लीबिया का जनांदोलन और गद्दाफी का हिंसक भाषण

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

 

लीबिया के नेता म्यूमार गद्दाफी का कल रात टीवी प्रसारण देखा। गद्दाफी साहब फासिस्टों की हिंसक भाषा में बोल रहे थे। यह भाषण जब चल रहा था तो उनके सामने जनता नहीं थी। इसका अर्थ यह है कि यह भाषण पहले रिकॉर्ड कर लिया गया था। गद्दाफी ने 75 मिनट भाषण दिया और समूचे भाषण में कहीं पर भी सभ्य भाषा का नामोनिशान नहीं था। एक राष्ट्राध्यक्ष की भाषा आज के जमाने में इस कदर हिंसक हो सकती है यह मैंने पहलीबार देखा है।

गद्दाफी के भाषण की हिटलर की हिंसक भाषा से तुलना की जा सकती है। गद्दाफी ने अपना भाषण पुराने निवासस्थान के विध्वस्त भवन के सामने खड़े होकर दिया,यह भवन त्रिपोली में है और 1980 तक गद्दाफी साहब वहीं रहते थे। उनके इसी निवासस्थान पर 1980 में अमेरिकी बमबर्षक विमानों ने हमला किया था जिसमें यह भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गया था और गद्दाफी साहब बच गए थे।

गद्दाफी का रहना था “मैं लड़ाकू क्रांतिकारी हूँ और अंत तक लडूँगा और शहीद होना पसंद करूँगा।” उन्होंने सत्ता त्यागने से साफ इंकार कर दिया। गद्दाफी ने अपने समर्थकों से घरों से निकलने और सड़कों पर विरोधियों से संघर्ष करने की अपील की। गद्दाफी ने अपने भाषण में जनता को धमकी दी है कि यदि वो सही रास्ते पर नहीं आई तो उसके साथ बर्बर बर्ताब किया जाएगा। इस संदर्भ में उन्होंने कुछ उदाहरण भी दिए ,जैसे उन्होंने सन् 1989 में चीन के तियेनमैन चौक के जनसंहार का समर्थन में उदाहरण दिया। इराक में अमेरिकी सेना ने फलूजा पर किस तरह बमबारी करके तबाही मचायी ,उसका जिक्र किया,गद्दाफी ने अपने समर्थकों का आह्वान किया कि वे घर -घर जाएं और विरोधियों को निकालकर दंडित करें। उल्लेखनीय है जिस समय गद्दाफी का भाषण दिखाया जा रहा था उस समय उनके समर्थन में मुट्ठीभर पुलिस वाले और अन्य लोग नारे लगा रहे थे। गद्दाफी अपने भाषण में वस्तुतःआम जनता को धमका रहे थे। एक तरफ उन्होंने धमकी दी कि उनके समर्थक सड़कों पर निकलेंगे और विरोधियों को सबक सिखाएंगे,दूसरी ओर आदिवासी प्रशासन संचालकों के जरिए सारे देश में शुद्धीकरण अभियान चलाया जाएगा।

कर्नल गद्दाफी जिस समय भाषण दे रहे थे और सारी दुनिया को यह आभास दे रहे थे कि उनका प्रशासन एकजुट है तो वहीं दूसरी ओर उनके प्रशासन के गृहमंत्री ने 17 फरवरी आंदोलन के समर्थन में इस्तीफा दे दिया और सेना से अपील की है कि वह जनांदोलन का समर्थन करे। अरबलीग के प्रधान और अमेरिका में लीबिया के राजदूत ने भी इस्तीफा देने की घोषणा की।

 

हाल के वर्षों में जुलूस पर हवाई हमले, हवाई गोलीबारी कहीं नहीं देखी गयी है लेकिन गद्दाफी प्रशासन ने 17 फरवरी को जनता के शांतिपूर्ण जुलूस पर राजधानी त्रिपोली में हवाई फायरिंग करवाई जिसमें 300 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। भारत में लीबिया के राजदूत ,जिन्होंने इस्तीफा दे दिया है, उन्होंने अलजजीरा को बताया कि 17 फरवरी के जुलूस पर हवाई फायरिंग की गई है। अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार यह मानवता विरोधी जघन्य कार्रवाई है और इसे जनसंहार कहते हैं।

उल्लेखनीय है गद्दाफी ने अपने देश में विरोधियों से निबटने के लिए बड़े पैमाने पर भाड़े के सैनिक अल्जीरिया और दूसरे देशों से आयात किए हैं जिनका काम है जनता पर हमले करना । गद्दाफी ने अपने समर्थकों से सड़कों पर निकलकर विरोधियों को मुँहतोड़ जबाब देने की भी अपील की है। इसके अलावा आंदोलनकारियों के खिलाफ वायुसेना के बमबर्षक जहाजों,टैंक और दूसरे युद्दास्त्रों का प्रयोग करने का भी संकेत दिया है।

लीबिया के दूसरे सबसे बड़े शहर बेनगाजी में स्थिति यह है कि इस शहर पर विरोधियों का नियंत्रण है और इस शहर में तैनात सेना ने सरकार का साथ छोड़कर विरोधियों के आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया है। इससे गद्दाफी की मुश्किलें और बढ़ गयी हैं। जिस समय गद्दाफी भाषण दे रहे थे ठीक उसी समय अरब लीग के मुखिया अमर मूसा ने सुरक्षा परिषद में अपने को लीबिया के प्रतिनिधिमंडल से उस समय अलग कर लिया जब सारी संस्थाओं के मुखियाओं की मीटिंग बुलाई गयी थी। सुरक्षा परिषद ने इस मौके पर जो बयान जारी किया है उसमें लीबिया प्रशासन की निंदा की गई है। बयान में कहा गया है कि “The members of the Security Council expressed grave concern at the situation in Libya. They condemned the violence and use of force against civilians, deplored the repression against peaceful demonstrators, and expressed deep regret at the deaths of hundreds of civilians.” ।

दूसरी ओर क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो ने कहा है कि लीबिया में बिगड़ी हुई परिस्थितियों का बहाना बनाकर नाटो के हस्तक्षेप के लिए वातावरण बनाया जा रहा है। निकारागुआ के राष्ट्रपति डेनियल ऑर्तेगा ने गद्दाफी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है। वेनेजुएला के राष्ट्रपति हूगो चावेज अभी चुप बैठे हैं। पेरू ने अपने राजनयिक संबंधों को स्थगित कर दिया है। बोलविया सरकार ने गद्दाफी प्रशासन की निरीह जनता पर गोलीबारी की निंदा की है।

पेरिस स्थित अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के अनुसार विरोधियों का सिर्ती,तॉबरूक,मिसोरटा,खोम्स, तारहुनाह,जेनटिन,जाबिया ,जौरा और बेनगाजी पर नियंत्रण है। इसके अलावा लीबिया के प्रमुख आदिवासी समूह ने गद्दाफी का साथ छोड़ दिया है। उल्लेखनीय है लीबिया के प्रमुख आदिवासी समूह का विगत 40 साल से गद्दाफी को समर्थन मिलता रहा है। और वे उनके समर्थन से ही टिके रहे हैं। लीबिया की प्रमुख सैन्य टुकड़ी इसी आदिवासी समूह के सैनिकों की है।

दूसरी ओर गद्दाफी के फैसलों का विरोध करे हुए और जनांदोलन का समर्थन करते हुए अनेक राजनयिकों ने इस्तीफे दे दिए हैं। लीबिया के मजदूर भी संघर्ष में कूद पड़े हैं और उन्होंने लीबिया के सबसे बड़े तेल उत्पादन केन्द्र नफूरा में कामकाज ठप्प कर दिया है।

अब तक लीबिया के एक दर्जन से ज्यादा राजनयिक इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें प्रमुख हैं गृहमंत्री,अरबलीग के प्रधान,इसके अलावा भारत,अमेरिका,चीन,इंण्डोनेशिया, मलेशिया, पोलैण्ड ,बंगलादेश, और आस्ट्रेलिया के राजदूतों ने भी जनांदोलन के समर्थन में इस्तीफा दे दिया है। दूसरी ओर विकसित पूंजीवादी देश अपने आर्थिक हितों की,खासकर तेलहितों की रक्षा के लिए अति सक्रिय हो उठे हैं और लीबिया की ओर अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा,जर्मनी,इटली और नीदरलैण्ड के नौ सेना जहाज प्रस्थान कर चुके हैं। लीबिया के तेल उत्पादन केन्द्रों पर जो विदेशी कर्मचारी,इंजीनियर आदि काम कर रहे हैं उन्हें तुरंत बाहर निकालने के प्रयास किए जा रहे हैं ,क्योंकि लीबिया में जो हालात बन गए हैं उसमें गृहयुद्ध के छिड़जाने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं। लीबिया की इतनी विस्फोटक परिस्थितियों के बाबजूद अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा और विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन का अभी तक कोई बयान तक नहीं आया है।

 

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