जवाब तलाशते सवाल: आदिवासी का धर्म और जाति क्या हैं?

पृथक कॉलम/कोड में आदिवासियों की जनगणना की मांग के विमर्श के दौरान एक जिज्ञासु आदिवासी (कमलेश गमेती, डूंगरपुर, राजस्थान) पूछते हैं कि ”hum hindu nahi h aadiwasi h to hamara dharam kya h hamari jati kya h or hum kya chahte h….?”
ऐसे गहरे और विवाद पैदा कर सकने वाले उलझे या उलझा दिये गये सवालों का अधिकृत उत्तर देने या समाधान करने के लिये यद्यपि मैं कोई आधिकारिक व्यक्ति नहीं हूं, फिर भी मैं अपने आप को उन कुछ लोगों में शामिल हूं, जो जनहित में सवाल पूछते और सवालों के जवाब तलाशते रहते हैं। साथ ही मेरा स्पष्ट मत है कि प्रिय और अप्रिय सभी सवाल जवाब मांगते हैं। इसलिये सभी जिज्ञासुओं को उनके सभी सवालों के जवाब मिलने चाहिये। अत: इस बारे में अपने विनम्र अनुभवजन्य मतानुसार मेरे संक्षिप्त विचार प्रस्तुत हैं:-
भारत में, आदिवासी तब से रहते आये हैं, जब भारत में कोई मानव निर्मित धर्म नहीं था। इस माने में आदिवासी धर्मपूर्वी समुदाय हैं। जहां तक मैं (डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा) समझता हूं, आदिवासी की पृथक कॉलम में जनगणना करवाने मांग किसी नये धर्म को धारण करने या किसी पुराने धर्म को त्यागने की नहीं है और न ही ऐसी मांग की जानी चाहिये। गैर आदिवासियों तथा आदिवासियत की समझ नहीं रखने वालों के लिये समझने वाली बात यह है कि आदिवासी अपनी मौलिक पहचान और संस्कृति को बचाये एवं बनाये रखने की जद्दोजहद करता रहा है। रहा है।
चूंकि सरकार जनगणना करते समय, देश के लोगों की गणना धर्मानुसार करती है। ऐसे में हम धर्मपूर्वी समुदायों के पास, हमारी जनगणना करवाने के 3 विकल्प हैं:-
1-पहला: धर्मानुसार गणना का विरोध करना।2-दूसरा: हमारी गणना किसी भी धर्म में नहीं करवाना।3-तीसरा: यथास्थिति को स्वीकार कर लेना।
मुझे लगता है कि पहला विकल्प अधिक कठिन होने के साथ, दूसरे धर्मावलम्बियों की भावनाओं के विरुद्ध भी है। इस कारण पहला विकल्प उचित नहीं है।
तीसरे विकल्प में हम संतुष्ट नहीं है, बल्कि इसी कारण हमारा अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। इस कारण तीसरे विकल्प पर विचार करने का कोई अर्थ नहीं।
अत: हमारी मांग दूसरे विकल्प की है और होनी भी चाहिये। जिसे अच्छे से समझने की जरूरत है। हमारी मांग है कि सरकार जनगणना करते समय, हमारी गणना हिंदू सहित किसी भी धर्म में नहीं करके, हमारी गणना पृथक कॉलम में करे। जैसे कि आजादी से पहले भारत के मूलवासियों (Aboriginals) की जनगणना की जाती थी।
यहां एक और पेच है, पृथक कॉलम में जनगणना करने हेतु सरकार द्वारा हर एक धर्म को पृथक-पृथक धर्म कोड जारी किये जाना वैधानिक व्यवस्था है। इस कारण हम आदिवासी नाम से पृथक कॉलम में हमारी जनगणना करवाने हेतु पृथक धर्म कोड की मांग करने को विवश हैं। मगर यह सुस्पष्ट किया जाना बहुत जरूरी है कि हम आदिवासी नाम का कोई धर्म स्थापित या संचालित करने की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर हमारी सामूहिक आदिम पहचान को कायम और जारी रखने के लिये प्रयासरत हैं। आदिवासी धर्म कोड या कॉलम की मांग करने का इतना ही अर्थ है।
मुझे नहीं पता कि ‘राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनश धर्म समन्वय समिति’ के राष्ट्रीय नेतृत्व सहित देशभर में आदिवासी अस्मिता को बचाये रखने के लिये प्रयासरत कितने विद्वान मुझ से सहमत और असहमत होंगे, मगर मेरी निजी राय है कि अपनी मौलिक आदिवासी पहचान को कायम रखते हुए भी यदि कोई आदिवासी या आदिवासी समुदाय खुद को किसी धर्म, आस्था या धार्मिक विश्वासों से सम्बद्ध रखना चाहता है, तो यह उसका मौलिक संवैधानिक हक है। जिसका सम्मान किया जाना हमारा दायित्व है।
मुझे नहीं लगता कि पृथक आदिवासी धर्म कोड या कॉलम में आदिवासियों की जनगणना करवाने की मांग के पीछे देश के आदिवासियों की धार्मिक आस्थाओं या विश्वासों पर कोई प्रहार किया जाना हम ‘राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनश धर्म समन्वय समिति’ के संचालकों का मकसद या इरादा है? इस कारण किसी को आशंकित या गुमराह होने की जरूरत नहीं होनी चाहिये।
आदिवासी का धर्म क्या?इस बारे में अनेक राय हो सकती हैं। जहां तक मेरा निजी मत है, आदिवासियों का मौलिक धर्म ‘प्रकृतिमय जीवन है।’ इस माने में हमारे कुछ आदिवासी विद्वान, आदिवासियों को ‘प्रकृति पूजक’ बोलते और लिखते हैं। यद्यपि मैं उनसे विनम्रतापूर्वक असहति प्रकट करता हूं। मेरा मत है कि आदिवासी जन्म से मृत्यु तक प्रकृति की गोद में रहता है। इस कारण आदिवासी जीवंत प्रकृति को अपनी मां की भांति जानता, मानता और संभालता है। मुझे नहीं लगता कोई इंसान अपनी जिंदा मां की पूजा करता होगा या करना चाहेगा? हां हम अपनी मां की सेवा अवश्य करते हैं। इसी प्रकार से आदिवासी भी प्रकृति की पूजा नहीं, सेवा करता है। जिसके लिये सेवा से अधिक उपयुक्त शब्द है-‘संरक्षण’। अत: मेरी समझ में आदिवासी ‘प्रकृति पूजक’ नहीं, बल्कि ‘प्रकृति संरक्षक’ ‘प्रकृति रक्षक’ या है। अत: यदि आदिवासी का कोई एक धर्म हो सकता है तो वह है-‘प्रकृति रक्षक’ ही है। फिर भी पृथक कॉलम/कोड में जनगणना करवाने के मकसद से हमारी राष्ट्रीय पहचान केवल और केवल ‘आदिवासी’ के नाम से ही स्वीकार्य होनी और की जानी चाहिये।
जहां तक आदिवासी की जाति का सवाल है? मुझे नहीं लगता कि आदिवासियत को समझने वाला कोई व्यक्ति ऐसा सवाल पूछना चाहेगा। मगर हिंदू विवेक जाति के बिना चिंतन ही नहीं करना चाहता। इस कारण जाति की तलाश की जाती है। यही वजह है कि हिन्दू रंग में रंगी वर्तमान पीढी द्वारा ऐसा सवाल पूछना स्वाभाविक है।
यहां मुझे बताना जरूरी है कि भारत की संविधान निर्मात्री संविधान सभा में हिंदुओं का वर्चस्व था। इस कारण संविधान सभा की चर्चाओं में हिंदू विचारों का प्रभाव झलकता है। यही वजह है कि संविधान सभा में प्रखर वक्ता एवं आदिवासी प्रतिनिधि जयपालसिंह मुण्डा के कड़े विरोध के बावजूद भी संविधान से ‘आदिवासी’ शब्द को विलोपित करके, उसके स्थान पर हिंदू चिंतन का प्रतीक ‘जनजाति’ शब्द हम पर थोप दिया गया। कालान्तर में ‘जाति प्रमाण-पत्र’ जारी करने और करवाने की बाध्यता तथा ‘अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989’ के प्रावधानों ने आदिवासी पर अधिरोपित जनजाति पहचान को जातिगत उत्पीड़न के रूप से परिपत्रित करके आदिवासी चिंतन को जाति तक समेट दिया है।अब तो  खुद आदिवासी भी ‘जनजाति को जाति का पर्याय’ समझने लगे हैं।
जबकि आदिवासियों में ‘जातियां नहीं, बल्कि समुदाय’ होते हैं। जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 342 एवं 366 (25) में भी देखा जा सकता है। अत: आदिवासियों की जाति तलाशना हिंदूवादी सोच है। उपरोक्त कारणों की वजह से ही मैं आदिवासियों के लिये जारी किये जाने वाले ‘जाति-प्रमाण पत्र’ के स्थान पर, ऐसा ‘सामुदायिक प्रमाण-पत्र’ जारी करने की मांग करता रहा हूं, जिसमें ‘जाति और धर्म का कोई उल्लेख नहीं हो।’ यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि ‘अनुसूचित जनजाति’ शब्दावली ‘जाति (Caste)’ नहीं, बल्कि वर्ग (Class or Category) की द्योतक है। अत: हम आदिवासियों में न तो कोई जाति होती है और न हीं कोई ‘जाति (Caste)’ है, बल्कि हम आदिवासी समुदाय (Communitis) हैं। मेरे इन विचारों से असहमत होने या इन्हें अधिक परिष्कृत करने वालों का सदैव स्वागत है।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा, Chairman: National Forum of Journalists and Writers, प्रांतीय मुख्य संयोजक: राष्ट्रीय आदिवासी-इंडीजीनश धर्म समन्वय समिति-राजस्थान, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय संयोजक: Save UPSC जनांदोलन तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष: भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान। 9875066111 (10 से 22 बजे), 10 जुलाई, 2019.

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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