जंगल‌

पीपल नीम आम के जंगल

होते बड़े काम के जंगल |

कितने निश्छल भोले भाले

होते तीर कमान के जंगल |

कभी कभी क्यों हो जाते हैं

बारूदी अंजाम के जंगल |

बच्चो कभी न बनने देना

ओसामा सद्दाम के जंगल |

वंशी की मधु तान सुनाते

नटनागर घनश्याम के जंगल |

रामायण के पाठ पढ़ाते

सीता राजा राम के जंगल |

बिल्कुल एक सरीखे दिखते

राम और रहमान के जंगल |

प्रेम दया करुणा सिखलाते

कृष्ण भक्त रसखान के जंगल |

सत्य अहिंसा क्षमा रटाते

श्रद्धा के गुरू नाम के जंगल |

भारत के जयनाद गुंजाते

केरल तक आसाम के जंगल |

अमर रहे गणतंत्र हमारा

गाते हिन्दुस्तान के जंगल |

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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