वही सफलता पाता है

पीपल मेरे पूज्य पिताजी,

तुलसी मेरी माता है|

बरगद को दादा कहने से,

मन पुलकित हो जाता है|

 

बगिया में जो आम लगा है,

उससे पुश्तैनी नाता,

कहो बुआ खट्टी इमली को,

मजा तब बहुत आता है|

 

घर में लगा बबूल पुराना,

वह रिश्ते का चाचा है|

“मैं हूँ बेटे मामा तेरा,”

यह कटहल चिल्लाता है|

 

आंगन में अमरूद लगा है,

मंद मंद मुस्कराता है|

उसे बड़ा भाई कह दो तो,

ढेरों फल टपकाता है|

 

यह खजूर कितना ऊंचा है,

नहीं काम कुछ आता है|

पर उसको मौसा कह दो ,

मीठे खजूर खिलवाता है|

 

अब देखो यह गोल मुसंबी,

इसका पेड़ लजाता है|

पर इसका मीठा खट्टा फल,

दादी सा मुस्काता है|

 

जिन लोगों का पेड़ों से,

घर का रिश्ता हो जाता है|

पेड़ बचाने की मुहीम में,

वही सफलता पाता है|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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