पाकिस्तान का तोड़ खोजना जरूरी

0
152

संदर्भः हाफिज सईद की रैली में फिलस्तीन के राजदूत की उपस्थिति

प्रमोद भार्गव

द्विपक्षीय संबंधों के निर्वाह की दृष्टि से यह ठीक है कि फिलस्तीन ने पाकिस्तान से अपने राजदूत वालीद अबु अली को वापस बुला लिया। लेकिन एक आतंकवादी की सभा में किसी देश के राजनयिक का शामिल होने पर भारत का ऐतराज स्वाभाविक है। वह भी तब जब अमेरिका से अपनी दोस्ती की परवाह न करते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलस्तीन के समर्थन में मतदान किया था। बावजूद इस मतदान के एक सप्ताह बाद ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी के साथ रावलपिंडी में मंच साझा करना एक तरह से फिलस्तीन द्वारा भारत की भावनाओं को आहत किया गया है। पाकिस्तान में दिफा-ए-पाकिस्तान नाम के इस संगठन द्वारा आयोजित की गई इस सभा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल भी हुई हैं। इस घटना से हाफिज सईद की उस भावना को बल मिला है, जिसमें वह पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव में अपनी पार्टी को उतारना चाहता है। हालांकि पाक चुनाव आयोग ने फिलहाल सईद के संगठन को राजनीतिक पार्टी के रूप में मान्यता नहीं दी है। लेकिन पाकिस्तान हाफिज को जिस तरह से भारत के खिलाफ प्रोत्साहित कर रहा है, उस परिप्रेक्ष्य में कोई ऐसा तोड़ खोजना जरूरी है, जिससे पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कुलभूषशण जाधव की मां और पत्नी के साथ किए गए पाकिस्तान के अपमानजनक व्यवहार से भी यही एहसास होता है कि हमारा यह पड़ोसी इंसानियत के नाम पर जलालत और मोहम्मद के नाम पर नफरत फैलाने की राजनयिक परंपरा को बढ़ावा दे रहा है।

फिलस्तीन ने मुबंई हमले के मास्टरमाइंड और लष्करे-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद द्वारा आयोजित रावलपिंडी में आमसभा के दौरान शामिल हुए राजदूत को भारत की फटकार के बाद वापस बुला लिया है। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। फिलस्तीन के राजदूत वालिद अबु अली ने सईद के साथ मंच साझा किया था। भारत के कड़े विरोध के बाद फिलस्तीन ने खेद जाहिर किया और अपने राजदूत को पाकिस्तान से वापिस बुला लिय। साथ ही फिलस्तीन सरकार ने स्पष्ट किया कि वह भारत के साथ बेहतर रिश्तो का हिमायती है और आतंक के खिलाफ तथा आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों के विरूद्ध भी है। हाफिज ने पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में एक आम सभा आयोजित की थी, जिसमें शामिल हुए वालिद अबु अली ने जनता को संबोधित किया था। आतंकी हाफिज हाल ही में नजरबंदी से रिहा किया गया है। इस रिहाई के बाद उसका लाहौर की सड़कों पर जोरदार स्वागत हुआ। हजारों लोग इस स्वागत समारोह में शामिल थे। सड़कों पर फूलों की बारिश की गई। यह सब तब हुआ जब अमेरिका ने हाफिज सईद को अतंरराष्ट्रिय उसके सिर पर एक करोड़ का ईनाम घोषित किया हुआ है।

हाफिज सईद को लेकर भारत को चिढ़ाने की जो हरकतें सामने आ रही हैं, उनसे पाकिस्तान का खेल स्पष्ट हो चुका है। वह उसे कश्मीर के रहनुमा के रूप में खड़ा करने की कुत्सित करने की मंशा पाले हुए है। इसलिए हाफिज के संगठन का पहले नाम जमात उद दावा था, जो उसने बदल कर तहरीक-ए-आजादी जम्मू-कश्मीर कर लिया है। दरअसल पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठनों को यह सुविधा दी हुई है कि जब उनपर प्रतिबंध लगे या वे अंतरराष्ट्रिय बिरादरी की नजर में आ जाए तो अपना नाम बदलकर फिर से आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। पाक में एक दर्जन से ज्यादा आतंकी संगठन ऐसे हैं, जिन्होंने अपना नाम बदकर खून-खराबा जारी रखा हुआ है। लेकिन अब हाफिज जिस तरह से पाकिस्तान के शहरों में आमसभाएं करके जनता को कश्मीर के मुद्दे पर भड़का रहा है, उससे साफ हो गया है कि उसकी मंशा के केंद्र में कश्मीर है। पाकिस्तानी नेतृत्व, सेना और वहां की गुप्तचर संस्थाएं हाफिज को प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष समर्थन देते हुए इस मसले को पुरजोरी से हवा देने में लग गए हैं। चूंकि इस समय अमेरिका का राजनीति नेतृत्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में है, जिनकी अस्थिर मानसिकता और ढुल-मुल नीतियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। हालांकि जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कश्मीर में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की गुहार अमेरिका से लगाई थी, तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मार्च 2015 में साफ कर दिया था कि जम्मू-कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मसला है, जिससे समाधान में अन्य कोई देश या अंतरराष्ट्रिय संगठन की मध्यस्थता की कोई गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन ट्रंप ने जिस तरह से ओबामा की अनेक नीतियों को सिर के बल खड़ा कर दिया है, यदि वही ट्रंप ने अमेरिका की कश्मीर नीति पर भी कर दिया तो भारत की चिंताए बढ़ना लाजिमी है। हालांकि नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और अमेरिका के बीच बने द्विपक्षीय संबंधों में जो बढ़त बनाई हुई है, उसमें उक्त आशंका कम ही है। बावजूद भारत को पाकिस्तान की कूटनीतिक काट खोज लेना जरूरी है। क्योंकि हाफिज पाकिस्तान में होने वाले अगामी आम चुनावों में मैदान में उतरना चाहता है। वह अपनी पार्टी बनाने को लेकर कई मर्तबा पाकिस्तानी चुनाव आयोग के आयुक्त से मुलाकात भी कर चुका है। हालांकि अभी तक आयोग ने हाफिज के दल को राजनीतिक मान्यता नहीं दी है।

इधर दुनिया को दहला देने वाले आतंकवादी संगठन अलकायदा ने एक वीडियो जारी करके भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए जिहादियों को उकसाया है। आॅनलाइन प्लेटफाॅर्म जिहादी फोरम पर जारी इस वीडियो में अलकायदा के सेकेंण्ड इन कमाण्ड उसामा महमूद ने कश्मीर में जीत के लिए भारत के दूसरे बड़े शहरों में आतंकी हमले के लिए उकसाया है। इस वीडियो में महमूद ने कहा है कि ‘कश्मीर पर पकड़ बनाए रखने के लिए भारत छह लाख सैनिकों का घाटी में इस्तेमाल कर रहा है। गोया, यदि कोलकाता, बैंगलुरू, मुंबई और दिल्ली में आतंकी हमले किए जाते हैं तो भारत का ध्यान कश्मीर से भटक जाएगा। लिहाजा उसकी कश्मीर पर पकड़ ढिली हो जाएगी। ऐसे में कश्मीरी मुस्लिमों को भारत के खिलाफ भड़काकर कश्मीर की आजादी का स्वप्न पूरा हो सकता है। इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि घाटी से पंडितों के विस्थापन के बाद वहां का मुस्लिम स्वरूप कट्टर सांप्रायिकता से ग्रस्त होता जा रहा है। इस सांप्रादायिक रूख के अपनाए जाने से यह भी संकेत मिलता है कि कश्मीर घाटी के अलगाववादी तत्वों की सोच किस हद तक दूषित हो गई है। यही वजह है कि कष्मीरी पंडितों की वापसी कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार होने के बावजूद असंभव बनी हुई है। घाटी में मुस्मिल रूवरूप व चरित्र में समावेषी बदलाव इसलिए भी आना मुष्किल हो रहा है, क्योंकि पाकिस्तानी विदेश-नीति सेना के इशारे पर चलती है। जबकि भारतीय राज्य-व्यवस्था और उसकी राजनीति लोकतांत्रिक ताकतों के हाथ में है और पाकिस्तान से बेहतर है।  हैरानी इस पर भी है कि पाक द्वारा दिए अनेक जख्मों के बावजूद भारत उदारता का परिचय दे रहा है। ऐसे में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का यह कहना कि पाकिस्तान पर हमला करके उसके चार टुकड़े कर देना चाहिए, तो इस कथन को भारत के भविष्य के लिए अराजक अथवा अतिरंजित नहीं माना जाना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here