फारूख अब्दुल्ला की यह विजय वास्तविक नहीं

मृत्युंजय दीक्षित

जम्मू कश्मीर की बहुचचर्चित श्रीनगर लोकसभा सीट का उपचुनाव आखिरकार नेशनल कांफ्रेंस के नेता व पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने 10 हजार वोटों से जीत ली है। विगत दिनों श्रीनगर का लोकसभा उपचुनाव किन भयावह परिस्थितियों के बीच संपनन हुआ और कश्मीर का अब्दुलला परिवार जिस प्रकार से पत्थरबाजों व अलगाववादियो के सहारे चुनावी विजय प्राप्त करने में सफल रहा यह पूरे देश ने देखा है। फारूख की जीत के बाद जो लोग ईवीएम मशीनों की गड़बड़ी को लेकर दुष्प्रचार कर रहे हैं उनको भी अब शांत होना चाहिये क्यांेकि विगत दिनों सिक्किम विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा की पराजय हुई है। यदि ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी हो रही होती तो भाजपा गठबंधन यह सीटें भी जीतने में कामयाब रहता । वास्तकिता यह है कि गड़बड़ी ईवीएम मशीनों में नहीं अपितु विरोधी दलों के नेताओं के दिमाग में हो गयी है।

भारतीय लोकतंत्र की गजब कहानी है। यहां पर जनता का निर्णय सर्वमान्य होता है तथा जनता जर्नादन जिसको आशीर्वाद देती है वह फिर उस क्षेत्र की जनता का अभिभावक हो जाता है। लेकिन श्रीनगर लोकसभा केे उपचुनाव जिन परिस्थितियों में पैदा हुए वह लोकतंत्र की मर्यादा के विपरीत था। श्रीनगर में लोतंत्र व चुनाव के नाम पर जो कुछ हुआ वह एक बदनुमा दाग है। देशद्रोही  ताकतें अपनी गंदी चालें चलने में कामयाब हो गयी है। फारूख अब्दुल्ला ने जो यह चुनाव जीता है वह केवल पत्थरबाजों के हमदर्द बनकर और अलगाववादियों की गोद में बैइकर जीता है। यह उनकी वास्तविक जीत नहीं हैं लेकिन इस दुर्भाग्यपूर्ण जीत के बाद भी उनका अहंकार और देशद्रोही पूर्ण रवैया जगजाहिर हो गया है। श्रीनगर लोकसभा का उपचुनाव एक विशेष परिस्थितियों मंें कराना पड़ गया और इसका लाभ देशद्रोही तत्वों ने उठा लिया है।

विगत सितंबर माह में तत्कालीन सांसद तारिक हमीद करा ने पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती की नीतियों से नाराज होकर लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ दे दिया था। जबकि वास्तविकता यह थी कि  उन्होंने भी अलगाववादियों और पत्थरबाजों के दबाव में ही इस्तीफा दिया था। आज श्रीनगर कराह रहा है। अभी फिलहाल वहां की परिस्थितियों में देश के दुश्मन ही हावी नजर आ रहे हैं।

श्रीनगर लोकसभा सीट का सर्वाधिक महतवपूर्ण और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव में महज 7.13 प्रतशत मत  ही पड़े जिसमें पुर्नमतदान के दौरान तो केवल मात्र 2 प्रतिशत ही मतदान हुआ। पहले दिन वहां पर जबर्दस्त हिंसा हुई और कम से कम 85 लोेग मारे गये तथा 20 से अधिक लोग घायल तक हो गये। नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुला ने कहा कि अपने 20 साल के राजनैतिक कैरियर में ऐसा कभी नहीं देखा। साथ ही राज्य सरकार व चुनाव आयोग को पूरी तरह से नाकाम बताया गया। जबकि वास्तविकता यह है कि श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव को  पूरी तरह से पटरी से उतारने के लिए अलगाववादी ताकतों और पत्थरबाजों ने पूरी ताकत लगा दी थी।

बडगाम जिले मेे चरार ए शरीफ के नजदीक पाखरपुरा में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने एक मतदान कंद्र पर धावा बोल दिया था और इमारत में तोड़फेाड़ भी की थी। सुरक्षाबलों ने भीड़ को तितर बितर कररने के लिए गोलियां चलायीं लेकिन भीड़ पर कोई असर नहीं हुआ। अलगाववादियों व पत्थरबाजों ने आमजनमानस से चुनाव बहिष्कार की अपील करवा डाली और हड़ताल करवा दी जिसका असर मतदान पर साफ दिखलायी पड़ा था। पुर्नमतदान के दौरान तो पत्थरबाजों ने और भी अधिक दरिंदगी का नमूना पेश किया। वहां से एक वीडियों वायरल हुआ है जिसमें पत्थरबाज ईवीएम मशीनों को लेकर जा रहे सीआरपीएफ के जवानों को लात घूसो से मार रहे थे औश्र मशीन को छीनने काप्रयास कर रहे थे। इस वीडियो के आने के बाद पूरे देशभर मे पत्थरबाजों के खिलाफ बेहद गुस्सा व नाराजगी भड़का हुआ है। सोशल मीडिया व टिवटर पर इन घटनाओं के खिलाफ आक्रोश साफ दिखलायी पड़ रहा है। क्रिकेटर गौतम गम्भीर सहित कइ जानी मानी हस्तियों से अपने विचार व गुस्से को सोशल मीडिया मंे पेश किया है। लेकिन यह बड़ दुर्भाग्य की बात रही कि यही अब्दुल्ला परिवार इस घटना की निंदा नहीं करता अपितु पत्थरबाजों के  हक में बोलता दिखलायी पड़ा।  दूसरी सबसे बड़ी खबर यह है कि हिजबुूल मुजाहिदीन ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें वह उन लोगों का समर्थन व शाबाशी दे रहा है जन लोगों ने चुनाव बहिष्कार किया।

श्रीनगर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में फारूख अब्दुल्ला समेत नौ प्रत्याशी चनाव मैदान में थे लेकिन उसमे  से  अधिकांश ने पुर्नमतदान के दौरान  बहिष्कार कर डाला। पूरे क्षेत्र में 12.61 लाख मतदाता है। जिसमें मात्र 89,883 लोग ही मत डालने आये थे।  यह कैसे संसाद चुने गये है। पत्थरबाज अपनी साजिश मंे सफल हो गये। भारत व श्रीनगर का दुर्भाग्य एक बार फिर जीत गया। अब्दुल्ला परिवार इससमय भारत विरोधी ताकतों के साथ जीत का जश्न मना रहा है। इस परिवार ने कभी देश के सैनिकों का सम्मान नहीं किया और नहीं उनकी श्शहादत पर कभी निंदा प्रस्ताव पास किया। फारूख अब्दुल्ला ने जीत के जश्न के बाद ही पीडीपी सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर डाली। अब्दुल्ला यह मांग करते समय यह बात भूल गये कि राज्यपाल का शासन एक प्रकार से केंद्र व सेना हा ही शासन होगा। चाहे जो हो अब्दुल्ला की यह जीत वास्तविक नहीं हैं। अब्दुल्ला के बोल पूरी तरह से पत्थरबाजों ओैर अलगाववादियो के हक में ही रहते हैं।

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