मित्र के नाम पत्र 2

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गंगानन्द झा
तुम्हारे पास से पत्र का पाना मेरे लिए दुर्लभ कोटि का हुआ करता है। कल की डाक से जब मिला तो तुम्हारे द्वारा दी गई जानकारी के बावजूद उपलब्धि का एहसास हुआ।
तुम्हें तो पता ही होगा कि स्थिरता नहीं रह जाने के कारण मेरी लिखावट अपाठ्य रही है अब उम्र के साथ अँगलियों की पकड़ और भी कमजोर हो जाने के कारण मुझे लिखने के लिए कम्प्युटर पर टाइप कर लिखने का सहारा लेना पड़ रहा है। ग़नीमत है कि इसकी उपलब्धता है।
तुमने शुरु में ही ‘’एमाइग्लाडा’’ की चर्चा की है। मैंने इस सम्बन्ध में अब तक कोई जानकारी नहीं पाई, इसलिए इस सम्बन्ध में किताब देखने का मन बनाया है। अंग्रेजी का शब्द है, इसकी हिज्जे तुमसे फोन पर जानना होगा तभी कोश में इसका पता चल पाएगा। Amygdala
इधर सर्दी की तीव्रता ने अपने होने का एहसास तीखेपन के साथ दिलाया है। लगता है कि अपनी सहन क्षमता घट गई है। पर फिर लगता है कि हर साल गर्मी और सर्दी के चरम पर होने पर ऐसा ही लगता रहा है कि अब हम नहीं सह सकते और हर साल भूल जाते हैं कि पिछले साल इससे तुलनात्मक रूप में अधिक तीखापन था। याद है न कि आम्रपाली का वह वाक्य—‘’विस्मृति जीवन-सुधा है।‘’ पर मुझे तो लगता है कि हम न भूलें तो अप्रिय अनुभवों के साथ जीना कम कठिन और अधिक आसान हो। ‘’हम तो इससे ज्यादा प्रतिकूलता झेलते रहे हैं’’, ऐसा कह सकें तो हौसला बढ़ता है।
गत सात तारीख को सूरज नहीं निकला था. अधिकतम तापक्रम 70 सेल्सियस था। सर्द हवा तेज थी। तभी मैं एक दफ्तर में काम से निकला था। कुछ दूर तक जाने के बाद इतना अस्वस्तिकर लगने लगा कि सुनी सुनाई बातें कि स्ट्रोक हो सकता है , याद आने लगीं। लगा कि अपनी सहनसीमा का ओर आ गया है.। सर्द हवा पर एक कविता की पंक्ति याद आई जिसमें सर्द हवा के तीखेपन की तुलना कृतघ्नता से की गई है। फिर सोचा कि शायद इस कविता में वर्णित तीखापन सर्द जलवायु के देशों में ही होता है। तो यहाँ भी उसके स्तर की सर्दी है क्या। बाद में अपु को लिखा तो उसने बताया कि कविता शेक्सपियर की है और साथ ही पूरी कविता भेज दी। कविता देखा तो पाया कि कवि के अनुसार कृतघ्नता का दंश सर्द हवा के मुकाबले बहुत अधिक होता है। तब मनुष्य की सहनसीमा के विस्तार पर हैरत और श्रद्धा हुई कि हर आदमी कृतघ्नता के दंश को झेलता रहकर भी औसत ज़िदगी जिया करता है।
अभी एक किताब मिल गई है। बड़ी दिलचस्प किताब लगती है। आदमी के विकास से सम्बन्धित बातें हैं। हमारे विभिन्न आचरणों और खूबियों की पड़ताल की है। जैसे हम बूढ़े क्यों होते हैं, मरते क्यों हैं सम्भोग एकान्त में क्यों करते हैं, आदमी के बच्चे दूसरे जीवों के शिशुओं के विपरीत लम्बे समय तक माँ-बाप पर आश्रित क्यों रहते हैं । व्यभिचार का वैज्ञानिक आधार क्या है। संक्षेप में हम जैसे हैं वैसे क्यों हैं। दिक्कत मेरे साथ है कि पढ़ने की दक्षता हासिल नहीं कर पाया और याद नहीं रख सकता।
एक काम कर रहा हूँ कि इण्टरनेट पर आनेवाली पत्रिका में बीच बीच में कोई आलेख भेज देता हूँ। फिर जब वह प्रकाशित होती है तो अपने परिचितों को बताता हूँ। यह सोचकर अच्छा लगता है कि लोगों से जुड़ाव बरकरार है। भूत नहीं हुआ हूँ पूरी तरह। तुमसे बताया था शायद कि नुनुआ पर लिखे आलेख का प्रकाशन मुझे गद्गद कर गया।
तुमने सोशल नेटवर्किंग साइट्स की बात कही , ये साइट्स ही मुझे भूत नहीं बनने देते। मोबाइल की व्यापकता आश्वस्त करती है कि एमाइग्लाडा के बारे में तुमसे जानकारी ले सकूँगा। तुम्हारे जैसे सिमटे व्यक्ति को मेरे लिए उपलब्ध यही तो कर पाता है। बुढ़ापे के समय जब जिनसे हमारा संदर्भ बना होता है, वे हमें अपने संदर्भ से हटा दिए रहते हैं और दूसरा संदर्भ हम बना नहीं पाते ऐसे साइट्स उपयोगी होते हैं।
तो अपनी दिनचर्या का एक चित्र तुम्हें दे दिया। अपने अपने handicaps के साथ जीने का तरीका और उन्हेंovercome करने के व्यायाम इस स्टेज की characteristic अनुभव हैं। इस व्यायाम में तुम हमें हम तुम्हें सहयोग दे सकें।
भरोसा करना चाहता हूं कि तुम फिर लिखोगे.

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