‘भारत माता की जय’ पर फ़तवों की बौछार

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bharatतनवीर जाफ़री
मंहगाई,भूख,बेरोज़गारी,भ्रष्टाचार तथा महिलाओं व दलितों पर हो रहे अत्याचार से जूझ रहे भारत महान में शातिर राजनेताओं की साजि़श के परिणामस्वरूप एक बार फिर भारत माता की जय बोलने अथवा न बोलने जैसे विषय को लेकर छिड़ी बहस दिन-प्रतिदिन और अधिक तूल पकड़ती जा रही है। हैदराबाद के सांसद तथा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असादुद्दीन ओवैसी द्वारा पिछले दिनों दिए गए उनके उस भाषण की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी जिसमें उन्होंने यह कहा था कि चाहे कोई मेरी गर्दन पर छुरी भी क्यों न रख दे परंतु मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा। अब एक बार फिर एक विवादित फ़तवे को लेकर यही विषय पुन: देश की चर्चा का विषय बन गया है। गत् दिनों देश की सबसे बड़ी मुस्लिम धार्मिक संस्था तथा देवबंदी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले शिक्षण संस्थान दारूल-उलूम देवबंद द्वारा भारत माता की जय का उच्चारण करने को गैर इस्लामी करार देते हुए अपने अनुयाईयों को यह शब्द न बोलने संबंधी फ़तवा जारी किया गया। दारूल-उलूम देवबंद का मानना है कि भारत माता की जय का उद्घोष करना उस इस्लामी सिद्धांत के विरुद्ध है जिसमें कि तौहीद अर्थात् अल्लाह के केवल एक होने की शिक्षा दी गई है। हालांकि दारूल उलूम ने यह भी कहा है कि इसमें कोई शक नहीं कि भारत उनका देश है तथा वे भारतीय होने पर गर्व करते हैं तथा अपने राष्ट्र से अथाह प्रेम करते हैं। परंतु चूंकि भारत माता की जय के उच्चारण से ऐसा प्रतीत होता है गोया भारत कोई देश नहीं बल्कि कोई देवी या देवता है। लिहाज़ा इस प्रकार के शब्दों के उच्चारण की इजाज़त इस्लाम धर्म नहीं देता। गौरतलब है कि इसके पूर्व 2009 में भी इसी इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारूल उलूम देवबंद ने इसी आशय का एक फतवा जारी किया था जिसमें वंदे मात्रम के कुछ अंशों को गैर इस्लामी बताया गया था।
देवबंद से जारी हुए इस फ़तवे के बाद जैसाकि अपेक्षित था सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के महारथी राजनेता एक बार फिर मैदान में कूद पड़े हैं और अपनी योग्यता तथा अपनी ‘दूरदर्शिता’ का परिचय देते हुए भारत माता की जय की पैरोकारी के पक्ष में जो भी उनके मुंह में आ रहा है वे बोलने लगे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे देवेंद्र फड़णवीस फ़रमाते हैं कि अगर आप इस देश में रहना चाहते हैं तो आपको भारत माता की जय कहना होगा वर्ना आपको यहां रहने का कोई अधिकार नहीं है। यानी फ़ड़णवीस जैसे नेताओं के संतोष के लिए जयहिंद अथवा हिंदुस्तान जि़ंदाबाद या जय भारत जैसे नारे लगाना ही काफ़ी नहीं है। बल्कि भारत माता की जय बोलना ही सबसे ज़रूरी है अन्यथा फ़ड़णवीस जी भारत माता की जय न बोलने वालों को देश से बाहर भिजवाने के लिए कमर कसे बैठे हैं। ज़रा इस वक्तव्य की तुलना बिहार के उस नवआंगतुक भाजपाई नेता तथा वर्तमान केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह के उस बयान से कीजिए जिसमें उन्होंने मोदी विरोधियों को पाकिस्तान चले जाने की सलाह दी थी। इन दोनों ही नेताओं की बातों और इनके विचारों में कोई विशेष अंतर नहीं है। उधर इससे भी आगे बढ़ते हुए भाजपा समर्थक योग गुरु तथा भारतीय व्यवसाय जगत के नए अवतार बाबा रामदेव ने तो संभवत: कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआई से प्रेरणा लेते हुए यहां तक कह दिया कि उनके हाथ क़ानून से बंधे हैं वर्ना कोई भारत माता का अपमान करेगा तो वह एक नहीं बल्कि लाखों सिर काटने का साहस रखते हैं। इसके अलावा भी तमाम छोटे-बड़े टुटपूंजिए क़िस्म के नेताओं ने इसी विषय को शोहरत हासिल करने का माध्यम बना लिया है। और जिन्होंने चाहे कभी अपनी मां की भी जय न बोली हो वे भारत माता की जय बोलने के पैरोकार के रूप में तरह-तरह के बयान देते दिखाई दे रहे हैं। भाजपा के ही एक जि़म्मेदार महासचिव तथा समय-समय पर विवादित बयान देने के लिए मशहूर मध्यप्रदेश के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी यही कहा है कि इस देश में रहना है तो भारत माता की जय बोलना ही पड़ेगा।
उपरोक्त विवादों के संदर्भ में कुछ बातें स्पष्ट करना बेहद ज़रूरी है। एक तो यह कि दारूल उलूम देवबंद देश के समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधित्व हरगिज़ नहीं करती। दूसरी बात यह कि दारूल उलूम को इस प्रकार के संवेदनशील तथा विवादित विषयों पर किसी भी प्रकार का फ़तवा जारी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के फ़तवे बावजूद इसके कि इस्लाम से संबंध रखने वाली किसी एक विचारधारा से जुड़ी संस्था से ही क्यों न जारी किए जाते हों परंतु राष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम विरोधी शक्तियां इस पूरे प्रकरण को देश के सभी मुसलमानों से जोडक़र प्रचारित करने की कोशिश करती हैं। बावजूद इसके कि भारतीय संविधान में भारत माता की जय का कोई जि़क्र कहीं नहीं है फिर भी देश के सभी धर्मों व समुदायों के लोग राष्ट्रीय गान हमेशा से ही पढ़ते आ रहे हैं और उसमें देश की जय-जयकार का उच्चारण करते आ रहे हैं। इंक़लाब जि़ंदाबाद,हिंदुस्तान जि़ंदाबाद और जय हिंद व जय भारत जैसे नारे भी इस देश में हमेशा से सभी भारतवासी लगाते आ रहे हैं। परंतु अब चूंकि कोई एक इस्लाम से संबंधित विचारधारा यदि अपनी धार्मिक प्रतिबद्धताओं का हवाला देकर इस नारे को लगाने से परहेज़ भी करती है तो इसे प्रतिष्ठा का प्रश्र बनाकर यही नारा लगवाने के लिए इस प्रकार की गैर जि़म्मेदाराना बातें करना कि देश छोडक़र जाना होगा या लाखों सिर काटने के लिए तैयार हैं आदि बातें अपने-आप में इस बात का सुबूत हैं कि देश में बदअमनी फैलाने की ताक में बैठी भारत माता की जय बोलने की पैरवी करने वाली यही शक्तियां वास्तव में भारत माता की कितनी बड़ी हितैषी व हमदर्द हैं।
बावजूद इसके कि राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी जेएनयू प्रकरण के बाद यह कहा था कि देश के युवकों को भारत माता की जय बोलना सिखाना होगा। भागवत के इसी बयान के जवाब में ओवैसी का विवादित बयान आया था। परंतु संघ प्रमुख ने बाद में इसी बहस के बीच यह कहकर इस विषय पर ठंडा पानी डाल दिया था कि किसी को ज़ोर-ज़बरदस्ती से भारत माता की जय कहलवाने की कोई ज़रूरत नहीं बल्कि देश में स्वयं ऐसे हालात पैदा किए जाएं कि सभी देशवासी स्वेच्छा से भारतमाता की जय बोलें। सवाल यह है कि जो दक्षिणपंथी नेता इस विषय पर तलवारें मयान से बाहर खींचे दिखाई दे रहे हैं क्या इन्हीं वक्तव्यों को सुनकर भारत माता की जय बोलने के प्रति देश के लोगों में जागृति पैदा होगी? या फिर इन लोगों की ऐसी कोशिशें देश को आईएसआई या तालिबान जैसी ज़हरीली सोच के समांनातंर ले जा रही हैं?वैसे भी भारत माता की जय बोलने या न बोलने से भारत माता के अस्तित्व तथा इसकी अस्मिता व मान-मर्यादा पर कोई फ़र्क़ नहीं पडऩे वाला। भारतमाता की जय के अनेक उदाहरण पूरी दुनिया हमेशा देखती आई है। हिंदू बाहुल्य इस देश में जब-जब कोई मुस्लिम या सिख राष्ट्रपति,सर्वोच्च न्यायाल के मुख्य न्यायधीश,प्रधानमंत्री ,सेनाध्यक्ष,वायुसेना अध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित करता दिखाई दिया है उस समय पूरी दुनिया में भारत माता की जय के नारे पूरे विश्व के लोगों के मन में गूंजे हैं। परंतु जब-जब इस देश में सांप्रदायिक हिंसा,विद्वेष,नफरत तथा वोटों की राजनीति को परवान चढ़ाने की ख़ातिर भारतवासियों की बस्तियों में आग लगाई गई है, जब-जब कश्मीर के स्थायी निवासियों को दर-बदर की ठोकरें खाने के मजबूर होना पड़ा है,जब-जब देश में 1984,1992 तथा 2002 जैसे दर्दनाक हादसे पेश आए हैं और जब-जब देश के संविधान को ताक पर रखकर भीड़तंत्र का राज होते देखा गया है तब-तब भारतमाता की अस्मिता व इसका वास्तविक स्वरूप आहत हुआ है।
बड़े आश्चर्य की बात है कि जिन पर मिलावटी दवाईयां तथा प्रदूषित खाद्य सामग्री बेचने तथा बाबागीरी की आड़ में अकूत धन-संपत्ति संग्रह करने का आरोप है ऐसे लोग भारत माता की जय के पक्षधर दिखाई दे रहे हैं। आज देश के हज़ारों लोगों के काले धन विदेशों में जमा हैं। राजनीति में भ्रष्टाचार तथा अपराधीकरण का बोलबाला है। देश का ग़रीब, मज़दूर व किसान कहीं रोज़ी-रोटी को तरस रहा है तो कहीं आत्महत्या कर रहा है। देश की एक बड़ी आबादी को पीने का साफ़ पानी तक नहीं मिल पा रहा और सरकार द्वारा लोगों को शिक्षा तथा रोटी का अधिकार दिए जाने जैसी लोक-लुभावनी बातें की जा रही हैं। दलितों पर ज़ुल्म ढाने की घटनाएं आए दिन हमारे भारत महान में होती ही रहती हैं। क्या कोई इस उपेक्षित वर्ग से जाकर यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि भारत माता की जय बोलो वर्ना तुम्हारी गर्दन काट दी जाएगी या तुम्हें देश निकाला दे दिया जाएगा? अतः इस विषय पर किसी भी प्रकार के फ़तवों की बौछार करने से बाज़ आने की ज़रूरत है। देश में प्रेम,सद्भाव,अहिंसा तथा भाईचारे का वातावरण बनाने की कोशिश करें तो भारत माता की जय अपने-आप ही हर व्यक्ति स्वंय करता रहेगा। भारत माता के उच्चारण को किसी दलाल,एजंट या साजि़शकर्ता की पाखंडपूर्ण सरपरस्ती की कतई ज़रूरत नहीं।

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  1. अवश्य ही तनवीर जाफरी जी अख़बारों में पुती कालिख पर तफ़सिरा बखूबी कर लेते हैं लेकिन कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का ताना बाना, उनका लेख उन सभी स्थितियों को फिर से उछाल उनकी आड़ में बाबा रामदेव से लेकर पूर्व-शासकीय व्यवस्था के अंतर्गत देश की दुर्गति का विवरण इस प्रकार प्रस्तुत करता है जैसे कि वह सब वर्तमान राष्ट्रीय शासन की सोच अथवा कार्यकलाप है| मेरे विचार में आये दिन व्यर्थ के घातक वाद-विवाद बढ़ाते और लोगों को भड़काते अखबारों में महत्वहीन विषय देश में सामाजिक वातावरण दूषित किये हुए हैं| सतर्क रहते हुए हमें उनसे बचना होगा| भारत के लिए मर मिट जाने वाले हिन्दू और मुसलमान के लिए भारत माता का जयघोष क्या महत्व रखता है? उनके बलिदान को देखें अथवा उनकी अंतरंग भावना को देखें जो उनके बलिदान पर परवान हो चुकी है? उनके बलिदान का उपहास करते भले ही आज कोई भारत माता की जय न भी बोले—भाजपा व अन्य राष्ट्रीय संगठनों की ओर से ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है कि जयघोष प्रत्येक नागरिक का आवश्यक कर्तव्य है—लेकिन इसे दुर्भावनापूर्ण मुद्दा बना समाज और देश में अराजकता फैलाना राष्ट्रद्रोह है|

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