पाकिस्तान के गले में एफएटीएफ की फांस-अरविंद जयतिलक

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अरविंद जयतिलक

आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह का तमगा हासिल कर चुके पाकिस्तान के लिए यह शुभ संकेत नहीं है कि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) ने उसे ग्रे सूची में शामिल कर उसकी मुश्किलें बढ़ा दी है। हालांकि पाकिस्तान ने इस स्थिति से बचने के लिए एफएटीएफ को 26 सूत्रीय कार्रवाई योजना का प्रस्ताव दिया लेकिन उसे इसका कोई फायदा नहीं हुआ। उसने अपने प्रस्ताव में इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, लश्कर ए तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हक्कानी नेटवर्क, जमात-उद-दावा, फलाह-ए-इंसानियत और तालिबान से जुड़े लोगों की वित्तीय मदद रोकने की पेशकश के साथ इसे लागू करने के लिए 15 महीने का वक्त मांगा था लेकिन उसकी सभी चालें बेकार गयी। हां, उसके लिए राहत की बात इतनी भर है कि वह ब्लैक सूची में शामिल होने से बच गया। ग्रे सूची में शामिल किए जाने से उसकी फंडिंग तो नहीं रुकेगी लेकिन उस पर कड़ी निगरानी जरुर रहेगी। उल्लेखनीय है कि एफएटीएफ दुनिया के उन देशों की सूची बनाती है जिसे मनी लांड्रिंग और आतंकी संगठनों को मिलने वाले धन को रोकने या उसके खिलाफ कदम उठाने में कोताही बरतते हैं। इस आशय की पहली सूची ग्रे तथा दूसरी ब्लैक होती है। ग्रे सूची में शामिल देशों की फंडिंग रोकने के बजाए उस पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। गौर करें तो ग्रे सूची में पाकिस्तान के अलावा इथियोपिया, इराक, सर्बिया, सीरिया, श्रीलंका, त्रिनिनाड और टौबैगो, ट्यूनीशिया, वनातू तथा यमन इत्यादि देश शामिल हैं। एफएटीएफ जी-7 देशों की पहल पर 1989 में गठित एक अंतर सरकारी संगठन है। गठन के समय इसके सदस्य देशों की संख्या 16 थी, जो 2016 में बढ़कर 37 हो गयी। भारत भी इस संस्था का सदस्य देश है। प्रारंभ में इस संगठन का उद्देश्य महज मनी लांड्रिंग पर रोक लगाना था लेकिन 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकी हमलों के बाद आतंकी संगठनों का वित्त पोषण भी इसकी निगरानी के दायरे में आ गया। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे सूची में शामिल किया गया है। वर्ष 2012 से 2015 में भी वह ग्रे सूची में शामिल रहा। ध्यान रहे कि पाकिस्तान को पुनः ग्रे सूची में लाने की प्रक्रिया 2018 में शुरु हुई जब एफएटीएफ ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग समीक्षा समूह के तहत निगरानी के पाकिस्तान के नामांकन को मंजूरी दी। ऐसा माना जा रहा है कि गत माह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान पर आतंकी पनाहगाह बने होने का आरोप लगाए जाने के बाद इस प्रक्रिया को गति मिली। याद होगा गत वर्ष अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद का गढ़ घोषित कर उसे दी जाने वाली 2,250 करोड़ रुपए की सहायता पर रोक लगाते हुए चेतावनी दिया था कि जब तक वह अपनी जमीन पर आतंकी संगठनों के खिलाफ असरदार कार्रवाई नहीं करेगा, उसे सैन्य आर्थिक मदद नहीं दी जाएगी। याद होगा अमेरिकी कांग्रेस की सालाना रिपोर्ट 2016 से भी उद्घाटित हो चुका है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर दोहरा रुख अपनाते हुए लश्कर ए तैयबा और जैश ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को मदद पहुंचा रहा है। जबकि अमेरिका द्वारा 2009 से अब तक उसे 4 अरब अमेरिकी डाॅलर यानी 300 अरब की मदद दिया चुका है। बावजूद इसके पाकिस्तान ने आतंकी समूहों को मदद देना बंद नहीं किया है। चूंकि एफएटीएफ ने उसके फंडिंग पर निगरानी का शिकंजा कस दिया है ऐसे में उसकी अर्थव्यवस्था का चरमराना तय है। इन परिस्थितियों में  उसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक समेत अनेक वैश्विक वित्तीय संस्थाओं से कर्ज मिलना मुश्किल होगा। साथ ही मूडी, एस एंड पी, और फिच जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां उसकी साख गिरा सकती हैं। ऐसी स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय बाजार से उसके लिए फंड जुटाना लोहे के चने चबाने जैसा होगा। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ साल से पांच फीसद की दर से बढ़ रही है और इस साल सरकार का लक्ष्य इसे 6 फीसद ले जाने का था। लेकिन गे्र सूची में शामिल होने के बाद उसके मंसूबे पर पानी फिरना तय है। इसलिए और भी कि  आज की तारीख में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से मिलने वाली सहायता पर निर्भर है। अगर अर्थव्यवस्था में उठापटक हुआ तो फिर पाकिस्तान में निवेश की गति धीमी होगी और निवेशक भाग खड़े होंगे। विदेशी निवेशक और कारोबारी यहां कारोबार करने से पहले हजार बार सोचेंगे। अगर कहीं शेयर बाजार लुढ़कता है और वित्तीय अनिश्चितता की स्थिति उत्पन होती है तो वहां के वित्तीय क्षेत्र का रसातल में जाना तय है। ऐसे हालात में 126 शाखाओं वाला सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय बैंक स्टैंडर्ड चार्टर्ड सहित सिटी बैंक, ड्यूश बैंक इत्यादि अपना कारोबार समेट सकते हैं। साथ ही आयात-निर्यात प्रभावित होगा और यूरोपीय देशों को निर्यात किए जाने वाले चावल, काॅटन, मार्बल, कपड़े और प्याज सहित कई उत्पादों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। फिर घरेलू उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना होगा। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी अराजक आर्थिक स्थिति में चीन पाकिस्तान में ज्यादा से ज्यादा निवेश कर अपना हित संवर्धन करेगा जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रतिकूल पड़ना तय है। पाकिस्तान की मौजुदा परिस्थियों पर गौर करें तो उत्पादन और खपत दोनों में जबरदस्त गिरावट है और कीमतें आसमान छू रही हैं। गरीबी और बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर है। युवाओं की आबादी का बड़ा हिस्सा नौकरी के लिए पलायन कऱ रहा है। अभी बीते साल ही 10 लाख युवाओं ने देश छोड़ा है। लोगों को स्थिरता और सुरक्षा देने वाली सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो आज पाकिस्तान की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। नए मानकों के आधार पर जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजर-बसर करने वालों की तादाद 6 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। पाकिस्तान के केंद्रीय योजना व विकास मंत्रालय के मुताबिक देश में गरीबों को अनुपात बढ़कर 30 प्रतिशत के पार पहुंच चुका है। जबकि 2001 में गरीबों की तादाद दो करोड़ थी। आज की तारीख में पाकिस्तान के हर नागरिक पर तकरीबन 1 लाख 30 हजार रुपए कर्ज है। विदेशी लेन-देन और विदेशी मुद्रा प्रवाह में कमी के चलते पहले से ही सिर से उपर चढ़ा पाकिस्तान का चालू खाता घाटा बढ़ सकता है। वैसे भी मौजूदा समय में पाकिस्तान के चालू खाते में घाटे का अंतर पांच प्रतिशत के पार पहुंच चुका है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होकर 12 अरब डाॅलर से भी नीचे पहुंच चुकी है। जून, 2018 तक पाकिस्तान को अपनी सभी देनदारियां चुकाने के लिए तकरीबन 17 अरब डाॅलर की जरुरत है। लेकिन अब जब एफएटीएफ ने उस पर शिकंजा कस दिया है तो वह अपनी देनदारियां किस तरह चुकाएगा कहना कठिन है। चूंकि चंद महीने बाद पाकिस्तान में आमचुनाव होने जा रहा है, ऐसे में सियासी दलों के बीच इस मसले पर घमासान मचेगा जिससे तनाव बढ़ेगा। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस हालात व फजीहत के लिए पाकिस्तान स्वयं जिम्मेदार है। वह आतंकियों को प्रश्रय दे रहा है। उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के इशारे पर ही हक्कानी समूह जैसे अनगिनत आतंकी संगठन अफगानिस्तान में तबाही मचाते हैं। ये आतंकी संगठन कई बार अमेरिका एवं भारतीय दूतावासों पर भी हमला कर चुके है। हक्कानी समूह को पाकिस्तान का प्रश्रय प्राप्त है। इसके अलावा लश्करे तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन भी पाकिस्तान में शरण लिए हुए हैं। याद होगा अभी गत वर्ष ही अमेरिकी विदेश विभाग की वार्षिक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ कि पाकिस्तान के संघ प्रशासित कबायली क्षेत्र (फाटा), पूर्वोत्तर खैबर पख्तुनवा और दक्षिण-पश्चिम ब्लूचिस्तान क्षेत्र में कई आतंकी संगठन पनाह लिए हुए हैं और यहीं से वे स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक हमलों की साजिश बुन रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हक्कानी नेटवर्क, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, लश्कर-ए-झंगवी और अफगान तालिबान जैसे अन्य आतंकी समूह पाकिस्तान और पूरे क्षेत्र में अपनी गतिविधियों की योजना के लिए इन पनाहगाहों का फायदा उठा रहे हैं। दुनिया के सामने उजागर हो चुका है कि पाकिस्तान की मदद से ही जम्मू-कश्मीर में लश्करे तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार, हिजबुल मुजाहिदीन, अल-उमर-मुजाहिदीन और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने खुलासा किया है कि पाकिस्तान समर्थित हिजबुल और जैश कश्मीर में बच्चों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन परिस्थितियों के बी अगर एफएटीए ने पाकिस्तान को ग्रे सूची में शामिल किया है तो यह स्वागतयोग्य कदम है।

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