स्वतंत्रता आंदोलन, पत्रकारिता और गणेश शंकर विद्यार्थी

मृत्युंजय दीक्षित

 

स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में अपनी निर्भीक पत्रकारिता और लेखनी के माध्यम से अंग्रेज सरकार को हिला कर रख देने वाले महान पत्रकार एवं क्रान्तिकारी विचारक गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म प्रयाग के अतरसुइया मोहल्ले में 26 अक्टूबर, 1890 ई में हुआ। इनका जन्म नाना के घर हुआ था जो कि उस समय सहायक जेलर थे। लेकिन शीध्र ही इनके पिता जीवन यापन करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश के गंगवली कस्बें मे जाकर बस गये। इनके पिता का नाम श्री जयनारायण था जो कि अध्यापन और ज्योतिष का कार्य किया करते थे। अतः गणेश की प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय एंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल में हुई। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत वे फिर अपने बड़े भाई के पास कानपुर आ गये और कानपुर से ही हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की।इसके बाद उन्होंने प्रयाग में इण्टर में प्रवेश लिया। तभी उनका विवाह हुआ लेकिन तब तक उन्हें पत्रकारिता व लेखन का शौक लग चुका था। उन्होंने घर चलानें के लिए एक बैंक में नौकरी भी की लेकिन उनका मन नहीं लगा ।कुछ समय बाद उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी । तत्पश्चात वे प्रयाग आ गये और वहां ‘सरस्वती’ और ‘अभ्युदय’ नामक पत्रों के सम्पादकीय विभागों में कार्य किया। लेकिन स्वास्थ्य ने यहाँ भी उनका साथ नहीं दिया। अतः वे फिर कानपुर वापस आ गये और 19 नवम्बर, 1918 से कानपुर से साप्ताहिक पत्र ‘प्रताप’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया और यहीं से उनके नये जीवन का प्रारंभ हुआ। ‘प्रताप’ पत्र के लिए विद्यार्थी जी ने पूरे मन और उमंग के साथ काम किया और जनता व बुध्दिजीवियों में एक नया जोश भरा एवं आजादी की लड़ाई लड़ रहे लोगों को एक नया मार्ग दिखाया । कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन को तीव्र करने में कानपुर के प्रताप कार्यालय का योगदान स्तुत्य है। गणेश जी मात्र पत्रकार अथवा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं थे अपितु अपने में एक महान संस्थान थे। उस समय भारत का कोई ऐसा आन्दोलन नहीं था जो कि गणेश जी से प्रेरणा न पाता हो।पं. माखन लाल चतुर्वेदी, कृष्णदत्त पालीवाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन,दशरथ प्रसाद द्विवेदी की भांति भगत सिंह ने भी गणेश जी के द्वारा प्रेरित होकर पत्रकारिता को पेशे के रूप में अपनाया। ‘कर्मवीर’, ‘स्वदेश’, ‘प्रताप’ एवं ‘सैनिक’ के चलते अंग्रेज सरकार भयभीत हो गयी तथा वह पत्रकारों और क्रांतिकारियों पर दृष्टि रखने लगी। पराधीन भारतमाता की करूण पुकार ,स्वदेशाभिमान, अत्याचार के प्रति रोष, राष्ट्रसेवा के प्रति निष्ठा से प्रेरित होकर गणेश जी ने प्रताप द्वारा अविस्मरणीय कार्य किये। गणेश जी प्रताप में प्रतिदिन की सामग्री देखते थे और दूसरे दिन के लिए निर्देश दिया करते थे। उनकी सम्पादन कला तथा कार्य पध्दति का स्तर उच्च्कोटि का था। वे प्रायः बोलकर अग्रलेख या टिप्पणी लिखवाया करते थे। वे अपने सहयोगी सम्पादकों की सामग्री का सम्पादन करते समय लाल स्याही से सारे पन्ने रंग डालते थे। समय – समय पर विद्यार्थी जी ने पत्रकार और पत्रकारिता के विविध पक्षों पर प्रकाश भी डाला। क्रान्तिकारियों, पत्रकारों, साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी के प्रशिक्षण सहयोग और विकास के द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप को गौरवान्वित किया। विद्यार्थी जी तत्कालीन पत्रकारिता के एक प्रकार से प्राणतत्व थे। क्रान्तिकारियों के प्रति विद्यार्थी जी के मन में निश्छल स्ेह था। वे क्रान्तिकारियों को त्यागशील तपस्वी मानते थे। देश में जागरण लाने के लिए उन्होंने ”प्रकाश पुस्तकमाला” का आयोजन किया। इसके द्वारा उन्होंने देश-विदेश के क्रान्तिकारियों की जीवनी प्रकाशित की। क्रान्तिकारी भगत सिंह ने भी ‘प्रताप’ में कुछ समय तक कार्य किया। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारम्भिक दौर में मुसलमानों ने अच्छा साथ दिया लेकिन अंग्रेजों के भड़काने के कारण वे पाकिस्तान की मांग करने लग गये थे। इसी दौरान कानपुर में मुसलमानों ने भयंकर दंगा किया। विद्यार्थी जी सीना खोलकर दंगाइयों के आगे कूद पड़े। उस समय दंगाई पुूरे जोश व गुस्से में थे अतः उन्होंने विद्यार्थी जी के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। केवल एक बांह में उनका नाम लिखा था जिससे उन्हें पहचाना जा सका। इस प्रकार भारत का सच्चा सपूत गणेश शंकर विद्यार्थी 25 मार्च, 1931 को शहीद हो गया।

 

1 COMMENT

  1. mirtyunjay ji aapne oopar poora lekh achchhi तरह लिखा है.विद्यार्थी ki kafi tareef ki jo ki bilkul sahi है,lekin aapne musalmaanon ko bura kahne ke liye is lekh ka sahara kyon liya.pahle itihas theek se padhiye,baad mein musalmanon ko kosiye.

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