार थे या पत्थर, इससे क्या फर्क पड़ता है? उन्होंने हत्या की और जेल तोड़ी और फिर आत्म-समर्पण नहीं किया- यही काफी है, उन्हें मृत्यु-दंड देने के लिए ! जो खूंखार जानवरों की तरह बर्ताव करते हैं, उनके मानवीय अधिकार कैसे?

6 COMMENTS

  1. एक बार मेरे यहाँ चोरी हो गई , मैंने थाने में रिपोर्ट लिखाई और अपेक्षा कर रहा था कि वे कोई तहकीकात करेंगे. लेकिन थानेदार मेरे से यही पूछता रहा की इतने घर है, लेकिन चोर ने आपके यहां क्यों चोरी की ? इसका जवाब तो चोरो के पास था, मैं क्या जवाब देता. अब कोई पूछता है कि वे आठो एक साथ क्यों थे, इसका जवाब हम कैसे दे सकते है. अस्तु तर्क फर्जी है.

  2. मैं नेता नहीं हूँ,एक आम नागरिक हूँ ,पर कुछ प्रश्न मेरे मन में भी उठ रहे हैं. क्या जेल में विचाराधीन कैदी जीन्स और स्पोर्ट्स शूज में रखे जाते हैं? क्या सभी आठ एक ही बैरक में थे? अगर हाँ,तो ऐसा क्यों किया गया था,जबकि उसमे से शायद तीन या चार या सात पहले भी भाग चुके थे?क्या जेल से निकलते समय उनके पास कोई हथियार था?क्या किसीने उन्हें जेल से बाहर निकलने पर हथियार मुहैया कराया था? क्या उस अधिकतम सुरक्षा वाले जेल का ताला टूथ पेस्ट से चाभी बनाकर खोल जा सकता था?एक अभियंता होने के नाते मैं यह कह सकता हूँ कि ऐसा किसी साधारण ताले के लिए भी संभव नहीं है,फिर आई.एस. ओ. प्रमाणित जेल के ताले को इस तरह कैसे खोला जा सकता था? प्रश्न बहुत से हैं,पर एक केवल एक दो प्रश्न और.क्या वे इतने अनाड़ी थे कि सब एक ही साथ एक ही दिशा में भाग रहे थे?आठ घंटे के दौरान वे कितनी दूरी तय कर पाए थे?
    डॉक्टर वैदिक एक थीसिस लिखने वाले से यह उम्मीद की जाती है कि उसके पास कुछ दिमाग तो अवश्य होगा,पर प्रशासन इस सुनियोजित परियोजना को न समझने का ढोंग करके आपने केवल मानसिक दिवालियापन दिखलाया है. इसपूरी घटना से एक साफ़ सन्देश निकल कर आया है कि हम इस तरह का इनकाउंटर करेंगे.कोई हमारा क्या बिगाड़ लेगा?

    • भाई सिंह साहब, 1) जेल से भागने और धरे जाने के बीच 8 घण्टे का फासला था. इस बीच जेल के बाहर उनके किसी सहयोगी से उन्हें जीन्स और स्पोर्ट्स शूज मिल सकता है. 2) सर्वाधिक सुरक्षित जेल में भी किसी गुप्त उपकरण और हथियार से जेल तोड़ने की घटनाएं होती रही है. यह कहना की जेल में कड़ी सुरक्षा थी इसलिए ताला नही तोड़ा जा सकता यह लँगड़ा तर्क है. मैं शातिर नही हूँ लेकिन मात्र आलपिन से मैं सामान्य ताला खोल सकता हूँ. किसी साबुन या पेष्ट पर चाभी की आकृति उकेर कर डुप्लीकेट चाभी बनवा सकता हूँ. जिस आतंकी संगठन को विदेशी सरकार का समर्थन मिलता हो उसके लिए ताला तोड़ने का प्रबंधन नामुमकिन नही है. 3) जेल से भागते समय उन्होंने एक प्रहरी की हत्या की जिसमे स्टील प्लेट को धारधार बना गला रेता गया है. अब उनके पास और कोई हथियार उस वक्त था या बाद में उनके किसी सहयोगी ने दिया यह तो आपको उन आठो से ही पूछना होगा. 4) मान लीजिए उन आठो को एक बैरक में रखा गया था या अलग अलग, इस बात का ताल्लुक जेल के प्रबंधन से हो सकता है. लेकिन इस तर्क से यह कैसे सिद्ध हो सकता है कि मुठभेड़ फर्जी थी.

      अस्तु आपके तर्क ही फर्जी है.

      • मैंने इसी सन्दर्भ में एक अन्य आलेख पर भी टिपणी दी है. अभी भी यदि आपलोगों की समझ में नहीं आया,तो मैं साफ़ साफ़ कह रहा हूँ कि इस पूरी घटना को प्रशासन द्वारा एक सुनयोजित परियोजना के अंदर अंजाम दिया गया है.हवलदार को बलि का बकरा बनाया गया है.अगर इस दृष्टिकोण से देखेंगे,तो कही संदेह की गुंजायस नहीं रहेगी.यही बात अदालत में सिद्ध होगी.हो सकता है कि कुछ लोगों को सजा भी हो जायेगे,पर हो सकता है कि शक की गुंजायस में वे लोग बरी भी हो जाएँ.

    • दुष्ट भागते स्वयं अपनी मौत के मुंह में आ फंसे। काश, भगौड़े देर सवेर रमश सिंह जी का किवाड़ खटखटाते तो स्वयं सेवानिवृत्त अभियंता कोई जुगाड़ लगा उनकी सुरक्षा के लिए धातु का कोई कवच ही बना देते। देखता हूँ मन में उठते प्रश्नों ने रमश स्वयं सिंह जी के दिमाग पर गहरा आघात करते उन्हें इस कदर बौखला दिया है कि वे उत्तर मिलने से पहले ही पागलों का सा व्यवहार करते वैदिक जी द्वारा पीएचडी की थीसिस में उनका मानसिक दिवालियापन देखते हैं। ऐसा करते रमश सिंह जी पूर्णतया निश्चिन्त है कि हिंदुत्व के आचरण का पालन करते कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ेगा। भगवान् जो करता है ठीक करता है। चिरकाल से कुम्भकरण की नींद सो रहे भारतीय अब जाग गए हैं और राष्ट्रवादी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में संगठित वे रामलीला के धोबी की नहीं सुनेगे!

  3. एक नेता आत्महत्या करने वाले को शहीद बना कर उस के परिवार को एक करोड़ की राशि अनुदान में दे रहे हैं – इस का सीधा अर्थ है कि वे आत्महत्या को ठीक मान रहे हैं – बलिहारी इन नेताओं पर

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