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सुबह से शाम तक - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
सुबह से शाम तकसूर्य की रक्ताभ किरणेंफैली -पसरी रही धरा परजीवन का सुख- दुखहर क्षण हम आत्मसात करते रहेकेवल नहीं मिली हमें प्रेम कलिकाएं…वह प्रेमजिसको पाने के लिए भ्रमर दिन भर गुंजार करता हैचातक देखता रहता है चंद्रमा के आने की राह…वह प्रेम, जो नश्वर है सचमुचजो बिंथा है /बिंधा…