“पिता की महिमा” का कैसे करूँ बखान …..
असमर्थ हो गई “शब्दो की व्याकरण”
न कर पाए वो भी जिसका गुणगान …….
वो “शक्तिरूपी” पिता-सबसे-महान
जिसकी उंगली पकड़ कर मैंने चलना सीखा
जब जब ठोकर से गिरा….
वो बड़ी तीर्वता से चीखा
समा लेता था मुझे समेट के अपनी बाहों मे
कैसे बयां करू वो “पित्रत्व-प्रेम”
जितना ही “मीठा” उतना ही अनोखा
माली की तरह “सँवारता” और “निखारता”
जीवनभर अपना परिवाररूपी “बाग”
मेरी माँ का “सिंदूर”…..
मेरी माँ का सुहाग
करती हर शाखा … “पत्ता-डाली” “और
फल-फूल” जिन पर नाज
वो “बापू” मेरी आन-बान-शान ….
जिसके समक्ष “नत-मस्तक” हूँ आज
ज़िंदगी भर तुम्हारा साथ निभाता …….
“संकट-की-डगर” मे तुम्हारी “नैया” पार लगाता
दुनिया के हर बाप की उम्मीद …
मेरा बेटा खूब नाम कमाएगा …..
बेटा मेरा नाम आगे बढ़ाएगा…..
क्या मालूम था उसे वक़्त की मार ऐसी पड़ेगी…
..बुढ़ापे मे “वृद्ध-आश्रम” मे रहने को विवश हो जाएगा
इतने निर्दयी “बेटो” तुम न बनो……
मेरी बात बड़े गौर से सुनो
बनोगे एक दिन तुम भी किसी के बाप …..
निकलेगा तुम्हारा भी वो बुढ़ापे मे “काँच”
कर देगा बेघर तुमको भी अपने घर से…..
अपने “नाती-पोतो” के लिए तुम भी तरसे
मालूम है मुझे “वृद्ध-आश्रम” मे ही मुह छुपाओगे आप…….
एहसास होगा फिर कितना अच्छा था मेरा बाप
आए मेरे सामने ….. मेरे ही पाप
इससे कुछ सबक सीखो……
देना न दुख “माँ-बाप” किसी को…..
बनो “श्रावण-कुमार” उठाओ उनका भार
ना समझना बिलकुल कर रहे कोई उपकार
दिया उन्होने तुम्हें “जीवन” …तुम क्या उन्हे क्या लोटाओगे
सारे जीग के रूठने पर भी उन्हे तुम अपने करीब पाओगे
“इन्दिरा” बनके तू वंश चला दे।
हर “बाप” की बने तू “कल्पना”
“भगत” बनके हो जा शहीद।
“सुभाष” जैसे “आज़ाद” बने तेरी प्रेरणा।
“राम” की तरह तू पिता की लाज बचाना
अपने “माँ-बाप” का तू दिल न दुखाना
“”पित्रत्व-प्रेम” एक अनमोल खजाना…..
माना की आजकल खराब है जमाना
इसे न भूलना … इसे ना ठुकराना