दूर की कौड़ी है मध्यावधि चुनाव

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डॉ. आशीष वशिष्ठ

कोयला घोटाले को लेकर संसद तक हंगामे का माहौल कायम है। भाजपा पीएम के इस्तीफे की मांग पर अड़ी है और सरकार खुलकर फ्रंटफुट पर खेल रही है। इस आपा-धापी और शोर-शराबे के बीच सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह मोर्चे की कवायद में जोर-शोर से जुटे हैं। मुलायम सिंह पिछले कई महीनों से मध्यावधि चुनाव का सुर अलाप रहे हैं और उनके सुर में ममता बनर्जी, जगमोहन रेड्डी और बीजू पटनायक जैसे नेता भी सुर मिला रहे हैं। लेकिन देश के दो बड़े राष्ट्रींय दल कांग्रेस और भाजपा की कार्यशैली और व्यवहार से रंच मात्र का भी यह आभास नहीं हो रहा है कि देश मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। सर्वे और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान राजनीतिक माहौल यूपीए के पक्ष में नहीं है। सर्वे और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान राजनीतिक माहौल यूपीए के पक्ष में नहीं है। एक के बाद एक सामने आ रहे घोटालों और अन्ना एवं रामदेव के आंदोलन ने यूपीए सरकार के सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस की फिजां बिगाड़ दी है। राज्यों में भी कांग्रेस औश्र यूपीए के घटक दल कमजोर स्थिति में हैं। संभावित खतरे को भांपते हुए कांग्रेस मध्यावधि चुनाव का खतरा कतई नहीं उठाएगी। वहीं भाजपा की हालत भी पतली है क्योंकि अपने बलबूते पर वो सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। फिलवक्त राजनीतिक माहौल में उठे गुबार में मुलायम, ममता जैसे क्षत्रप चाहे जितना मध्यावधि चुनाव का हल्ला मचा रहे हों लेकिन कांग्रेस-भाजपा के खेमे की सुस्ती से यह तय हो गया है कि देश में मध्यावधि चुनाव होने के कोई आसार नहीं है।

समस्याओं और घोटालों से घिरी केन्द्र की यूपीए सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा है। कोल गेट घोटाले में मचे बवाल ने सरकार को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। बदले राजनीतिक वातावरण में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को तीसरे मोर्च के गठन की आस को पुन: जगा दिया है। मध्यावधि चुनाव को लेकर सबसे अधिक बेचैनी मुलायम और ममता को ही है। लेकिन जिस तेजी से यूपी में समाजवादी पार्टी और पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस की लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है उससे अंदर ही अंदर कांग्रेस और भाजपा खुश है। यूपी में सपा की नाकामियों और गिरती साख का सीधा लाभ भाजपा को मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस आम चुनावों में प्रियंका को यूपी से चुनाव मैदान में उतारने की योजना पर काम कर रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों को फिलवक्त राजनीतिक हवाएं अपने पक्ष में बहती नहीं लग रही हैं। कांग्रेस-भाजपा का पूरा ध्यान देश को सर्वाधिक 80 सांसद देने वाले उत्तर प्रदेश पर टिका है, दोनों दल यूपी से अधिक से अधिक सीटें जीतकर केन्द्र की सत्ता हथियाना चाहते हैं। फिलहाल हिन्दी पट्टïी के सबसे बड़े राज्य यूपी में भाजपा और कांग्रेस क्रमश: तीसरे और चौथे पायदान पर खड़े हैं।

वर्ष 2012 में यूपी, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोआ और मणिपुर में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं रहे। मणिपुर और उत्तराखण्ड के अलावा यूपी, पंजाब और गोआ में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। इन चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए भी बड़ी चिंता का कारण है। 2012 के विधानसभा चुनावों में जहां कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिरा है वहीं भाजपा विधायकों की संख्याबल भी कम हुआ है। वर्ष के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना शेष हैं। खास बात यह है कि दोनों प्रदेशों में भाजपा नीत सरकार है। जिस तरह पिछले कई महीनों से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा का एक धड़ा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रचाारित कर रहा है। उसको देखते हुए भाजपा में मोदी विरोधी धड़ा भी गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे जानने का उतना ही उत्सुक होगा जितना कि कांग्रेस का खेमा। 2011 में असोम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के चुनाव नतीजे भी कांग्रेस और भाजपा के लिए मिश्रित फलदायी साबित हुए थे। राज्यों में क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव और सत्ता में भागीदारी ने राष्टï्रीय दलों विशेषकर कांग्रेस और भाजपा की चिंता बढ़ा रखी है। वहीं वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़, जम्मू एवं कशमीर, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, राजस्थान, त्रिपुरा और दिल्ली में विधानसभा चुनाव भाजपा, कांग्रेस के साथ कई क्षेत्रीय दलों की भी राजनीतिक हैसियत का खुलासा हो जाएगा। अंदर ही अंदर राजनीतिक दल तेजी से बदलते राजनीतिक वातावरण और घटनाक्रम पर नजरें गढ़ाएं तो हैं लेकिन दिल से कोई भी मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं है। मध्यावधि चुनाव की सबसे अधिक बेचैनी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को है। मुलायम और ममता को लगता है कि जितनी जल्दी लोकसभा के मध्यावधि चुनाव होंगे, उन्हें उतना फायदा होगा।

अभी हाल ही में आम चुनाव को लेकर हुए सर्वे में यह दावा किया गया है कि अगर अभी देश में आम चुनाव हो गए तो कांग्रेस को भारी नुकसान होगा और यूपीए की सरकार चली जाएगी और कांग्रेस के बजाय बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी हो जाएगी। हालांकि अपने बूते सरकार वह भी नहीं बना पाएगी। केन्द्र की कुर्सी हासिल करने के लिए उसे कई समीकरणों को साधना होगा। जाहिर है अगली सरकार में अन्य पार्टियों की भूमिका बहुत बड़ी होगी। इन दिनों प्रधानमंत्री बनने का सपना पाल रहे हैं मुलायम सिंह यादव सर्वे से अत्यधिक उत्साहित है। सपा और तृणमूल कांग्रेस के अलावा आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल भी मध्यावधि चुनाव के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। लोकसभा चुनावों में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त है। इस बीच देश की राजनीति कई करवटें ले सकती हैं। लगभग हर संसद सत्र से पहले या सत्र के दौरान जिस तरह के घोटाले सामने आ रहे हैं, उससे यह भी संभव है कि यूपीए में ही दरार पड़ जाए और कुछ दल अलग रास्ता अख्तियार कर लें। अगर ऐसा हुआ तो डूबते जहाज से सबसे पहले एनसीपी बाहर आएगी। ऐसा होने पर सबसे बड़ा दावा शरद पवार का होगा। क्योंकि पवार भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें गड़ाए हुए हैं। अपनी आकांक्षा पूरी करने के लिए पवार कुछ भी कर सकते हैं।

असलियत यह भी है कि ज्यादातर सांसद जल्द चुनाव की बजाय अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं। कांग्रेस सहयोगी दलों को चाहे कितना भी डराए पर तृणमूल कांग्रेस जैसे सहयोगी दल चुनाव को लेकर कतई फिक्रमंद नहीं हैं। द्रमुक जैसे सहयोगी अभी चुनाव के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस की ज्यादा हां में हां मिलाते हैं। वजह यह है कि तमिलनाडु में अभी जयललिता की अन्नाद्रमुक के आगे द्रमुक कमजोर पड़ रही है। यहां तक एनसीपी नेता शरद पवार जैसे सहयोगिों की बात है तो वो स्थिति को भांपकर ही कदम उठाएंगे। बसपा नेता मायावती अभी अपने लिए बहुत अच्दे हालात नहीं देख रही हैं। भाजपा नेता भी चाहे यह दावा करते घूम रहे हों कि उनकी पार्टी और साथी दल चुनाव के लिए तैयार हैं, लेकिन भाजपा और एनडीए के घटक दलों की तैयारी को देखकर यह आभास नहीं होता है कि वो मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार हैं। जहां तक कांग्रेस की बात है वह अभी चुनाव कराने का जोखिम नहीं लेगी। पार्टी के स्तर पर और स्वतंत्र तरीके से जितने भी सर्वे हुए हैं, सब में यही आ रहा है कि अगर अभी चुनाव होते हैं तो यूपीए से बेहतर एनडीए का प्रदर्शन रहेगा। इसलिए यह तय हो गया है दूर-दूर तक मध्यावधि चुनाव की कहीं कोई संभावना नहीं है ये अलग बात है कि माहौल गर्माने और विरोधियों को खेल बिगाडऩे के लिए मुलायम, ममता जैसे क्षत्रप चुनावी चूल्हे में फूंके मारकर धुआं फैलाते रहेंगे लेकिन उनकी मध्यावधि चुनाव की खिचड़ी खाने की तमन्ना पूरी नहीं होगी।

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