परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की आशंकाएं से बढ़ी चिन्ताएं

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रूस एवं यूक्रेन के बीच लम्बे समय से चल रहा युद्ध भीषणतम तबाही एवं सर्वनाश का कारण बनता दिख रहा है। रूस द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल किये जाने एवं यूक्रेन के द्वारा ‘डर्टी बम’ का इस्तेमाल किये जाने की धमकियां, दुनिया के लिये डर का कारण बन रही है। भयंकर विनाश की आशंकाओं के बीच समूची दुनिया सहमी हुई है। यदि परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो यह मानवता के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ होगा एवं दुनिया को अशांति की ओर अग्रसर करने वाला होगा। इस मसले का हल कूटनीति और आपसी बातचीत से ही निकालने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता भारत लगातार व्यक्त करता रहा है। शांति का उजला एवं अहिंसा-सहजीवन की कामना ही भारत का लक्ष्य रहा है। इसीलिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार युद्ध विराम की कोशिश करते हुए दोनों ही देशों को दिशा-दर्शन देते रहे हैं। परमाणु युद्ध न हो, इसके लिये रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने यह अपील अपने रूसी समकक्ष सर्गेई शोइगु से बातचीत के दौरान की। यह बातचीत रूस की पहल पर ही आयोजित हुई थी। हालांकि कहना मुश्किल है कि रूस भारत की इस अपील को कितनी गंभीरता से लेगा। जब युद्ध शुरू हुआ तबसे लेकर अब तक भारत कई बार यह बात दोहरा चुका है, मगर दोनों में से किसी भी देश ने अपने रुख में लचीलापन लाने का प्रयास नहीं किया।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन के यूक्रेन की ओर से यूरेनियम जैसा रेडियोएक्टिव एलीमेंट से जुड़े ‘डर्टी बम’ के इस्तेमाल की आशंका जताए जाने के बाद जहां समूची दुनिया अनर्थ होने की आशंका से भयभीत एवं डरी हुई है, वहीं इस युद्ध के कहीं घातक दौर में प्रवेश करने का डर बढ़ गया है। यूक्रेन और उसके सहयोगी अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों ने भले ही इस आरोप को बेबुनियाद एवं बेतुका बताया हो या पश्चिमी देशों द्वारा रूस द्वारा परमाणु हथियारों का प्रयोग की संभावनाएं जताया जाना, इन दोनों ही स्थितियों ने एक ऐसा अंधेरा परिव्याप्त किया है जिससे मानवता का भविष्य धुंधलाते हुए दिख रहा है। अब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा इसलिए बढ़ गया है कि यूक्रेन को इतने लंबे समय से झुकता न देख रूस का अहं चोट खा रहा है। हालांकि परमाणु हथियारों के दुष्परिणामों से दोनों देश अनजान नहीं हैं। इस युद्ध को चलते लंबा वक्त हो गया। इस तरह युद्धरत बने रहना खुद में एक असाधारण और अति-संवेदनशील मामला है, जो समूची दुनिया को विनाश एवं विध्वंस की ओर धकेलने जैसा है। ऐसे युद्ध का होना विजेता एवं विजित दोनों ही राष्ट्रों को सदियों तक पीछे धकेल देगा, इससे भौतिक हानि के अतिरिक्त मानवता के अपाहिज और विकलांग होने का भी बड़ा कारण बनेगा। भारत इस समस्या का समाधान कूटनीति के रास्ते से देखना चाहता है। वह युद्ध का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला चाहता है।
एक डर्टी बम शॉर्टहैंड है। इसे परमाणु-सुरक्षा अधिकारी रेडियोलॉजिकल डिस्पर्सल डिवाइस कहते हैं। यानी एक ऐसा उपकरण जो रेडियोधर्मी पदार्थों को फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें  आमतौर पर डायनामाइट जैसे अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले विस्फोटकों के साथ किसी भी तरह के रेडियोधर्मी कचरे का इस्तेमाल किया जाता है। ये विस्फोट करने पर मलिनता या गंदगी फैलाते हैं। इन्हें आतंक फैलाने के हथियार के तौर पर भी देखा जाता है। इस तरह से ये आतंक फैलाने के साथ ही आर्थिक नुकसान करने के लिए जाने जाते हैं। इसमें परमाणु हथियारों की ऊर्जा या विनाशकारी क्षमता दूर-दूर तक नहीं होती। यह संभावना भी नहीं है कि एक डर्टी बम के विकिरण की पर्याप्त मात्रा सेहत पर तत्काल असर डाले या बड़ी संख्या में लोगों की मौत की वजह बने। फिर भी विनाश के तीक्ष्ण वार के रूप में इसका इस्तेमाल घातक हैं।  
विगत लम्बे दौर से दोनों देशों के बीच घातक एवं विनाशक हथियारों का लगातार प्रयोग होने से न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, बल्कि दुनिया में आर्थिक असंतुलन बढ़ रहा है, महंगाई बढ़ रही है। करीब दो हफ्ते पहले यूक्रेन की ओर से किए गए एक बड़े हमले के जवाब में रूस जिस तरह यूक्रेन के शहरों को निशाना बना कर हमले कर रहा है, उससे भारी तबाही की आशंका गहरी होती गई है। इन अशांत एवं युद्ध की स्थितियों से निजात दिलाने के लिये भारत लगातार प्रयासरत बना हुआ है। रूस ने जब यूक्रेनी शहरों पर, खासकर नागरिक ठिकानों को निशाना बनाते हुए क्रूज मिसाइलें छोड़ीं तो भारत ने लड़ाई फैलने को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की थी। इससे पहले खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातचीत में कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है। लेकिन इन सबके बावजूद तथ्य यह है कि शांति स्थापना के अब तक के सभी प्रयास नाकाम रहे हैं। आज यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध की कीमत कमोबेश पूरी दुनिया चुका रही है। इसलिए युद्ध बंद करने की कोई राह जल्द से जल्द निकालने की कोशिशों को सभी संबद्ध पक्षों द्वारा पूरी गंभीरता से आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। मोदी दोनों देशों के नेताओं से बातचीत करके आपसी संवाद के जरिए समाधान निकालने की सलाह दे चुके हैं। समरकंद में शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात हुई तब भी उन्होंने यह बात कही थी। उस वक्त पुतिन ने उनकी सलाह पर अमल का भरोसा भी जताया था। मगर उसके कुछ दिन बाद ही रूस ने यूक्रेन पर भारी हमले शुरू कर दिए थे।
स्वयं को एक महाशक्ति मानने वाला रूस चाहता है कि यूक्रेन आत्मसमर्पण कर दे, मगर वह झुकने को तैयार नहीं। दरअसल, सोवियत संघ टूटने के बाद यूक्रेन ने रूस से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान कायम की थी। अब वह यूरोपीय देशों के संगठन नाटो का सदस्य बन कर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है। रूस को लगता है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया, तो यूरोपीय सेनाएं उसकी सरहद पर आ खड़ी होंगी। इसलिए उसने यूक्रेन पर यह सदस्यता न लेने का दबाव बनाया। यूक्रेन नहीं माना, तो रूस ने उस पर हमला कर दिया। हालांकि इस मसले को आपस में मिल-बैठ कर भी सुलझाया जा सकता था, मगर दोनों अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और दुनिया तबाही देख रही है। यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये भारत ने लगातार शांति प्रयास किये हैं। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति दिलाना आवश्यक है। इन दोनों देशों को अभय बनकर विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक देश या दूसरे देश की जीत नहीं बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यह समय की नजाकत को देखते हुए जरूरी है और इस जरूरत को महसूस करते हुए दोनों देशांे को युद्ध को अधिक घातक करने की बजाय अपनी-अपनी सेनाएं हटाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। यह रूस का अहंकार एवं अंधापन ही है कि वह पहले दिन से ही ऐसे व्यवहार कर रहा है जैसे यूक्रेन उसके समक्ष कुछ भी नहीं, सचाई भी यही है कि यूक्रेन रूस के सामने नगण्य है। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। लेकिन रूस ने अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का अहसास एक गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिये कराया है। इस युद्ध से होने वाली तबाही रूस-यूक्रेन की नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा, जो दुनिया की बड़ी चिन्ता का सबब है। बड़े शक्तिसम्पन्न राष्ट्रों को इस युद्ध को विराम देने के प्रयास करने चाहिए। जब तक रूस के अहंकार का विसर्जन नहीं होता तब तक  युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में तैरती रहेगी, इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते।

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