आंकड़ों में उलझा 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला

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सतीश सिंह

पेशे से वकील और निवर्तमान दूरसंचार मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने जिस तरह से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के रिर्पोट को सिरे से खारिज किया है, वह निश्चित रुप से पूरे मामले पर लीपा-पोती करने के समान है। श्री सिब्बल ने आंकडों की बाजीगरी में अपने अदालती अनुभव का इस्तेमाल करते हुए कैग के रिर्पोट में बताए गए 1.76 लाख करोड़ के सरकारी खजाने को चूना लगाने वाले दावे को खारिज करते हुए कहा कि सरकारी खजाने को एक पैसे का नुकसान नहीं हुआ है।

ज्ञातव्य है कि कैग ने अपनी पड़ताल में मूल रुप से 3 जी स्पेक्ट्रम के नीलामी के दौरान जिन दरों पर दूरसंचार कंपनियों को लाइसेंस दिए गए थे, उनको आधार मानते हुए सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ का चूना लगाने की बात कही थी।

1.76 लाख करोड में से 1,02,490 करोड़ का नुकसान 2008 में हुआ था। जब पूर्व दूरसंचार मंत्री श्री ए राजा ने नियमों की अनदेखी करते हुए 122 नई दूरसंचार कंपनियों को 2001 की दरों पर 2 जी स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस दिया था।

2008 में ही आरकॉम और टाटा को 2001 की दर पर डुअल टेक लाइसेंस दिया गया, जिससे पुनष्च: सरकार को 37,154 करोड़ का नुकसान हुआ।

2008 में ही पुन: सारे नियमों को ताख पर रखते हुए जीएसएम ऑपरेटरों को 6.2 मेगाहट्र्ज से अधिक स्पेक्ट्रम मुहैया करवाने के कारण सरकार को 36,993 करोड़ का घाटा उठाना पड़ा।

श्री सिब्बल के अनुसार 2 जी एयरवेव की तुलना 3 जी एयरवेव से करना मुनासिब नहीं है। 3 जी एयरवेव ज्यादा सक्षम और गुणवता से युक्त है। लिहाजा दोनों के बीच तुलना करके सरकार को नुकसान होने की बात कहना बेमानी है।

इस मुद्दे पर श्री सिब्बल की आपत्ति इसलिए भी है, क्योंकि कैग 6.2 मेगाहट्र्ज की दर से एयरवेव नई दूरसंचार कंपनियों को बेचने की बात कह रहा है, जबकि हकीकत में नई दूरसंचार कंपनियो को 4.4 मेगाहट्र्ज की दर से एयरवेव बेचा गया।

अगर 4.4 मेगाहर्ट्ज की दर से एयरवेव बेचने की गणना की जाती है तो कैग द्वारा बताया जा रहा घाटा 1,02,490 करोड़ से घटकर 72000 करोड़ हो जाता है।

पुनष्च: आरकॉम और टाटा को डुअल टेक लाइसेंस देने के क्रम में भी 4.5 मेगाहर्ट्ज की दर से एयरवेव बेचा गया, लेकिन कैग ने दर की गणना 6.2 मेगाहर्ट्ज के हिसाब से किया। 4.5 मेगाहट्र्ज की दर से एयरवेव की गणना करने पर सरकार को हुआ नुकसान घटकर 37,154 करोड़ से 26,367 करोड़ हो जाता है।

श्री सिब्बल यह भी कहते हैं कि जीएसएम दूरसंचार कंपनियों को 6.2 मेगाहट्र्ज से अधिक स्पेक्ट्रम मुहैया करवाने के कारण सरकार को हुए 36,993 करोड़ के घाटे को 1.76 लाख करोड के नुकसान के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इस आवंटन में किसी तरह की अनियमतता नहीं बरती गई है।

इसी संदर्भ के आलोक में श्री सिब्बल बताते हैं कि दूरसंचार मंत्रालय के नियमों के अनुसार मोबाईल के लिए 2 जी स्पेक्ट्रम का एयरवेव देने के साथ 4.4 मेगाहर्ट्ज का स्टार्ट-अप एयरवेव मुफ्त देने का प्रावधान है, इसलिए कैग के द्वारा 17,755 करोड़ से सरकारी खजाने को नुकसान होने की बात कहना गलत है।

उपर्युक्त आंकड़ों और जिरह के दम पर श्री सिब्बल आज की तारीख में ठसक से कह रहे हैं कि सरकार को 2 जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है।

इसमें दो मत नहीं है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जाँच कैग के द्वारा 2010 में की गई, पर श्री सिब्बल का सरकारी एजेंसी के बारे में यह कहना कि उसने अपनी जाँच में 2008 में बँटे दूरसंचार कंपनियों के बीच 2 जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस के लिए दरों की गणना 2010 की प्राइसिंग के आधार पर की है, पूर्ण से हास्याप्रद है।

श्री सिब्बल का कैग पर यह आरोप भी लगाना गलत है कि कैग ने ज्यादा मेगाहट्र्ज के दर से गणना करके सरकारी खजाने को लूटने का ए राजा को आरोपी माना है।

पर यहाँ पर यह सवाल उठता कि क्या कैग की जानकारी और तकनीक को दोयम दर्जा का माना जाना चाहिए? श्री सिब्बल का यह मानना भी वेबुनियाद है कि कैग ने अपनी पड़ताल के क्रम में 2 जी स्पेक्ट्रम की तुलना 3 जी स्पेक्ट्रम से करके सरकार को नुकसान होने की बात को सही माना है।

श्री सिब्बल सिर्फ इतना मानने के लिए तैयार हैं कि 2008 में ए राजा ने टेलीकॉम लाइसेंस और स्पेक्ट्रम आवंटित करने के दौरान दूरसंचार मंत्रालय के नियमों की अनदेखी की। श्री ए राजा की वजह से सरकार को हुए किसी भी तरह के नुकसान की बात को स्वीकार करने के मूड में श्री सिब्बल नहीं है।

उल्लेखनीय है कि श्री ए राजा को पाक-साफ बताने के साथ-साथ श्री सिब्बल एनडीए पर यह आरोप भी लगाने से नहीं चूक रहे हैं कि एनडीए शासन में दूरसंचार मंत्रालय के नियमों की अनदेखी करने और एयरवेव के आवंटन में भारी अनियमतता बरतने के कारण देश के खजाने को 1.5 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था।

गौरतलब है कि हाल ही में श्री सिब्बल ने स्वीकार किया था कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा द्वारा 122 दूरसंचार कंपनियों को आवंटित लाइसेंस में से 85 दूरसंचार कंपनियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर लाइसेंस बाँटे गए थे।

यूनिनॉर, वीडियोकॉन, लूप टेलीकॉम, एस टेल, एतिसलत और अलायंज जैसे नामी-गिरामी कंपनियों ने भी गलत तरीके से लाइसेंस हासिल किया था। लाइसेंस हासिल करने के लिए जमकर फर्जीवाड़ा किया गया था। कई लाइसेंसधारियों के पास पहले के तारीखों के डिमांड ड्राफ्ट थे, जिसके सहारे वे पिछले दरवाजे से लाइसेंस प्राप्त कर सके।

लाइसेंसधारकों में से एक कंपनी स्वान, रिलायंस टेलीकॉम की फ्रंट कंपनी थी। उल्लेखनीय है कि स्वान पर 2 जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस को हासिल करने के लिए आवेदन देने के दौरान कंपनी के मालिकाना हक से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी छुपाने का आरोप है।

2 जी स्पेक्ट्रम की स्टोरी में रतन टाटा और सुनील मित्ताल की भूमिका देश के कॉरपोरेट घरानों का सरकार पर हमेशा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव रहने के तथ्य को उजागर करता है। इससे यह साबित होता है कि कहने के लिए तो हमारा देश लोकतांत्रिक है, लेकिन सच्चाई में हमारे देश में कॉरपोरेट घरानों का राज चल रहा है, वे जब चाहते हैं अपने हिसाब से देश के नियम-कानून को तोड़-मरोड़ कर अपना काम करवा लेते हैं।

2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बरक्स में जेपीसी की मांग को लेकर जिस तरह से संसद को भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने हालिया दिनों में चलने नहीं दिया है, उससे यूपीए सरकार और खास करके कांग्रेस पार्टी दबाव में थी। इस दबाव को कम करने के साथ-साथ आम जनता व विपक्ष का ध्यान घोटाले से हटाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने श्री सिब्बल को सौंपी थी।

अब श्री सिब्बल आज्ञाकारी सिपहसालार की तरह कैग की पड़ताल को आधारहीन बता रहे हैं। उनका कहना है कैग ने 1.76 लाख करोड़ का चूना देश के खजाने को लगाने की बात कह करके पूरे देश में सनसनी फैला दी। जबकि कैग द्वारा प्रस्तुत आंकड़ा पूर्ण से गलत और झूठ का पुलिंदा है। कैग ने जिन तरीकों का इस्तेमाल करके आंकड़ें निकाले हैं वह खामियों से भरा हुआ है। वे कैग द्वारा अपनाए गए तकनीकों की पुरजोर निंदा करते हैं।

2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में घोटाला हुआ भी था कि नहीं, इस मुद्दे पर ही अब श्री सिब्बल ने प्रष्नचिन्ह लगा दिया है। आंकड़ों की बाजीगिरी से श्री सिब्बल ने कैग की रिर्पोट को आधारहीन व गलत साबित करने का प्रयास किया है।

सच जो भी हो, पर श्री सिब्बल के इस ताजा बयान से देश की साख को जरुर गहरा धक्का लगा है। साथ ही इस पूरे मामले से देश की जनता भी आहत है, क्योंकि सरकार यह पूरा खेल देश के नागरिकों के खून-पसीने की कमाई से खेल रही है। इस खेल में यूपीए और एनडीए दोनों दोनों के दामन दागदार हैं।

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