चार राग

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भोर मे भैरवी के स्वर छिड़े हैं,

इन्ही के साथ हम प्रभु से जुड़े हैं,

संगीत साधना बनी आराधना ,

फिर कंहीं क्यों और करूँ प्रार्थना ।

 

स्वर ताल मे बंदिशों को बाँधकर ,

साज़ों मे संगीत लहरी ढालकर,

तक धिं तक ता तारानों मे डालकर ,

गा भैरव कोमल रिषभ संभालकर ।

 

मालकौस मे रे ग ध नी कोमल लगें,

साज़ पर धुन कोई द्रुत लय मे बजे ,

लयकारी जब स्वर मे बंधकर चले ,

गीत, भजन और बंदिशे इसमे सजें।

 

राग यमन मे तीव्र मध्यम ही लगे ,

तीनताल मे जब सम सम पर ही लगे,

कर्ण प्रिय राग मधु मधुर मन मे सजे,

भावना कोमल कोमल मन मे जगें।

 

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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