अधिकार स्वतंत्र कथन या अभिव्यक्ति का

सविनय शुक्ल

अधिकार स्वतंत्र कथन या अभिव्यक्ति का आज हम हिंदुस्तान को विकासशील राष्ट्रों में सबसे अव्वल पाते हैं| वहीं हिंदुस्तान को दुनिया की एक सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में देख रहे हैं| जो दुनिया का नेतृत्व करने के लिए महत्वपूर्ण मालूम होती है| इसके अतिरेक हिंदुस्तान में एक अपने ही तरह के वैचारिक द्वन्द को हम देख सकते हैं| जहाँ पिछले कुछ वर्षों से पुरे देश में यह चर्चा जोरों पर है कि असल में व्यक्ति की अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की सीमाएँ क्या हैं या क्या होनी चाहिए? जहाँ प्रारंभिक मानव अधिकार प्रलेखों में हमें व्यक्ति की अभिव्यक्ति को स्वतंत्र होने के प्रमाण मिलते हैं| जैसे(Athen’s democratic ideology) एथेंस प्रजातान्त्रिक विचार धारा में हमें देखने को मिलता है| जिसे हम दुनिया का पहला प्रजातंत्र भी कह सकते हैं| परन्तु यदि हम आज के वैचारिक परिवेश की चर्चा करें तो पायेंगे की article 19 of the universal declaration of human rights, 1948 अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस क़ानून को हमने भी अपनाया है| जो व्यक्ति को आजादी देता है, अपने विचार को रखने की और अभिव्यक्ति को प्रगट करने की| चाहे वह समाज के मूल सिद्धांतों से अलग ही क्यों न हो| आज अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार नियमों के द्वारा विचारों की आजादी या अभिव्यक्ति की आजादी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है| परन्तु इसके अतिरिक्त हम पुरी दुनिया में इसका हनन होता भी देख सकते हैं| चाहे हम चीन की बात करें या ईरान की दुनिया में हर जगह हर देश में अभिव्यक्ति के अधिकारों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हनन होते हुए देख सकते हैं| 2007 में ईरान की सुप्रीम नेशन सिक्योरिटी कॉउन्सिल ने तो कई पत्रकारों को कारागार में डाल दिया था| बेशक यहाँ भी इन पत्रकारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी या विचारों को रखने की आजादी का हनन हुआ ही होगा| इस सबके बीच हम इंग्लैंड को नहीं भूल सकते जहाँ अभिव्यक्ति की आजादी के लिए, इंग्लैंड सरकार ने अपने यहाँ ‘स्पीकर कॉर्नर’ बनाया है| जहाँ कोई भी व्यक्ति सरकार या देश या फिर समाज के पक्ष में या उसके विपरीत अपने विचार को प्रस्तुत कर सकता है| यदि हम भारत की बात करें तो हमारे संविधान में भाग-(III) अनुच्छेद 19(1)A में विचारों के अधिकार अथवा अभिव्यक्ति के अधिकार हैं| जो व्यक्ति को आजादी देते हैं विचार को रखने की और अपनी अभिव्यक्ति को प्रगट करने की भी| भारतीय संविधान के अनुसार, इन अधिकारों की सीमाएँ अनुच्छेद 19(2) में हैं| लेकिन हमारे विचारों का अधिकार या अभिव्यक्ति का अधिकार किसी संविधान या प्रजातंत्र के प्रदान करने के पहले यह हमारा जन्मजात अधिकार भी है| इस बीच यदि हम भारत पर नजर डालें तो पायेंगे की पुरा भारतवर्ष एक अपने ही तरह के वैचारिक द्वन्द से जूझ रहा है| चाहे हम कुछ वर्ष पहले घटी घटना को देखें| जिसमें JNU के विद्यार्थियों को देश विरोधी नारे लगाने के कारण कारागार में डाल दिया गया और उन पर मुकदमा अभी न्यायालय में है या इस समय देश में होने वाली मॉब लिंचिंग को ही देखें| इन सब घटनाओं ने कहीं न कहीं एक प्रश्न को जरूर जन्म दिए है कि अभिव्यक्ति करने की सीमा क्या हों और क्या होनी चाहिए? क्या हैं इस विषय की व्यापकताएँ? लेकिन अभी भी इस विषय पर शायद व्यापक चर्चा होनी चाहिए| विचारों या अभिव्यक्ति करने की आजादी पर एक बहस करने की जरुरत तो है पर क्या हम जिस वैचारिक आजादी की बात करते हैं| उसे कहीं पीछे छोड़ रहे हैं या उससे ज्यादा अपेक्षा कर रहे हैं| आज वैचारिक आजादी के नाम पर हम राष्ट्रीय एकता और समाज को तोड़ने की बात कह रहे हैं| अपने ही राष्ट्र पर आघात कर रहे हैं| शायद यह अब जरुरी है कि हम विचारों या अभिव्यक्ति के अधिकारों की सीमाएँ और व्यापकताएँ सुनिश्चित करें| इन सबके अतिरिक्त हम युवाओं को यह प्रण लेना चाहिए कि हमारे निर्णयों से और हमारे सार्थक प्रयासों से हमारा समाज और राष्ट्र गौरवान्वित हो न की शर्मसार|

————————————————————————————————————- सविनय शुक्ल savinayshukla1994@gmail.com 7692850595

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