“जोगी मुक्त” कांग्रेस या “कांग्रेस मुक्त” जोगी

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ajit-jogiजावेद अनीस

“अब मैं आजाद हो गया हूं,छत्तीसगढ़ के फ़ैसले अब दिल्ली में नहीं लिए जाएंगे, छत्तीसगढ़ को रमन सिंह से मुक्त कराया जाएगा”. यह एलान अजित जोगी का है जिन्होंने तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए आखिरकार कांग्रेस छोड़ कर अपनी नयी पार्टी बनाने की घोषणा कर ही दी . अपने क्षेत्र मरवाही के कोटमी में जब वे नये पार्टी की घोषणा कर रहे थे तो वहां करीब 5000 लोगों की जनसमूह मौजूद थी. इस दौरान उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए नई पार्टी की जरूरत थी. हालांकि पार्टी के नाम की घोषणा नहीं की गयी और बताया गया कि पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह लोगों से रायशुमारी के बाद तय किया जाएगा.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के इस क्षत्रप ने पार्टी छोड़ने का एलान एक ऐसे समय किया है जब राहुल गाँधी को पार्टी का कमान सौपने की खबरें जोर पकड़ ही रही थी. हालांकि यह कोई चौकाने वाला फैसला नहीं है और इसकी अटकलें काफी पहले से लगायी जा रही थीं लेकिन इसकी टाईमिंग महत्वपूर्ण हैं यह ऐसे समय हुआ है जब नाकामियों के बोझ तले दबे राहुल गाँधी के पार्टी की कमान सँभालने की चर्चा है.

करीब 30 साल तक कांग्रेस से जुड़े रहे अजित जोगी ने पार्टी छोड़ने के पीछे जो कारण बताये हैं वे कांग्रेस के लिए ध्यान देने लायक हैं, उनके मुताबिक कांग्रेस अब नेहरू, इंदिरा और राजीव-सोनिया गांधी वाली कांग्रेस नहीं रह गयी है,पार्टी संगठन में अब भैंस के आगे बीन बजाने से कोई फायदा नहीं है और यहाँ जनाधार वाले नेताओं का कोई स्थान नहीं रह गया है उनका यह भी कहना था कि पार्टी में उन्हें जितनी जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी उतनी नहीं मिल रही थी. उन्होंने यह एलान कि “अब मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा छत्तीसगढ़ के फैसले अब छत्तीसगढ़ में ही करूंगा” डूबती कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है और उन्हें छत्तीसगढ़ का शरद पावर या ममता बनर्जी बना सकता है.

जोगी कांग्रेस के एक प्रभावशाली नेता रहे हैं वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहने के अलावा दो-दो बार राज्यसभा और लोकसभा सदस्य और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रह चुके हैं. पार्टी छोड़ने से पहले वे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का प्रमुख चेहरा और पार्टी के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष थे.

दरअसल जोगी पिछले कुछ सालों से पार्टी में हाशिए पर थे और उनपर पार्टी के हितों के खिलाफ काम करने के आरोप भी लगते रहे हैं, चर्चित अंतागढ़ टेपकांड में नाम सामने आने के बाद उनके विवादित बेटे और विधायक अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. खुद अजीत जोगी को भी छह साल के लिए पार्टी से निकालने की सिफारिश की गई थी जो कि कांग्रेस की राष्ट्रीय अनुशासन समिति के पास विचाराधीन है.

जोगी के पार्टी छोड़ने के पीछे प्रमुख कारण यह बताया जा रहा है कि वे पार्टी की तरफ से राज्यसभा जाना चाहते थे लेकिन आलाकमान इसके लिए तैयार नहीं था जिसके बाद उन्होंने पार्टी से किनारा करने का फैसला कर लिया. हालांकि पिछले लम्बे समय से उनके पार्टी छोड़कर नई पार्टी बनाने की सुगबुगाहट थी और इसी लिए अमित जोगी लगातार राज्य का दौरा कर रहे थे. बहरहाल कारण जो भी हो कांग्रेस छोड़ने के पीछे जोगी ने जो कारण बताये है वे पार्टी के लिए आईना दिखाने वाले हैं. यह असलियत है कि पार्टी में जनाधार वाले नेताओं का महत्त्व कम हुआ है यहाँ चाटुकार नेताओं का बोलबाला है. “गांधियों” के दरबार में जनाधार वाले नेताओं को उनकी योग्यता के अनुसार महत्व मिलने की जगह उन्हें तरजीह मिलती है जो अपने आप को वफादार साबित करने में लगे रहते हैं. इसीलिए हम देखते हैं कि कांग्रेस में एक के बाद एक जनाधार वाले नेताओं ने अपना अलग रास्ता चुनना मुनासिब समझा. जोगी उसी कड़ी में एक नया नाम हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गाँधी बिना क्षत्रोपों वाली कांग्रेस के सेनापति होने जा रहे हैं और उन्हें अपने लिए नए सिरे से क्षत्रप गढ़ने पड़ेंगे जो उनकी क्षमताओं से बाहर जान पड़ता है. अगर डूबती कांग्रेस के लिए अजीत जोगी का जाना नयी शुरुआत है तो इसका अंजाम भाजपा के कांग्रेस मुक्त सपने को बहुत आसान साबित हो सकता है.

अजीत जोगी कांग्रेस में बचे-खुचे जनाधार वाले नेताओं में से थे लेकिन साथ में वे और उनके बेटे अजीत जोगी उतने ही विवादित भी हैं . भले ही वे अपना अपना ज़्यादातर समय व्हीलचेयर पर बिताने पर मजबूर हों लेकिन उनकी जमीनी पकड़ बरकरार थी विशेषकर राज्य के आदिवासी बहुत क्षेत्रों में उनका दबदबा है. राज्य में पार्टी नेताओं के साथ उनकी कभी नहीं बनी और उन्हें शक की निगाह से देखा जाता था. उन्होंने अपने लिए अलग रास्ता बना लिया था पार्टी में जोगी गुट बहुत मजबूत था. छतीसगढ़ में एक तरफ पार्टी के सभी नेता थे तो दूसरी तरफ अकेले जोगी फिर भी वे उन्नीस नहीं पड़ते थे. जोगी का अपना एक खास अंदाज और शैली है जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है.

साल 2013 में हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं के मारे जाने के बाद पार्टी की राज्य इकाई में नेतृत्व का अभाव हो गया था इसके चलते उनका महत्त्व और बढ़ गया था. इन सबके बावजूद अजीत जोगी कांग्रेस के गले की हड्डी बन गये थे स्थिति ऐसी बन गयी थी कि कांग्रेस न तो निगल पा रही है और न ही उगल पा रही थी. कांग्रेस को अजीत जोगी को बनाए रखना उनकी मजबूरी लेकिन इसी के साथ घाटे का सौदा भी साबित हो रहा था.

पार्टी छोड़ने के बाद जोगी को लेकर दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं. एक विचार यह है कि जोगी के जाने के बाद पार्टी को नुकसान कम, फायदा ज्यादा होगा पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी व भितरघात रुकेगी और पार्टी को उनकी विवादित छवि से भी मुक्ति मिलेगी. इस सम्बन्ध में दिग्विजय सिंह का बयान आया है कि “जो व्यक्ति कांग्रेस के घोषित उम्मीदवारों का सौदा करोड़ रुपये लेकर कर दे, उसका चले जाना कांग्रेस के लिए हितकर है.” दूसरा विचार यह है कि जोगी एक जमीनी नेता हैं और जनता पर उनकी पकड़ है अगर उन्हें खुली हाथ से काम करने मौका मिलता तो वे अपनी राजनीतिक कौशल के बल पर पार्टी को विजयी बना सकते थे. शायद जोगी कि इन क्षमताओं को मानते हुए भी टी.एस सिंहदेव ने कहा है कि “कोई व्यक्ति जो घर में रहकर परिवार के लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है वो घर के बाहर रहकर नुकसान पहुंचाए तो तकलीफ नहीं होगी”.

निश्चय ही जोगी राजनीति के चतुर खिलाड़ी है और राजनीतिक परिस्थितियों को समझ रहे हैं उनके तजा बयानों से उनके आगामी लक्ष्यों का अंदाजा लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ में वे ही असली कांग्रेस हैं. फिलहाल उनके खेमे में 10 से 15 विधायक बताये जाते हैं जो अभी खुल कर सामने नहीं आये हैं. इसके आलावा बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता और भाजपा और अन्य दलों के उपेक्षित नेता भी अजीत जोगी के साथ आ सकते हैं. इससे पहले ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे नेता कांग्रेस छोड़ कर अपने–अपने राज्यों में स्वतंत्र मुकाम बनाकर खुद को एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित कर चुके हैं. 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जहाँ यह तय होगा कि अजित जोगी छत्तीसगढ़ में खुद को तीसरे विकल्प के रूप में स्थापित करने में कामयाब होते हैं या नहीं. फिलहाल चारों तरफ मुश्किलों से घिरी कांग्रेस के लिए जोगी का जाना एक झटका हैं और अगर यह किसी नए सिलसिले कि शुरुआत है तो कांग्रेस इसका कीमत अपना अस्तित्व खोकर ही चूका सकती है.

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