केरल में बाढ़ से तबाही

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प्रमोद भार्गव
देश दूर दक्षिण राज्य केरल में प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया हुआ है। केरल के 14 जिलों में से 13 में प्रलय का पानी तांडव मचाए हुए है और मानवीय तंत्र के पास इस त्रासदी को ताकते रहने के अलावा बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं रह गया है। चारों ओर मौत का मंजर है, इंसानों से लेकर जंगली व घरेलू जानवर, पेड़-पौधे, घर-माकान और सरकारी दफ्तर बाढ़ की विभीषिका में जलमग्न है। पानी सभी बचाव कार्यों को छकाते हुए लोगों के सिर और घरों की छत पर सवार है। मौसम विभाग की भविश्यवाणी को ठेंगा दिखाते हुए कई गुना पानी केरल में कहर बनकर वर्शा है। बावजूद सेना, नौसेना, वायुसेना, तटरक्षक एवं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल सहित सभी एजेंसिया अपनी ताकत से ज्यादा महनत करके जानमाल की सुरक्षा में लगी हैं। युद्धस्तर पर जारी बचाव कार्य में नौसेना की 46, वायुसेना की 13 और थलसेना के 18 दलों के साथ एनडीआरएफ एवं कोस्ट गार्ड चैबीसों घंटे लोगों को बचाने में लगे हैं। 300 लोगों के प्राण बचाए भी गए हैं। बावजूद हरेक पीड़ित तक पहुंचना मुष्किल हो रहा है, क्योंकि प्रलय का क्षेत्र बहुत व्यापक है। करीब 21000 करोड़ रुपए की संपत्ति को नुकसान हुआ हैं। राज्य के सभी पेयजल के स्रोत दूशित हो जाने के कारण पुणे और रतलाम से रेल के जरिए पानी भेजना पड़ा है। केरल की जीवनदायी नदी पेरियार का भी पानी पीने लायक नहीं रह गया है। इन बद्तर हालातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस त्रासदी से उबरने में केरल को लंबा वक्त लगने के साथ बड़ी आर्थिक मदद की जरूरत पड़ेगी।

केरल में इस वक्त हालात इतने भयावह है कि करीब ढाई लाख लोग 1600 शिविर में शरण लिए हुए है। पिछले डेढ़ सप्ताह से बाढ़ आफत बनकर अपना दायरा फैला रही है। इस दायरे की चपेट में बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग हैं। बड़ी संख्या में हेलिकाॅप्टरों और नौकाओं से बाढ़ग्रस्त इलाकों में फंसे लोगों तक पहुंच बनाई जा रही है। बाढ़ के प्रभाव से बीमार पड़े लोगों के पास दवाएं व खान-पान की साम्रगी पहुंचाना  मुश्किल  हो रहा है। केरल में सौ साल में बाढ़ की ऐसी  भीषण  स्थिति बनी है। इस वजह से यहां के ज्यादातर बांध और नदियां क्षमता से कहीं ज्यादा भर गए हैं, नतीजतन बांधों से पानी छोड़ना पड़ रहा है, जो बाढ़ की भयावहता को बढ़ा रहा है। इस खतरनाक स्थिति को संज्ञान में लेते हुए उच्चतम न्यायालय को कहना पड़ा है कि संबंधित एजेंसिया बांधों का जलस्तर कम करने के लिए पहल करें। पिछले 12 दिन से केरल की धरती पर लबालब पानी भरा होने के कारण जमीन घंसने लगी है। जिसके परिणामस्वरूप हजारों मकान भरभराकर ढह रहे हैं। नतीजतन सबसे ज्यादा लोग इन्हीं घरों के मलवे में दबकर मरे है। लेकिन समस्या यह है कि लोग घर छोड़कर जाएं तो जाएं कहां ? 7 से 10 फीट तक भरे पानी में से बिना नौका के निकलना भी संभव नहीं है। हालांकि स्थानीय लोग अपनी नावों से बड़ी संख्या में लोगों को किनारे लगाने में लगे है। ये नौकाचालाक राहत दलों को भी मदद कर रहे है। जमीन घंसने से केरल का बुनियादी ढांचा लगभग चरमरा गया है।

देश  में ऐसी आपदाओं का सिलसिला पिछले एक दशक से निरंतर जारी है। बावजूद हम कोई सबक लेने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि विपदाओं से निपटने के लिए हमारी आंखें तब खुलती है, जब आपदा की गिरफ्त में हम आ चुके होते है। इसीलिए केरल में तबाही का जो मंजर देखने में आ रहा है, उसकी कल्पना हमारे शासन-प्रशासन को कतई नहीं थी। यही वजह है कि केदारनाथ और कश्मीर  के जल प्रलय से हमने कोई सीख नहीं ली। गोया वहां रोज बादल फट रहे है और पहाड़ के पहाड़ ढह रहे हैं। हिमाचल, असम और उत्तर प्रदेश  भी बारिश  आफत बनी हुई है। बावजूद न तो हम शहरीकरण, औद्योगीकरण और तथाकथित आधुनिक विकास से जुड़ी नीतियां बदलने को तैयार हैं और न ही ऐसे उपाय करने को प्रतिबद्ध हैं, जिससे ग्रामीण आबादी शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर न हो। शहरों में यह बढ़ती आबादी मुसीबत का पर्याय बन गई है। नतीजतन प्राकृतिक आपदाएं भयावह होती जा रही है। चेन्नई, बैंगलुरू, गुड़गांव ऐसे उदाहरण हैं, जो स्मार्ट सिटी होने के बावजूद बाढ़ की चपेट में रहे हैं। लिहाजा यहां कई दिनों तक जनजीवन ठप रह गया था।
बारिश  का 90 प्रतिशत पानी तबाही मचाकर अपना खेल खेलता हुआ समुद्र में समा जाता है। यह संपत्ति की बरबादी तो करता ही है, खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बहाकर समुद्र में ले जाता है। देश  हर तरह की तकनीक में पारंगत होने का दावा करता है, लेकिन जब हम बाढ़ की त्रासदी झेलते हैं तो ज्यादातर लोग अपने बूते ही पानी में जान व सामान बचाते नजर आते हैं। आफत की बारिश  के चलते डूब में आने वाले महानगर कुदरती प्रकोप के कठोर संकेत हैं, लेकिन हमारे नीति-नियंता हकीकत से आंखें चुराए हुए हैं। बाढ़ की यही स्थिति असम व बिहार जैसे राज्य भी हर साल झेलते हैं, यहां बाढ़ दशकों से आफत का पानी लाकर हजारों ग्रामों को डूबो देती है। इस लिहाज से  श हरों और ग्रामों को कथित रूप से स्मार्ट व आदर्श  बनाने से पहले इनमें ढांचागत सुधार के साथ ऐसे उपायों को मूर्त रूप देने की जरूरत है, जिससे ग्रामों से पलायन रुके और शहरों पर आबादी का दबाव न बढ़े ?
आफत की यह बारिश स बात की चेतावनी है कि हमारे नीति-नियंता, देश  और समाज के जागरूक प्रतिनिधि के रूप में दूर दृष्टि से काम नहीं ले रहे हैं। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मसलों के परिप्रेक्ष्य में चिंतित नहीं हैं। कृशि एवं आपदा प्रबंधन से जुड़ी संसदीय समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन से कई फसलों की पैदावार में कमी आ सकती है, लेकिन सोयाबीन, चना, मूंगफली, नारियल और आलू की पैदावार में बढ़त हो सकती है। हालांकि कृषि मंत्रालय का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए खेती की पद्धतियों को बदल दिया जाए तो 2021 के बाद अनेक फसलों की पैदावार में 10 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी संभव है। बड़ते तापमान के चलते भारत ही नहीं दुनिया में वर्शाचक्र में बदलाव के संकेत 2008 में ही मिल गए थे, बावजूद इस चेतावनी को भारत सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। ध्यान रहे, 2031 तक भारत की षहरी आबादी 20 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जाएगी। जो देश  कुल आबादी की 40प्रतिशत होगी। ऐसे में शहरों की क्या नारकीय स्थिति बनेगी, इसकी कल्पना भी असंभव है ?
इस आपदा की भयावहता का अंदाज लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 करोड़ रुपए की तत्काल मदद दी है। देश  के अन्य राज्यों से भी करीब सौ करोड़ की मदद मिल रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अतिरिक्त मानवता का परिचय देते हुए आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों के एक माह का वेतन आपदा राहत कोश में देने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री ने इस कोश से प्रत्येक मृतक के परिजनों को 2 लाख और घायलों को 50 हजार रुपए की मदद का ऐलान भी किया है। संयुक्त राश्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियों गुतेरस ने केरल में आई इस भयानक से हुई लोगों की मौत और तबाही पर दुख जताया है। हालांकि उन्होंने अभी किसी प्रकार की मदद का ऐलान करने की बजाय कहा है कि भारत इस तरह के हालात से निपटने में खुद सक्षम है। दूसरी तरफ संयुक्त अरब अमीरात ने केरल के बाढ़ पीड़ितों के लिए मदद हेतु हाथ बढ़ाया है। प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन  राशिद अल मकतूम ने अंग्रेजी और तमिल में ट्वीट करके कहा है कि ‘हमारी सफलता के पीछे केरल के लोगों का बड़ा योगदान रहा है और अभी भी है। इसलिए हमारा कत्र्तव्य बनता है कि हम उनकी इस संकट की घड़ी में मदद करें। बहरहाल देश  को हर साल बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का संकट नहीं झेलना पड़े। अब क्रांतिकारी पहल करना जरूरी हो गया है। वरना देश वर्षा  किसी न किसी राज्य या महानगर में बाढ़ जैसी भीशण त्रासदी झेलते रहने को विवश होता रहेगा।

 

 

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