भोर मे भैरवी के स्वर छिड़े हैं,
इन्ही के साथ हम प्रभु से जुड़े हैं,
संगीत साधना बनी आराधना ,
फिर कंहीं क्यों और करूँ प्रार्थना ।
स्वर ताल मे बंदिशों को बाँधकर ,
साज़ों मे संगीत लहरी ढालकर,
तक धिं तक ता तारानों मे डालकर ,
गा भैरव कोमल रिषभ संभालकर ।
मालकौस मे रे ग ध नी कोमल लगें,
साज़ पर धुन कोई द्रुत लय मे बजे ,
लयकारी जब स्वर मे बंधकर चले ,
गीत, भजन और बंदिशे इसमे सजें।
राग यमन मे तीव्र मध्यम ही लगे ,
तीनताल मे जब सम सम पर ही लगे,
कर्ण प्रिय राग मधु मधुर मन मे सजे,
भावना कोमल कोमल मन मे जगें।