डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में अब 10 संयुक्त सचिव नियुक्त किए जाएंगे, जो कि बाहर से लिये जाएंगे। वैसे संयुक्त सचिव के ऊंचे पद तक वे ही सरकारी अफसर पदोन्नति के जरिए पहुंच पाते हैं, जो पहले से सरकारी नौकरियों में होते हैं। इस नई पहल का विरोध कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से यह कहकर हो रहा है कि अब भाजपा की इस तिकड़म के कारण संघियों को सरकार में पिछले दरवाजे से घुसाया जाएगा या फिर उन बड़ी-बड़ी कंपनियों के अधिकारियों को उपकृत किया जाएगा, जिनकी मोदी सरकार से सांठ-गांठ है। इस तरह के आरोप शुद्ध राजनीति से प्रेरित हैं, यह कहने की जरुरत नहीं है। इस तरह के आरोप लगानेवालों को क्या याद नहीं है कि इस पहल की शुरुआत सबसे पहले कांग्रेस सरकारों ने ही की थी। 1993 में रुसी मोदी को एयर इंडिया का मुखिया नियुक्त किया गया था। 1992 में आर.डी. साही को पाॅवर सेक्रेटरी बनाया गया था। नंदन नीलकणी को ‘आधार’ योजना का प्रमुख किसने बनाया था ? क्या ये लोग आईएएस अफसर थे ? ये बाहर के लेाग ही थे। इसी प्रकार गुजरात आयुर्वेद विवि के उप-कुलपति को मोदी सरकार ने आयुष सचिव नियुक्त किया था। इसके अलावा नीति आयोग के बाहर से लाए गए अफसरों ने काफी सराहनीय काम कर दिखाया है। यह एक नया प्रयोग है। जो प्रतिभाशाली लोग सरकार के बाहर हैं, यदि उन्हें तीन या पांच साल के अनुबंध पर लिया जाता है, वे या तो असाधारण काम करके दिखाएंगे या अपने आप बाहर हो जाएंगे। मेरी राय में तो सारी सरकारी सेनाएं पांच और दस साल के अनुबंध पर कर दी जानी चाहिए। इससे अफसरों की जवाबदेही बढ़ेगी और भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी। विरोधियों का यह संदेह स्वाभाविक है कि इन बाहरी लोगों को भरते वक्त पक्षपात होगा लेकिन केबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बननेवाली चयन समिति क्या आंख मींचकर नियुक्तियां करेगी ? क्या उसे अपनी इज्जत का ख्याल नहीं होगा ? यदि कोई व्यक्ति संघी विचारधारा का है और योग्य है तेा उसे आप सरकारी नौकरी से कैसे रोकेंगे ? उसे रोकना असंवैधानिक तो है ही, अनैतिक भी है। वह व्यक्ति समाजवादी या कम्युनिस्ट या कांग्रेस विचारधारा का ही क्यों न हो, यदि वह योग्य है तो आप उस पर उंगली नहीं उठा सकते।