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मित्र के नाम पत्र - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
गंगानन्द झा तुम्हारे साथ बातें करना उकसावे में पड़ने जैसा होता है। उसमें एक प्रकार का trap रहता है कि मैं ऐसी चर्चा करूँ जिसमें मेरी पहुँच नहीं हो। जीवन-मृत्यु का क्षेत्र तिलस्म जैसा ही है न। हमने पहले भी कई बार इस प्रसंग की बातें की हैं। तुमको याद…