फोर लेन मामले में मीड़िया की सार्थक पहल का असर

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मीड़िया ने सार्थक पहल कर सुप्रीम कोर्ट को सरकार को विलम्ब के कारण तीन सौ तिरतालीस करोड़ रु. हर्जाना देने का खुलासा कर जल्द मामले के निपटारे की लगायी गुहार

 

फोर लेन विवाद में जिले की मीडिया ने सार्थक पहल करते हुये भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र भेजकर अवगत कराया हैं कि केन्द्र सरकार को विलम्ब के कारण 1 मार्च 2011 तक 342 करोड़ रूपये हजौना ठेकेदारों को देया हो गया हैं जों किे 38 लाख 8 सौ रु. प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ता ही जायेगा। भू तल परिवहन मन्त्रालय कोर्ट में अपने ही दिये गये फ्लायी ओवर के विकल्प से अब लरगत की अरड़ लेकर मुकर रहा हैं जबकि योजना बी.ओ.टी. में बन रही हैं।आपसी सहमति बनाने के लिये कोर्ट एक साल से भी अधिक का समय दे चुकी हैं लेकिन आम सहमति नहीं बन पा रही हैं अत: कोर्ट शीघ्र मामले का निराकरण कर एक राष्ट्रीय परियोजना के पूर्ण होने में हो रहे विलम्ब को समाप्त कराने का कष्ट करें।

 

मीडिया द्वाराप्रेषित आवेदन में उल्लेख किया गया है कि समूचे देश में चारों महानगरो और चारों दिशाओं को न्यूनतम लम्बाई के मार्गों को जोड़कर ईन्धन एवं समय की बचत के लिये प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुर्भुज योजना के तहत एक्सप्रेस हाई वे बनाये जा रहे हैं। इसके तहत कन्याकुमारी से काश्मीर तक बनने वाला चार हजार कि. मी. लम्बा उत्तर दक्षिण कॉरीडोर मध्यप्रदेश के सिवनी जिले से होकर नागपुर से कन्याकुमारी तक बन रहा हैं। यह मार्ग मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में कुरई विकासखंड़ में स्थित पेंच नेशनल पार्क की सीमाओं के बाहर से जा रहा हैं। जिले में यह कॉरीडोर मार्ग लगभग 105.58 कि.मी. बनना हैं जिसमें से 67 किलोमीटर बन चुका हैं और मात्र 38.50 किलो मीटर बनना शेष हैं।

इस कारीडोर के निर्माण को रोकने के लिये एक एन.जी.ओं. वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंड़िया दिल्ली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में उक्त याचिका आई.ए.क्र. 1124/09 पेश की गई हैं जो कि विचाराधीन हैं। इस याचिका के जवाब में सम्प्रग शासनकाल के प्रथम कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण ने शपथ पत्र के साथ जो जवाब दिया था उसमें प्रथम आप्शन के रूप में फ्लाई ओवर(एलीवेटेड हाई वे) और आप्शन दो में वर्तमान एन.एच. के चौड़ीकरण का प्रस्ताव किया था। जिस पर वन एवं पर्यावरण विभाग सहमत नहीं था।

आवेदन में यह भी बताया गया है कि सी.ई.सी. की रिपोर्ट के बाद सिवनी के नागरिकों की ओर से इण्टरवीनर बनने का आवेदन लगाया गया। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने एमाइकस क्यूरी श्री साल्वे को यह निर्देश दिया कि वे सी.ई.सी. और एन.एच.ए.आई. के साथ बैठक कर एलीवेटेड हाई वे सहित अन्य विकल्प तलाशने का प्रयास करें। एक बैठक के बाद एन.एच.ए.आई. ने 9 अक्टूबर 2009 को एक शपथ पत्र देकर बैठक में सी.ई.सी. द्वारा आप्शन दो के बारे में सुझाये गये संशोधनों पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी हैं लेकिन आप्शन एक के बारे में शपथपत्र में कुछ भी नहीं कहा हैं। इसके बाद सम्प्रग शासन के दूसरे कार्यकाल में दिनांक 6 नवम्बर 2009 को श्री साल्वे ने कोर्ट में जो अपना नोट प्रस्तुत किया है उसमें यह उल्लेख किया है कि एन.एच.ए.आई. आप्शन एक, जो कि एलीवेटेट हाइ वे का था, के लिये सहमत नहीं हैं क्योंकि उसमें लगभग 900 करोड़ रूपये की राशि व्यय होगी। कोर्ट में एन.एच.ए.आई. द्वारा स्वयं के सुझाये गये प्रस्ताव पर अब असहमत होना समझ से परे हैं। जबकि ईन्धन और समय की बचत के मूल मन्त्र को लेकर बनायी जा रही परियोजना में निर्माण लागत का प्रश्न उठाना ही नहीं चाहिये। वैसे भी यह परियोजना बी.ओ.टी. योजना के अंर्तगत बनायी जा रही है।

 

मीडिया द्वारा प्रेषित इस आवेदन में स्थानीय सम्पादकों श्रीमती मञ्जुला कौशल,संवाद कुञ्ज, अशोक आहूजा,सुदूर सन्देश, विजय छांगवानी,युग श्रेष्ठ, मनोज मर्दन त्रिवेदी, यशोन्नति, प्रमोद शर्मा, दलसागर, के अलावा सम्भाग एवं प्रदेश स्तर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों के जिला प्रतिनिधि जिनमें दिनेश किरण जैन, भास्कर,आनन्द खरेू नवभारत, ओम दुबे हितवाद, सञ्जय सिंह जनपक्ष, आर.के.विश्वकर्मा नई दुनिया, वाहिद कुरैशी, एक्सपेस, हरीश रावलानी, लोकमत समाचार, सन्तसेष उपाध्याय, पत्रिका, सूर्यप्रकाश विश्वकर्मा, राज एक्सप्रेस, अभय निगम, हरि भूमि, के अलावा टी.वी. चैनल के प्रशान्त शुक्ला, साधना, तिलक जाटव, सहारा समय, सुनील हंर्चारिया, ई.टी.वी., काबिज खॉन टी.वी.99 चैनल के द्वारा प्रेषित आवेदन में आगे बताया गया हैं कि इस सम्बन्ध में कृपया जिला कलेक्टर सिवनी के संलग्न पत्र क्र./9025/रीडर-अपर कले./08 दिनांक 19/12/2008 का अवलोकन करने का कष्ट करें जो कि मध्यप्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वन विभाग एवं प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग को सम्बोधति हैं।इस पत्र में विस्तृत विवरण देते हुये बताया गया हैं कि राज्य शासन की अनुशंसा की प्रत्याशा में पेड़ कटाई प्रतिबन्धित कर दी गई हैं। इस पत्र में यह भी उल्लेख किया गया गया है कि केन्द्रीय साधिकार समिति के सदस्य डॉ. राजेश गोपाल ने 18 एवं 19 नवम्बर 2008 को जब कोर्ट के निर्देश पर विवादास्पद स्थल का भ्रमण किया था तो उसकी सूचना ना तो जिला कलेक्टर को दी गई थी और ना ही स्थानीय वन विभाग और प्रोजेक्ट डॉयरेक्टर एन.एच.ए.आई.को गई थी। ऐसी परिस्थिति में जनमत का आकलन करना या आम आदमी को होने वाली असुविधाओं के बारे में विचार करना तो सम्भव था ही नहीं। इस पत्र में जिला कलेक्टर ने यह भी उल्लेख किया था कि रोके गये मार्ग में कई पुलियां अत्यन्त कमजोर हैं जिनसे दुघZटनायें होने की सम्भावना से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति भी बन सकती हैं।

आवेदन में यह भी बताया गया हैं कि इसी पत्र में एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य का भी उल्लेख किया हैं कि,Þ चूंकि रोक लग जाने पर ये बाधामुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पायेंगे। जिससे भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग प्राधिकरण को प्रोजेक्ट में देरी होने पर अपने कंशसेनर को प्रतिदिन करीब 6 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा देना होगा जिससे उन पर अनावश्यक वित्तीय भार पड़ेगा।ंß बी.ओ.टी. योजना के तहत बनाये जाने इस मार्ग की जिले में लम्बाई 105.58 कि.मी. हैं। जिसका लगभग 37.5 कि. मी. क्षेत्र का काम बाधा मुक्त भूमि उपलब्ध नहीं करा पाने के कारण रुका पडा़ हैं। विवादास्पद पेंच पार्क के बाजू के हिस्से के अलावा छपारा के पास भी 9.24 कि.मी. मार्ग का निमार्ण भी वन विभाग की अनुमति नहीं होने से रुका पड़ा हैं। इस मार्ग की भूमि की चौड़ाई 60 मीटर हैं। इसके कारण टोल टैक्स की वसूली भी प्रारम्भ नहीं हो पा रहीं हैं। इस आधार पर यदि दोनों कम्पनियां पूरे 105.58 कि. मी. पर हर्जाने की मांग करती हैं तो इस भूमि का कुल क्षेत्रफल 633.58 हेक्टेयर होता हें जिस पर 6 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से हर्जाने की राशि 38 लाख 8 सौ 80 रु. होती हैं। इस हिसाब से 1 मार्च 2011 तक की कुल राशि 343 करोड़ 17 लाख 29 हजार 7 सौ 20 रु. होती हैं जो शासन द्वारा ठेकेदार को देय होगी।

 

पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि इस राष्ट्रीय परियोजना का मूल मन्त्र ईन्धन और समय की बचत का है। लेकिन इसमें निर्माण में हो रहे अनावश्यक विलम्ब के कारण जहां एक ओर शासन को अरबों रूपयों का चूना लग रहा हैं वहीं दूसरी ओर इस विलम्ब के कारण राष्ट्र को क्षति उठानी पड़ रही हैं। माननीय न्यायालय ने भू तल परिवहन मन्त्रालय और वन एवं पर्यवरण मन्त्रालय को एक राय बनाने के लिये लगभग एक वर्ष से अधिक का समय दिया लेकिन वे इसमें अभी तक सफल नहीं हो पायें हैं।

 

अन्त में आववेदकगणों के द्वारा माननीय न्यायालय से अनुरोध किया है कि इस मामले का शीघ्र निराकरण करने का कष्ट करें।

 

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