गिरना बर्लिन की दीवार का

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-अनिल गुप्ता-

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भारत और बांग्लादेश के बीच हुए लेंड बाउंड्री एग्रीमेंट को ऐतेहासिक बताते हुए उसकी तुलना बर्लिन की दीवार के गिरने से की है!अगर याद हो तो बर्लिन की दीवार के गिरने से पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ था जो द्वित्तीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर बड़े देशों के आपसी समझौते के तहत जर्मनी को दो भागों में बांटने के कारण दो देशों में बाँट गया था.
कुछ कुछ ऐसा ही भारत के साथ भी हुआ था.द्वित्तीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात ब्रिटेन की ताकत काफी कमजोर हो चुकी थी और आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के मुकदमों के कारण अंग्रेज़ों की भारतीय सेना की निष्ठां भी ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध हो गयी थी तथा मुंबई के नौसेना विद्रोह ने अंग्रेज़ों को १८५७ के मंजर की याद ताज़ा कर दी थी.और उन्होंने सत्ता के ‘हस्तांतरण’ का फैसला कर लिया लेकिन उसके साथ ही पाकिस्तान के जरिये अपनी क्षेत्र में पकड़ बनाये रखने के लिए देश के विभाजन का षड्यंत्र भी कर लिया और इस योजना को अंजाम देने के लिए जवाहरलाल नेहरू जी के पुराने मित्र माउंटबेटन को वाइसराय बना दिया तथा उसकी पत्नी के माध्यम से नेहरू जी को भी अपने षड्यंत्र में शामिल कर लिया.माउंटबेटन के कहने पर ही नेहरू जी कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गए जबकि उस समय रा.स्व.स. के प्रमुख श्री गुरूजी ( गोलवलकर जी) ने वक्तव्य जारी करके इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में न ले जाने की सलाह दी थी.और ये मुद्दा आज भी नासूर बना हुआ है!
आज लगभग सात दशक बीत जाने के बाद भी क्या इस क्षेत्र के लोगों की समयायें समाप्त हुई?.जिस इस्लामी जन्नत की उम्मीद के साथ लाखों लोगों का खून बहाकर और करोड़ों लोगों को अपने घरों से विस्थापित कराकर जो ‘जन्नत’ प्राप्त हुई क्या वहां के लोग आज खुश हैं? क्या शेष क्षेत्र के लोगों की समस्याएं समाप्त हो गयीं? इस प्रश्न का उत्तर शायद ही कोई ‘हाँ’ में दे सकेगा.
आज इस क्षेत्र में एक हिंदुस्तान के स्थान पर तीन स्वतंत्र देश भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश हैं.और तीनों में ही लोगों की बुनियादी समस्याएं मौजूद हैं.जिन में से बहुत सी समस्याएं विभाजन की उस त्रासदी से जुडी हैं.भारतीय जनसंघ प्रारम्भ से ही ‘अखंड भारत’ का नारा लगाता रहा है.स्व.राम मनोहर लोहिया जी और उनके शिष्य मुलायम सिंह यादव जी भी तीनों देशों को मिलाकर एक फेडरेशन बनाने के पक्षधर रहे हैं.लेकिन इसके लिए शुरुआत कैसे हो?
प्र.म. मोदीजी ने भारत बांग्लादेश के सीमा समझौते को ‘बर्लिन की दीवार के ढहने’ जैसा बताकर एक दूरगामी सन्देश देने का प्रयास किया है.क्या एक फेडरेशन बनाने से कश्मीर की समस्या का हल नहीं हो जायेगा? इससे कश्मीर सभी का बन जायेगा.क्षेत्र के देशों को जो खरबों रुपये एक दुसरे के विरुद्ध सेना तैनात करने में और रक्षात्मक कार्यों में खर्च करना पड़ता है वह देश के करोड़ों गरीब लोगों को खुशहाली के मार्ग पर ले जाने में खर्च हो सकेंगे.
जेल की कोठरी से मरहूम ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने जो अपनी पुस्तक लिखी थी उसमे दो बातों पर विशेष तौर पर लिखा था. एक, बड़े देशों द्वारा अपने हितसाधन के लिए तख्ता पलट को (कूपजेमोनिस्टिक) एक हथियार के रूप में प्रयोग किये जाने के खतरे से बचने का, और दो, यह कि यद्यपि पाकिस्तान एक इस्लामी देश है लेकिन इस क्षेत्र का इस्लाम अन्य देशों से भिन्न है क्योंकि इस क्षेत्र में बुद्ध और अशोक की शांति की विरासत है.
क्या पाकिस्तान के हुक्मराँ और वहां के सेनानायक इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेंगे और इस क्षेत्र को खुशहाली का आदर्श नमूना बनाने के लिए इस क्षेत्र की ‘बर्लिन की दीवार’ गिराने के लिए आगे आएंगे!

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