युग से आगे की सोच रखती थीं ‘देविका रानी’

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-अनिल अनूप
देविका रानी , भारतीय रजतपट की पहली स्थापित नायिका थीं जो अपने युग से कहीं आगे की सोच रखने वाली अभिनेत्री थी | उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से जर्जर सामाजिक रुढियों और मान्यताओं को चुनौती देते हुए मानवीय मूल्यों और संवेदनाओ को स्थापित करने का काम किया था | देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को विशाखापत्तनम के वाल्तयेर में हुआ था | उनके पिता कर्नल मनमथा नाथ चौधरी मद्रास के पहले सर्जन थे | उनके चाचा आशुतोष चौधरी कलकत्ता हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे | विख्यात कवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उनके चचेरे परदादा थे |
देविका रानी का अधिकांश बचपन लन्दन में बीता था | नौ वर्ष की उम्र में ही स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के बाद 1920 के दशक के आरम्भिक वर्षो में वह नाट्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए लन्दन चली गयी और वहा रॉयल अकैडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट और रॉयल अकैडमी ऑफ़ म्यूजिक नामक संस्थाओ में भर्ती हो गयी | वहा उन्हें स्कॉलरशिप भी प्रदान की गयी |
पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह फिल्मो में अभिनय करेगी लेकिन परिवार वाले इस बात के सख्त खिलाफ थे क्योंकि उन दिनों सम्भ्रांत परिवार की लडकियों को फिल्मो में काम नहीं करने दिया जाता था | इस बीच उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध निर्माता हिमांशु रॉय से हुयी | वह मैथ्यू अर्नाल्ड की कविता “लाइट ऑफ़ एशिया ” के आधार पर इसी नाम से एक फिल्म बनाकर अपनी पहचान बना चुके थे | हिमांशु देविका की सुन्दरता पर मुग्ध हो गये और उन्होंने देविका रानी को अपनी फिल्म “कर्मा” में काम देने की पेशकश की |
यह वो समय था जब मूक फिल्मों के निर्माण का दौर समाप्त हो रहा था | हिमांशु ने जब इस फिल्म का निर्माण किया तो उन्होंने नायक की भूमिका स्वयं निभाई और नायिका के रूप में देविका का चुनाव किया | फिल्म में देविका ने हिमांशु के साथ लगभग चार मिनट तक “लिप टू लिप किस ” दृश्य देकर उस समय के समाज को अचम्भित कर दिया | इसके लिए उनकी काफी आलोचना हुयी और फिल्म को प्रतिबंधित कर किया गया | इसके बाद हिमांशु ने देविका से शादी कर ली और मुम्बई आ गये |
मुम्बई आने के बाद दोनों ने मिलकर बॉम्बे टॉकीज बैनर की स्थापना की और फिल्म “जवानी की हवा ” का निर्माण किया जो सफल रही | वर्ष 1936 में प्रदर्शित “अछूत कन्या ” ने ग्रामीण बाला की मोहक छवि को रुपहले पर्दे पर साकार किया | इस फिल्म में अपने अभिनय से देविका ने दर्शकों को अपना दीवाना बना लिया | फिल्म में अशोक कुमार उच्च जाति के युवक के किरदार में थे जिन्हें अछूत लडकी से प्यार हो जाता है | इस फिल्म के बाद देविका फिल्म इंडस्ट्री में “ड्रीम गर्ल ” के नाम से मशहूर हो गयी |
“अछूत कन्या” के प्रदर्शन के बाद उन्हें “फर्स्ट लेडी ऑफ़ इंडियन स्क्रीन ” की उपाधि से सम्मानित किया गया | अशोक कुमार के साथ कई फिल्मो में अभिनय किया | इन फिल्मो में वर्ष 1937 में प्रदर्शित फिल्म “इज्जत ” के अलावा सावित्री (1938) और निर्मला (1938) जैसी फिल्मे शामिल है | प्रचलित सामजिक मान्यताओ को स्वीकार नही करने वाली देविका के साथ किस्मत ने भी क्रूर मजाक किया और 1940 में हिमांशु राय का निधन हो गया | इस विपदा को भी साहस से झेलकर उन्होंने पति के स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज पर नियन्त्रण कर संघर्ष किया |
1945 में वह रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक से शादी कर स्थाई रूप से उनके साथ बंगलौर में रहने लगी | देविका को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरुस्कार दादा साहेब फाल्के पुरुस्कार और सोवियत लैंड नेहरु पुरुस्कार सहित कई दर्जनों सम्मान मिले | फिल्मो में अलग होने के बाद भी वह विभिन्न कलाओं से जुडी रही | अपने दिलकश अभिनय से दर्शको के दिलो पर राज करने वाली देविका 9 मार्च 1994 को 85 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से अलविदा कह गयी |

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