दफन हो जाये ऐसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

मकबूल फिदा हुसैन को लेकर फिर चर्चा है। कतर की नागरिकता लेने के बाद उनके पक्ष में तकरीरें की जा रही है। प्रगतिशील और भारतीय आस्थाओं के विरोधी एक बार फिर लामबंद, सक्रिय और आक्रामक हैं। हुसैन की करतूतों के कारण भारत में उनका काफी विरोध हुआ। भारत में कानून की हालत यह है कि यहां सद्विचार और गाली में कोई भेद नहीं होता। लचर कानून और व्यवस्था के कारण मनमाफिक न्यायालय, प्रदेश और देश चुनने की सुविधा है। इसमें भी कुछ परेशानी हो तो देश छोड़कर ही चले जाओ। कानून के नाम पर भागने वाले को भगोड़ा कहा गया है। लेकिन इस देश के कई विद्वान, लेखक, साहित्कार और कलाकार एक भगोड़े के प्रति गुस्सा और क्षोभ व्यक्त करने की बजाए आंसू बहा रहे हैं। नाम भारत का, लोकतंत्र और कानून का ले रहे हैं, लेकिन अपने ही मुह पर हुसैन का जूता और तमाचा मार रहे हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम लेकर कुछ हुसैन समर्थक अश्लीलता, भारतीय अस्मिता, देवी-देवताओं के प्रति आस्था, भारत के रूप में करोड़ों की माता का अपमान करने वाले हुसैन और उसकी करतूतों पर पर्दा डालने और उसका बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं। हुसैन की करतूत या निम्न स्तरीय व घटिया कला निजी नहीं, बल्कि सार्वजनिक हुई है। अभिव्यक्ति जब सार्वजनिक होती है उसका प्रभाव व्यापक होता है। हुसैन की अभिव्यक्ति से करोड़ों लोग आहत होते रहे हैं। अपने-अपने अनुसार लोगों ने प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति भी की है। कुछ ने उनकी नाजायज कलाकृतियों को तोड़कर अपनी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त की, इसमें अनुचित क्या है? जो सांप्रदायिक होगा वह सांप्रदायिक स्तर पर विरोध करेगा, जो कलाकार होगा वह कला के स्तर पर विरोध करेगा। जैसे शब्दवान शब्दों से प्रक्रिया करेगा, वैसे ही बलवान अपने बल से। अभिव्यक्ति का अपना-अपना माध्यम हो सकता है। होना भी चाहिए। ये तो अच्छा है कि भारत के हिन्दुओं या बजरंगियों ने अभिव्यक्ति का नक्सलवादी, माओवादी, मार्क्‍सवादी या इस्लामी तरीका अख्तियार नहीं किया। अगर किया होता तो कानून भी बेबस होता और हुसैन भी। अगर इस्लामी अभिव्यक्ति के तहत हुसैन का सिर कलम हो जाता तो वे कतर में न होते।

वो तो हिन्दुओं ने अपने उपर शराफत का मुल्लमा चढ़ा रखा है। नही ंतो अपनी मां और बहन-बेटी की इज्जत-आबरू को सार्वजनिक करने को पाप माना जाता है, ऐसा करने वाले को पापी। हिन्दू शास्त्रों में पापी को क्या सजा मिलती है? भला हो इस देश की न्याय व्यवस्था और कानून का जो हुसैन जैसे पापियों को भी कला और अभिव्यक्ति के नाम पर बक्श देती है। हुसैन ने जो किया है वह इस्लाम विरोधी तो है ही, लेकिन इस्लामी सोच वाले उनके कृत्य पर सजा नहीं पुरस्कार देंगे, क्योंकि उनका यह कृत्य हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी है। अपनी श्रद्धा, आस्था और पूज्य मानकों के प्रति गलत विचार रखने के लिए हिन्दुओं में भी सजा का प्रवाधान है। लेकिन भारत में चूंकि अ-धर्म का बोल-बाला है। यहां धर्म से निरपेक्षता सबसे बड़ी बात है। इसलिए यहां विधर्मी, अधर्मी, धर्म विरोधी सब कानून से उपर हैं।

भारत के बुद्धिजीवी प्रगतिशीलता के नाम पर हुसैन के पाप को भी कला का दर्जा दे रहे हैं। हुसैन को भारत, भारतीयता, भारतीय संस्कृति हिन्दू और यहां की देवी-देवताओं से नफरत हैं। अपनी पेटिंग्स के माध्यम से वे इन सब को गालियां देते हैं। जाहिर है वे ही गालियां असरकारी होती हैं जो अपने प्रिय या आत्मीय के बारे में अधिकतम बुरा व्यक्त करती हैं। हिन्दुओं को ये गालियां लग गई हैं। लगना इसलिए स्वाभाविक है कि वे भारत को माता मानते हैं। अगर अपनी मां को नंगा होते देख उसका विरोध करना सांप्रदायिक है तो ये सांप्रदायिक विरोध भी जायज है। हुसैन के शुभचिंतकों से एक गुजारिश है। वे सब जो हुसैन की कला के मुरीद हैं, भारतमाता की ही तरह अपनी बहन-बेटियों और माताओं की एक-एक नंगी, खुली, संभोगरत तस्वीर या पेंटिंग बनवा लें। इनके प्रदर्शन के लिए कोई आर्ट गैलरी की जरूरत नहीं होगी। पूरा देश ही आर्ट गैलरी बन जायेगा। शायद कला की कम समझ रखने वाले भी कला प्रेमी हो जायें। कोणार्क और खजुराहो का नाम लेकर हुसैन के पाप को जायज ठहराने वाले तब अपने ही घर की कलाकृतियों का बेहतर उदाहरण दे सकेंगे। हुसैन की तरह पोर्नोग्राफी, यौन-विकृति और हिन्दू विरोध से ग्रस्त उनके प्रशंसकों को हुसैन की इस कला अभिव्यक्ति में रियलाइजेशन भी होगा। अगर ऐसा हो सका तो निश्चित ही हुसैन का विरोध कम हो जायेगा। ‘इरोटिक कला’ के प्रेमी, हुसैन प्रशंसकों और समर्थकों की बहु-बेटियों की उत्तेजक पेटिंग अपने डाइंग हॉल में लगा अपने कला प्रेम का इजहार भी कर सकेंगे और हुसैन की प्रशंसा भी। तब न हुसैन का इतना विरोध होगा और न ही उन्हें भारत से भगोड़ा होने की जरूरत रहेगी। देश में ‘इरोटिक कला’ प्रमियों का एक नया वर्ग तैयार होगा। हुसैन और उनके समर्थकों को काफी सुकून भी मिलेगा।

अगर ऐसा न हो सके तो हुसैन कतर और अन्य इस्लामी देश में ही अपनी रचनाधर्मी कला को अभिव्यक्त करें। वहां भी बहुत-सी बहन-बेटियां, बहुएं इस ‘पाप-कला’ के लिए मिल जायेंगी। अगर कम पड़े या कोई कठिनाई हो तो हुसैन अपने घर की ‘‘चीजों’’ का उपयोग कर सकते हैं। भारत की धरती उनके लिए ना-पाक है, ना-पाक ही बनी रहेगी। एक ऐसे इस्लामी कट्टर और यौन विकृति के शिकार कलाकार को भारत में न तो बौद्धिक और न ही भौतिक स्थान देने की जरूरत है जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत करता है। भारत में सब बुराइयों के बावजूद यहां स्त्रियों का बहुत आदर और सम्मान है। कम-से-कम इस्लाम और इसाई देशों से अधिक तो है ही।

हुसैन ने कतर की नागरिकता स्वीकार कर प्रगतिशील लेखकों और सेक्यूलर सोच वालों के मुह और सिर पर जूता जरूर मारा है, लेकिन हिन्दुओं, धर्मनिष्ठ नागरिकों और भारतमाता के पुत्रों में एक नए उत्साह और साहस का संचार किया है। अब कोई भी कला-पापी अपने को अभिव्यक्त करने से पहले कुछ तो सोचेगा ही। राष्ट्रवादी और आस्थावादी अभिव्यक्ति को नकार और सिर्फ हुसैनी और प्रगतिशील अभिव्यक्ति को स्वीकार मिलना हो तो दफन हो जाए ऐसी अभिव्यक्ति और ऐसी स्वतंत्रता! नक्सली, माओवादी और इस्लामी प्रतिक्रिया और अभिव्यक्ति के बरक्श बजरंगी अभिव्यक्ति को सलाम!

– अनिल सौमित्र

6 COMMENTS

  1. मैं लेखक महोदय से सहमत हूँ
    लेकिन मैं बहूत बर्षों से देख रहा हूँ हुसैन, अरुंधती जैसे लोंगों का विरोध इलेक्ट्रोनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया या बुद्धिजीवी वर्ग में क्यों नहीं होता है?

  2. kahte hai ek baar Mahatma Gandhi aur Vinoba Bhave ka vichar tha ki hamare prachin mandir ‘Khajuraho’ aur ‘Konark’ aadi ko jahan mandiron ki bahari deewaron par stri-purushon ke ‘mathun’ ke chitra khude hai in mandiron ko mitti ke neeche daba diya jaye kyonki ye mandir hamari ‘sanskriti’ ke parichayak nahi hai..jara vichar karen yadi aisa ho jata to kya hota?

  3. शानदार लेख ! बात रही दुर्गाप्रसाद जी की , तो देश में लम्बे समय से सेकुलर बनने का फैशन चल रहा है ! ये भी उसी के शिकार है इसलिए इनकी बातों परे ध्यान न दे ! हुसैन एक दो कौड़ी का इंसान और चित्रकार है जो हमारे भटके हुए मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया है ! अब जल्द ही वो जन्नत जाने वाला है ( क्योंकि उसने काफिरों अर्थात भारतीय को चोट पहुचाई है )!

  4. हम दुर्गाप्रसाद जी की बातों से असहमत है.हुसैन ने जो नंगई अपनी तथाकथित पेंटिग्स द्वारा हमारी आस्था पर थोपी है उसकी तुलना में तो लेख की भाषा बहुत ही शालीन और संयत है.

  5. आपने बिलकुल सही लिखा है / हुसैन गंदगी का पुतला है / यदि वो ऐसा कम इस्लाम के खिलाफ करता तो उसका सर कब का कलम हो गया होता / लेकिन हिन्दू 1000 साल गुलाम रहा है -वो कायर हो चूका है -उसका खून बर्फ की तरह ठंडा हो चूका है , इसलिए यदि कोई साहसी हिन्दू उसका पुरजोर विरोध करता है तो उसे नकारात्मक मानसिकता वाला घोषित कर दिया जाता है/

  6. यह तो शुद्ध गाली-गलौज है. तर्क की भाषा तो ऐसी नहीं होती.
    आप किसी से भी असहमत हो सकते हैं, लेकिन असहमत होने के लिए अशिष्ट होने की कोई ज़रूरत नहीं होती.

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