बदल गया विलेन

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-रवि कुमार छवि-
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हिंदी फिल्मों में नायक से ज्यादा खलनायक के किरदार को लोकप्रियता मिलती है जिसका कारण है लोग जल्दी ही नकारात्मक किरदारों के प्रति खीचें चले आ जाते हैं। 1970 और 1980 के दशक में प्राण, प्रेम चोपड़ा, अमजद खान, अमरीश पुरी, अनुपम खेर और ऐसे ही ना जाने कितने ही सरीखे अभिनेताओं ने अपनी रौबदार आवाज़ से लोगों के दिलों में एक लंबे समय तक डर पैदा किया। अपनी बेहतरीन संवाद अदायगी, लाल-लाल आंखें,चलने के स्टाइल और असाधारण शक्ति के कारण इन नायकों ने शोहरत की बुंलदिंयों को छुआ।

फिर दौर आया एंटी हीरो का, जो व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ता था, जो अपने परिवार को बचाने के लिए मगर अब ज़माना साइको-किलर्स का है. फ़िल्म ‘डर’ में शाहरुख़ खान का साइको-लवर का किरदार हो, या फिल्म परिंदा में नाना पाटेकर का किरदार या दुश्मन में गोकुल पंडित बने आशुतोष राणा, ये सभी किरदार साइको थे जिन्होंने पर्दे पर अपने अभिनय से दर्शकों के रौंगटे खड़े कर दिए। इन सभी किरदारों को दर्शकों ने स्वीकार किया।
बदलते वक्त के साथ हिंदी सिनेमा के विलेन के रुप भी बदलने लगे। उनके भंयकर चेहरे की जगह मासूम चेहरे ने ली थी. वो सिंगर के साथ–साथ लोगों की मदद भी करने लगा था. खलनायक के बदलते स्वरूप की झलक अभी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म एक विलेन में देखने को मिली।
मोहित सूरी निर्देशित इस फिल्म में खलनायक का ऐसा चरित्र पेश किया गया जिसे रुपहले पर्दे पर नज़रअंदाज किया गया था. फिल्म में खलनायक का चरित्र रितेश देशमुख ने निभाया जो अपनी कॉमेडी छवि के लिए जाने जाते है लेकिन इस फिल्म से यकीकनन उन्होंने खलनायक के रोल को अलग पहचान दिलाई। फिल्म में रितेश को बेबस एकदम लाचार सा दिखाया। वो अपनी महिला बॉस से डांट खाता है लोग उसे निकम्मा और काम चोर समझते है। यहां तक कि उसकी पत्नी भी उसे डांटती है. उसका एक परिवार है लेकिन पत्नी के तानों से तंग आकर वो महिला विरोधी हो जाता है
जिसका परिणाम यह होता है, वो तमाम उन महिलाओं को जो उसकी कद्र नहीं करती उन सबको मौत के घाट उतार देता है। वो ये काम बड़ी सफाई से करता है। उसके कपड़े पहनने का अंदाज अलग है वो एक बैग टांग कर रखता है। ये सब चीजे उसे एक असाधारण खलनायक बताती है। वेशभूषा की बात की जाए तो इस फिल्म का खलनायक बीते समय के खलनायकों के समक्ष कहीं भी नहीं टिकता क्योंकि इसकी वेशभूषा काफी सामान्य है ना तो उसके पास दौलत है और ना ही शोहरत उसके पास तो इतने ही पैसे है या तो वो ऑटो का किराया दे दे या कोई फिल्म ही देख ले। लेकिन बावजूद इन सबके वो लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने में कामयाब हो जाता है। फिल्म की अभिनेत्री जो गर्भवती भी होती है उसे मार देना भी मार देना उसे बॉलीवुड के साइको किलर की अलग जमात में ला देता है। इतने सीधे और सरल से दिखने वाले खलनायक को दर्शकों ने पंसद किया। वाकई में सिनेमा में भी खलनायक का दौर बदल गया है। अगर कहा जाए कि हिंदी सिनेमा का विलेन बदल गया तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी।

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