भारत का कश्मीर और फिर ध्वज उसका क्यों नहीं?

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नरेश भारतीय

यह विस्मयजनक नहीं है कि जम्मू कश्मीर राज्य के मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला ने श्रीनगर में तिरंगा फहराए जाने के विरुद्ध चेतावनी दी है. उन्हें इस प्रकार की चेतावनी देश की मुख्य प्रतिपक्षी पार्टी भाजपा को देने का क्या अधिकार है? इसके पीछे उनके मन मस्तिष्क में क्या कुछ घूम रहा है वे बेहतर जानते हैं. भिन्न भिन्न बोलियां बोलने की आदत उनमें वंश-परम्परागत है. कश्मीर को मुस्लिम राज्य बनाने और उस पर काबिज़ होने का स्वप्न उनके पूर्वज शेख अब्दुल्ला ने देखा था. कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने और अलगाववाद की नींव कायम करने का काम भी तभी हुआ था. नेहरु जी उनके ही मायाजाल में फंसे थे और कश्मीर जो आज एक अनसुल्झी समस्या बन कर हर क्षण भारत को पीड़ा देता है सब उसी का नतीजा है.

क्या कश्मीर का मुख्य मंत्री भारत के ही एक राज्य का राजनेता है? यदि है तो क्या उसकी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में कोई निष्ठा है? यदि हाँ तो फिर किसी भी भारतीय द्वारा कश्मीर राज्य में तिरंगा लहराए जाने पर उन्हें परेशानी क्यों है? यदि सचमुच उन्हें वहां ऐसा करने से अतिवादी पाकिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा भारत विरोधी प्रतिक्रिया की चिंता है तो क्या उनमें इतना दम नहीं है कि वे ऐसे तत्वों को काबू में रखने के उपाय करें? यदि उन्हें नहीं सूझता कि क्या करें तो उन्हें कोई हक नहीं कि वे मुख्य मंत्री बने रहें.

लेकिन सच यह है कि वे स्वयं कभी पाकिस्तान और कभी भारत के बीच अपनी निष्ठा को स्थिर नहीं कर पा रहे जिसके कारण वे कश्मीर के भविष्य के सम्बन्ध में पहले भी अपने असमंजस का प्रदर्शन कर चुके हैं.

भाजपा ही नहीं अपितु भारत के हर राजनीतिक दल और हर राष्ट्रीय का यह अधिकार है कि वह श्रीनगर में तिरंगा फहराए और तिरंगा ही फहराया जाता देखे. जो लोग पाकिस्तानी ध्वज वहां खुले आम फहराते हैं और भारत का अन्न जल ग्रहण करते हुए पाकिस्तान की जय बोलते हैं उन्हें रोकने का दम होना चाहिए जो लगता है किसी में नहीं है. यदि किसी देश में इतना भी दम न हो कि वह अपने मान सम्मान, अपनी भूमि, ध्वज और राष्ट्रनिष्ठ नागरिकों की रक्षा न कर पाए तो इसमें कोई संदेह नहीं कि वह बहुत कुछ खो देने के कगार पर खड़ा है.

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  1. पाकिस्तानी झंडा पहराने से रोकने का दम तो हमारे pm सरदार मनमोहन सिंह में भी में नहीं है और तिरंगा जलाने से रोकने का भी

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