बढती ही जाएंगी गडकरी की दुश्वारियां

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महाराष्ट्र के नेता नितिन गडकरी को संघ के वरदहस्त के चलते भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान अवश्य ही मिल गई है, किन्तु अब तक राज्य विशेष में सिमटे होने के कारण उनके सामने का मार्ग पूरी तरह शूलों से ही भरा नजर आ रहा है। गडकरी के सामने देशव्यापी पहचान बनाने का संकट तो है ही साथ ही उनके नेतृत्व में अनेक वरिष्ठ भाजपाई अपने आप को असहज ही महसूस कर रहे हैं।

भाजपा के दुलारे समझे जाने वाले गडकरी की जैसे ही भाजपाध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी होने की खबरें फिजां में तैरीं उन्हें उन्हीं के महाराष्ट्र सूबे से हार का तोहफा मिला है, जिसकी प्रतिक्रियाएं बहुत अच्छी नहीं आ रहीं हैं। संघ के गढ नागपुर और मुंबई में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन ने गडकरी के सामने अनेक प्रश्नवाचक चिन्ह छोड दिए हैं। मुंबई में भाजपा के मधु चव्हाण चुनाव हार गए हैं, उधर शिवसेना के रामदास कदम ने भाजपा द्वारा भीतराघात के आरोप गडकरी को इसलिए भी बेचैन कर सकते हैं, क्योंकि इससे भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में दरार बढ सकती है। गौरतलब होगा कि नागपुर की सीट पिछले बारह सालों से भाजपा के कब्जे में गडकरी के कारण ही थी, और अब उनके अध्यक्ष बनने के उपरांत भाजपा का यह सुरक्षित गढ भी ढह गया।

गडकरी के सामने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश सूबा एक चुनौती के तौर पर ही होगा। निर्वतमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह इसी राज्य से हैं। सर्वाधिक लोकसभा सीटों को अपने दामन में समेटने वाले इस सूबे के अंदर सरकार बनाने और ढहाने की ताकत रही है। नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने के साथ अब इस सूबे में मृतप्राय पडी भाजपा में जोश खरोश भरना उनके लिए सबसे बडी चुनौती ही होगी। लोगों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि उत्तर प्रदेश में गडकरी के नेतृत्व में भाजपा अपना खोया जनाधार पाने में सफल होगी भी अथवा नहीं।

भाजपा के नए निजाम गडकरी के अध्यक्ष बनने के उपरांत कल्याण सिंह, गोविंदाचार्य और उमाश्री भारती जैसे नेताओं की घर वापसी की बात को जल्दबाजी में दिया बयान ही माना जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि गडकरी द्वारा बयानबाजी में की गई इस तरह की पेशकश पर तीनों नेताओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं देकर संकेत दिया है कि उनके मुकाबले नितिन गडकरी अभी काफी जूनियर हैं।

सूबाई राजनीति की उपज नितिन गडकरी अपने कंधों पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसी भारी भरकम जवाबदारी का सफलता पूर्वक निर्वाह कर पाएंगे कि नहीं यह बात तो भविष्य के गर्भ में है, किन्तु गडकरी को राष्ट्रीय राजनीति के दांव पेंच और राष्ट्रीय अध्यक्ष की गरिमा मर्यादा के एक एक शब्द को सीखना बहुत जरूरी है, वरना अपरिपक्व राजनेता की तरह अगर उन्होंने दो चार बार ही बयानबाजी कर दी तो भाजपा की दुर्गत होने में देर नहीं लगेगी।

इन सारी दुश्वारियों के अलावा गडकरी के सामने सबसे बडी चुनौती कुछ और ही है। दरअसल पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को गडकरी की अध्यक्ष पद पर ताजपाोशी पसंद नहीं आ पा रही है। पार्टी का एक धडा गोपीनाथ मुंडे को पार्टी की कमान देने को लामबंद था।

महाराष्ट्र के राजनैतिक परिदृश्य में स्व.प्रमोद महाजन के रिश्तेदार गोपीनाथ मुंडे और वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी के बीच अनबन किसी से छिपी नहीं है। पिछले ही साल मुंबई के भाजपाध्यक्ष के चुनाव के दौरान मुंडे और गडकरी का टकराव सडकों पर आ गया था। गडकरी और मुंडे के बीच टकराव टालने के लिए पार्टी के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी ने मुंडे को लोकसभा में सुषमा के स्थान पर पार्टी का उपनेता बना दिया है।

मुंडे सम्मानजनक पद पाकर खामोशी अख्तियार कर सकते हैं, किन्तु भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अनंत कुमार मुंडे की इस पदोन्नति पर खून का घूंट ही पीकर रह गए हैं। लाल कृष्ण आडवाणी के पद तजने के बाद सुषमा स्वराज को उनके स्थान पर बिठाया जाना तय था। इसके साथ ही साथ उपनेता के पद के लिए प्रबल दावेदार भाजपा के इकलौते मुस्लिम सांसद शहनवाज हुसैन, अनंत कुमार और यशवंत सिन्हा थे। इन तीनों को ही निराशा हाथ लगी है। पार्टी अनुशासन के डंडे के चलते खुलकर तो कोई कुछ नहीं कहेगा, किन्तु गडकरी के मार्ग में शूल बोने से कोई चूके इसकी संभावनाएं कम ही हैं।

राजनाथ की टीम के सदस्यों को गडकरी किस तरह एडजेस्ट कर पाएंगे इस बात पर सभी की निगाहें गडी हुई हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत, भाजपा उपाध्यक्ष गुख्तार अब्बास नकवी, महासचिव विजय गोयल जैसे धुरंधरो के अलवा पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह आदि के लिए उनके कद के हिसाब से माकूल पद खोजने में गडकरी की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक सकतीं हैं।

वैसे अगर देखा जाए तो निर्वतमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह को एक भी दिन उनके विरोधियों ने चैन से बैठने नहीं दिया। 7 रेसकोर्स रोड (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री के अधिकृत आवास) को आशियाना बनाने का सपना मन में संजोए आडवाणी के सिपाहसलारों ने ही राजनाथ को पूरे समय पार्टी की ओर ध्यान केंद्रित करने के बजाए अपनी कुर्सी किस तरह बचाए रखी जाए इस जुगत कें ज्यादा उलझाए रखा था। सुषमा स्वराज ओर वेंकैया नायडू ने तो कुछ समय के लिए राजनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था।

अब प्रधानमंत्री बनने की लालसा भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेताओं के मन में जरूर हिलोरे मार रही होगी। आने वाले समय में उनका प्रयास होगा कि किस तरह वे अपनी अपनी जमीन को मजबूत करने के साथ ही साथ गडकरी को कुर्सी बचाने की कवायद तक ही सीमित रखें।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
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