कांग्रेस का किसान प्रेम, दिखावा या हक़ीकत

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-नीतेश राय –

congress and kisaan

एक समय था जब कांग्रेस अपने चुनावी सभाओं में मतदाताओं को दो बैलों की जोड़ी पर मुहर लगाने की अपील करती थी | उस समय पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस किसानों की सबसे बड़ी हिमायती पार्टी थी | इसके बाद गाय व बछड़े की जोड़ी को लेकर इंदिरा गाँधी मतदाताओं के मध्य आम चुनाव में अपना विचार रखा | इन सभी अवसरों पर किसानों ने कांग्रेस का भरपूर साथ दिया | आज जब फिर कांग्रेस 2014 आम सभा चुनाव के बाद अपना जनाधार लगातार खोती जा रही है ,तब उसे किसानों में अपना भविष्य दिखाई दे रहा है |इस समय भारत में किसान कई अहम समस्याओं से जूझ रहे है |इन्ही समस्याओं में से एक भूमि अधिग्रहण बिल 2014 है |भूमि अधिग्रहण बिल ने सरकार के 11 महीनों के कार्यकाल में पहली बार विपक्ष को एक मौका प्रदान किया है | इसी मौके को भुनाने के लिए कांग्रेस ने किसान रैली का आयोजन दिल्ली के रामलीला मैदान में किया था |कार्यक्रम में कांग्रेस का लक्ष्य उन सभी किसानों के दिलों तक पहुचने का था ,जो इस बिल से प्रभावित होंगे |इस रैली के द्वारा कांग्रेस ने राहुल गाँधी को मैदान में उतरा | यह पहला ऐसा मौका था जब राहुल गाँधी ने सीधे – सीधे नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया |इससे पहले भी बुंदेलखंड से लेकर भट्टा परसौल तक राहुल गाँधी किसानों के मामलों को उठाते रहे हैं |राहुल गाँधी ने जिस तरह रैली में सरकार को घेरने की कोशिश की , उससे साफ प्रतीत होता है कि जनता परिवार के विलय से कांग्रेस भी परेशान है |कांग्रेस को आशंका है कि कही भारतीय राजनीति में उसकी स्थिति पुनः वर्ष 1989 की न बन जाय |देश के विभिन्न क्षेत्रो से किसानों को जिस तरह चिलचिलाती धूप में रामलीला मैदान में इक्कठा किया गया ,उससे साफ परिलक्षित होता है कि कांग्रेस पुनः अपनी पुरानीं रणनीति दो बैलों की जोड़ी पर वापस आने को बेताब है |

भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर आयोजित इस रैली में कई तथ्य सामने आये | इसमें सबसे अहम बात यह सामने आई कि राहुल गाँधी व कांग्रेस के लिए आने वाला समय आसान नहीं है |जहा इस रैली के माध्यम से कांग्रेस अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रही थी तो वहीं कई राज्यों के नेता कांग्रेस नेतृत्व को अपनी ताकत का एहसास कराने में लगे थे |कांग्रेस का संगठनात्मक ढाचा लगातार कमजोर होता जा रहा है |इसका साफ उदहारण इस रैली में देखने को मिला |रैली में किसानों के सर पर बधा रंग – विरंगी साफा एक निश्चित क्षेत्र व नेता का बोध करा रहा था |कांग्रेस को इस समय इंदिरा गांधी जैसे नेतृत्वकर्ता की जरुरत है जिन्होंने 1979 में यह कारनामा कर दिखाया था | उस समय इंदिरा गाँधी के पास संगठन तो नहीं था लेकिन सत्ता थी | आज कांग्रेस के पास न तो मजबूत संगठन है न ही सत्ता |इन सब के बावजूद राहुल गाँधी का दो  महीने के बाद भारतीय राजनीति में वापसी शानदार रही |राहुल ने किसानों के एक अध्यापक की तरफ इस बिल से होने वाले लाभ व घाटे से अवगत कराया | राहुल गाँधी ने किसानों को यह बताने की भरसक कोशिश की कि किस तरह यह कानून उद्योगपतियों को लाभ पहुचायेगा | कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को मंच पर स्थान देकर यह साफ कर दिया कि पूरा कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ है|

यह पहला ऐसा मौका नहीं हैं जब कोई विपक्षी पार्टी किसानों की समस्या को लेकर हाय –तौबा मचा रही हो |इससे पहले भी ऐसी रैलियाँ आयोजित हुई है |इसके बाद भी किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ हैं |अगर राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यलय के आकड़ों पर ध्यान दे तो वर्ष 2008 में भारत में 16,196 किसानों ने आत्महत्या की थी |यह दौर यही नहीं थमा वर्ष 2009 में 17,368 किसानों ने आत्महत्या की |इस वीभत्स घटना का  आलम यह है कि वर्ष 1995 – 2011 के मध्य भारत में 17 वर्ष में  7 लाख ,50 हजार ,860 किसानों आत्महत्या की | अगर भारतीय राजनीति किसानों की इतनी हिमायती होती तो आकड़े आज इतने भयावह नहीं होते |केवल सत्ता प्राप्ति के लिए किसानों का प्रयोग जब तक बंद नहीं होगा तब तक इस समस्या से निज़ात नहीं मिल सकता |अगर कांग्रेस के द्वारा  आयोजित किसान रैली में मंच पर किसानों की सहभागिता को ध्यान दिया जाय तो संख्या न के बराबर थी | आने वाले समय में किसान बाहुल्य राज्य पंजाब ,बिहार व उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है |इन प्रदेशों के स्थानीय नेताओं को यह आशा थी कि मंच पर उन्हें स्थान मिलेगा | ये तीन ऐसे राज्य हैं जहाँ किसानों की भूमिका राजनीति में काफी अहम होती है |इन राज्यों में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है जहा कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही है | इसके बाद भी पंजाब के कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह दर्शक दीर्घा की शोभा बढ़ा रहे थे |आलम यह था कि अपने पसंदीदा नेताओं के भाषण सुनने के बाद श्रोताओं की भीड़ कार्यक्रम स्थल से बाहर जाती नजर आई |इसे कर्यक्रम संयोजन की विफलता कहे या फिर आपसी तालमेल  का आभाव ,लेकिन यह जरुर कहा जा सकता है कि कांग्रेस संगठन आज भी गुटबाजी से उबरने में कामयाब नहीं हुआ है |

आज यह बहुत जरुरी है कि किसानों की हितों की बात करने वाले इन राजनेताओं को अपने वक्तव्यों पर अमल करना होगा |किसानों को उनकी जमीन का पूरा –पूरा लाभ मिलाना चाहिए |आज भी कई ऐसे मामले हैं जहाँ पर किसानों को अभी तक उनकी भूमि के  अधिग्रहण का उचित मूल्य नहीं मिल पाया है | आज भी बिहार में बिहटा के किसानों को उनकी अधिकृत भूमि का उचित मूल्य नहीं मिल पाया है | बिहार की नई सरकार में कांग्रेस भी जदयू के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है |अतः इस रैली के बाद उन किसानों के भी आशाओं को पंख लगना लाज़मी है ,जिन्हें अब तक उनकी जमीन का उचित मूल्य नहीं मिल पाया है | किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार के साथ – साथ विपक्ष को भी कथनी व करनी के बीच के अंतर को मिटाना होगा | इन सभी समस्यायों का हल ढूंढे वगैर भारतीय किसानों के अच्छे दिनों की परिकल्पना नहीं की जा सकती |

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