गंगा और भारत

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सौरभ मालवीय

गंगा शब्द का अर्थ तीव्रगामनी होता है लेकिन भारत में इस शब्द का अर्थ एक पवित्र नदी के रूप में है। इसका अर्थ पुरूषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का साधन है यू तो संसार में हजारों नदियां हैं और भारत में भी एक सौ तेरह विपुल जल वाली नदियां है परन्तु भारतीय आस्था में गंगा को केवल नदी नहीं माना है इसे तो ब्रम्हद्रव, सूरसरी, त्रिपथगा, मंदाकिनी, पूर्णयसलीला, अमृत धारा, पावनपात, पतीतपावनी, कलमशनाषीनी, आनन्ददायिनी, शिवप्रिया, सकलदोषनिवारिणी यहां तक कि जगत जननी भी माना गया है। नदियों पर तो मानव की सभ्यता विकसित हुई है। सरस्वती, शतद्रु, चन्द्रभागा, तृष्णा, नील, दजला, फारात, गोदावरी, इरावती, वित्तसा, हडसन, टेम्स, सुधा, हवाग्रहो, यागयटीसी क्यांग, मीकांग इत्यादि नदियों ने मानवता की उत्थान और पतन की हजारों काहानियों देखी है। और कृतज्ञ मानवता ने इन नदियों के सम्मान में अपनी सारी प्रतिभा लगाकर के गीत गाये है।

लेकिन गंगा के महत्व के लिए एक ही यह बात काफी है कि विश्‍व की समग्र नदियों पर जितना लेखन वाचन हुआ है उसके हजार गुना से भी ज्यादा केवल गंगा पर हुआ है। भारत में गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया है पुराण कथाओं के अनुसार भगवान शिव की लीला भूमि कैलाश मानसरोवर के तीन दिशाओं से तीन धाराएं निकली। पूर्व वाली धारा ब्रम्हपुत्र हो गयी, पश्चिम वाहिनी धारा सिंधु के सम्मान से गौरवान्वित हुई। उत्तर में तो साक्षात् शिव स्वयं कैलाश पर विराजमान है एवं दक्षिणी धारा पतित पावनी मां गंगा के नाम से जग विख्यात हो गयी। मान सरोवर से गो मुख तक अदृश्‍य ग्‍लेशियरों से गुजरती हुई यह देव धारा गोमुख में दृश्‍यमान होती है। तब तक यह शिव द्रव अनेक प्रकार के खनिज लवणों को अपने भीतर समाहित कर लेती है। जिसमें वैज्ञानिक दृष्टि से सल्फर और वैकटियोफाच भी प्रचुर होता है इसी के कारण यह पावन गंगा जल अनन्त काल तक शुद्ध बना रहता है। धरती का यह एक मात्र ऐसा जल है जिसमें यह गुण पाया जाता है आखिर हो भी क्यों न देव देवभगवान शिव के ऊपर जो विराजमान रहती है उन्ही की कृपा से इस पावन भागीरथी की यह विशिष्टता के प्रति संसार विनत है।

गोमुख से गंगा सागर तक 2525 कि.मी. लम्बे इस पावन धारा के सान्निध्य में भारत के 29 बड़े शहर 23 महानगर पालिकायें और 48 नगर पालिकायें बसी हुई है। दो विश्‍वविख्यात कुम्भ मेले लगते है हिमालय और गंगा के सायुज्य में आज तक लाखों-लाख महामानवों ने इतनी तपस्यायें की है कि वह पूरा वातावरण पवित्र वैचारिक तरंगों से आवेशित हो गया है। इसी कारण गंगा के सानिध्य में पहुचते ही एक विशेष प्रकार की आत्मिक आनन्द कि अनुभूति होती है। यह अनुभूति शब्दों में अवार्णनिय है। इसे साक्षात् जिया जा सकता है अनुभव किया जा सकता है और पीया जा सकता है। यह भाव इतना घनीभूत हो गया है कि केवल गंगा नाम के जप से भी लाखो-लाख लोग पुरूषार्थ को प्राप्त करते है। यह बात लोक विख्यात हो गयी है कि –

गंगा-गंगा जो नर कहही।

भूखा नंगा कभऊ न रहही।।

भगवान शिव का पूजन करते समय गंगा जी का स्मरण अनिवार्य माना गया है। ”हर-हर गंगे भवभय भंगे” यह मंत्र दिव्य फल दायी है। इन्हीं विशिष्टताओं के कारण ऋषियों ने समाज में यह व्यवस्था बना दी की पावन गंगा का दर्शन, स्पर्शन, प्राशन और मंज्जन चारो पाप निवारणी है। भारतीय संस्कृति में जिन लोगों को गंगा उपलब्ध नहीं है वे मंत्र के द्वारा पवित्र गंगा को स्मरण करते है। और उस अभिमंत्रित जल के प्रयोग से कृतपूर्ण अनुभव करते है मरते समय भी यह अंतिम साध होती है कि एक बूंद गंगा जल प्राप्त हो जाये। भारत में गंगा केवल नदी नहीं अपितु पवित्रता का ब्राण्ड़ नेम बन गयी है। गोदावरी और कावेरी को दक्षिण की गंगा कहते है तो ब्रम्हमपुत्र को पूर्व की गंगा।

इण्डोनेशिया की एक पवित्र नदी को भी गंगा ही कहा जाता है मारीशस के एक बड़े सरोवर का गंगा नाम रखा है और उस सरोवर के तट पर स्थित षिव मंदिर को मारीसेश्‍वर महादेव का नाम दिया गया है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार मीकांग नदी मां गंगा का अपभ्रंश है। भारतीय संस्कृति में गंगा चिनमय मानी जाती है। हम यदि पवित्र गंगा जल को अपने घर में एक बोतल में रखे और आस्था के साथ पूजन करें तो बरसात के दिनों में जब गंगा में बाढ़ आती है तो अपने घर वाले उस बोतल का जल स्तर भी ऊंचा हो जाता है। इसीलिए यह गंगा चिनमय है।

प्रत्येक भारतीय के घर गंगा कायिक, मानसिक और वाचिक किसी न किसी रूप में सर्वतो भावेन विराजमान रहती है। गंगा के समक्ष पवित्र भाव से जो भी याचना की जाती है वह सभी मनोकामना पूर्ण होती है। परम पूज्य गोस्वामी जी ने तो गंगा को ”वरदायिनी वरदान” कहा है। गंगा के इस 2500 हजार कि. मी. के प्रवास में 1000 से भी अधिक छोटी बड़ी नदियां मिलती है।

अंतिम स्थल गंगा सागर के पावन तट पर सांख्य दर्शन के प्रणेता भगवान कपिल मुनि का आश्रम है मकर सक्रांति के अवसर पर लाखों-लाख लोग पवित्र गंगा सागर में स्नातकूत होते है। गंगा की महिमा सर्व विधि देवोपम है। इसकी तलहटी में 40 हजार प्रकार की वनस्पतियां पायी जाती है। विश्‍व की किसी भी नदी के तलहटी में इतने प्रकार की वनस्पति नहीं पायी जाती। जहां-जहां भगवान शंकर का निवास स्थान है वहां मां गंगा अपना प्रवाह बदल देती है उत्तर काशी और काशी में उत्तर वाहीन हो जाती है। गंगा भारत की जीवन रेखा है गंगा का अस्तित्व ही भारत है। यदि गंगा भारत में न रहें तो भारत मर जायेगा दुर्भाग्य से हमारी यह पावन देव नदी बड़े गन्दे नाले के रूप में बदलती जा रही है। भारत सरकार भी अनेक प्रयत्न इसकी सफाई के लिए की और लगभग 6 हजार करोड़ रूपये खर्च भी हो गये फिर भी गंगा का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। सहारनपुर मेरठ, कानपुर, प्रयाग, काशी, बरौनी और हावड़ा में गंगा बड़ी दयनीय है। पूरा सरकारी बजट नेताओं और अधिकारियों के मकड़जाल द्वारा सोख लिया जाता है। मां गंगा इन्हें सद्बुद्धि दे कि वे इस राष्ट्रीय माता के प्रति अपना दायित्व समझे। हे मां तुमारी कीर्ति तो तीनों लोकों और 14 हो भुवन में निरंतर गूंज रही है तुम तो उनको भी तारोगी जो तुम्हें लूट रहे हैं या दुखी कर रहे हैं। तुम्हारा तो संकल्प ही है कि –

काहु ते न तारे जीन गंगा तुम तारे।

जेते तुम तारे ते ते नभ में न तारे है।।

 

काशी विश्‍वनाथ शम्भो, हर-हर महादेव गंगे।।

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डॉ. सौरभ मालवीय
उत्तरप्रदेश के देवरिया जनपद के पटनेजी गाँव में जन्मे डाॅ.सौरभ मालवीय बचपन से ही सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र-निर्माण की तीव्र आकांक्षा के चलते सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए है। जगतगुरु शंकराचार्य एवं डाॅ. हेडगेवार की सांस्कृतिक चेतना और आचार्य चाणक्य की राजनीतिक दृष्टि से प्रभावित डाॅ. मालवीय का सुस्पष्ट वैचारिक धरातल है। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मीडिया’ विषय पर आपने शोध किया है। आप का देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं अंतर्जाल पर समसामयिक मुद्दों पर निरंतर लेखन जारी है। उत्कृष्ट कार्याें के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है, जिनमें मोतीबीए नया मीडिया सम्मान, विष्णु प्रभाकर पत्रकारिता सम्मान और प्रवक्ता डाॅट काॅम सम्मान आदि सम्मिलित हैं। संप्रति- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। मोबाइल-09907890614 ई-मेल- malviya.sourabh@gmail.com वेबसाइट-www.sourabhmalviya.com

16 COMMENTS

  1. उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री डॉ. संपूर्णानन्द ने प्रसिद्ध लेखक विद्यानिवास मिश्र को बताया था कि एक बार मंगोलिया के एक मंत्री किसी सरकारी दौरे पर भारत आए थे। उन्होंने संपूर्णानन्द से निवेदन किया कि उन्हें गंगा-स्नान करना है। क्योंकि कई पीढ़ी पहले उनके एक पूर्वज ने इसकी मनौती रखी थी कि अमुक कार्य हो जाने के बाद वह अथवा उसके वंश का उत्तराधिकारी गंगाजी में स्नान करेगा!

  2. APNE SAHI BAAT KAHI HAI, LEKIN AJ AAP AUR HUM JAISE KAYEE BUDHIJIVI AISI KAYEE SACHAYEEO KO JANTE HUYE BHI KUCH NHI KR PA RHE HAI….NICE ARTICLE SIR…HOPE AAGE BHI AAP AISE HI HMARA GYANVARDHAN KARTE RHENGE…

  3. goodafternoon sir, the essay you have written on our mother ganga is very informative and well decorated with the use of right words, phrases, proverbs etc. I liked your article very much…

  4. सर आपने गंगा की महिमा,उदगम ,और इसकी हो रही दूर दशा का अच्छा चित्रण प्रस्तुत किया है ,हम आप के गंगा के विषय में कहे गए उपरोक्त कथन से पूर्ण रूप से सहमत है

  5. सर..जीवन दायनी माँ गंगे के उपर लिखा गया आपका लेख काफी ज्ञान वर्धक है.. हमे यूँ ही अपने ज्ञान के प्रवाह से सिंचित करते रहिये.. 🙂

  6. आज गंगा माता की चिंता करना हम सब भारत वासियों को जरुरी है नही तो ये तथाकथित सेकुलर नेता भारत माता को भी बेच देंगे
    आप को शुभ कामना

  7. गंगा हमारी माँ है |यह कहते तो सब है लेकिन इस माँ को आज लोग प्रदुषण रूपी दुःख देने में तनिक भी नही सोचते है |
    आपका लेख इस कड़ी में अत्यंत प्रभावशाली है |इसे पढने के बाद शायद ही कोई होगा जो इस सत्य को न माने की आज अपनी संस्कृति को बचाने के लिए हमें गंगा नदी की स्थिति को सुधारने बहुत जरुरी है | अत्यंत उत्तम कोटि का लेख है| आपको मेरा सत सत नमन |

  8. आपके लेख मे पवित्र गंगा के इत्तिहास व वर्तमान परिद्र्श्य का सजीवता से चित्रण है .
    बहुत ही उत्तम सर जी..
    सभी लोगो मे ये भाव आ जाये तो हमारे देश का उद्धार हो जायगा…

  9. सर जी बहुत सुन्दर विचार है| यह वही माँ गंगा है, जिसने भिस्म्पितःमा जैसे वीर पुत्र को जन्म दिया| जिसने अपने पुत्र को अपनी इच्छा मृतु का वरदान दिया था| वही दूसरी तरफ देखिए अपनी माँ की रक्षा के लिए निगमानंद जैसे पुत्र ने अपने प्राणों की आहुती दे दी| लेकिन हमारे राजनेताओ के कानो में जूं तक नहीं रेंगी| आब तो प्रश्न यह है की क्या अब कोई और निगमनन्द में इतना समर्थ है की वो अपनी माँ के लिए अपने प्राणों की आहुती दे सके| जो माँ गंगा पहले अपने सपूतो को चीर जीवी का वरदान देती थी आज उसी माँ को अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अपने पूतो का लहू देखना पड़ रहा है|
    मैं अपने देश के राजनेताओ से बस यही कहना चाहूँगा
    अब तो शर्म कर लो सियासती भेडियो,
    मौका पड़ने पर तो तवायफ भी घुंघरू तोड़ देती है

  10. गंगा का पवन जल
    पड़ा आज खा ट्रे में
    रासायनिक तत्व , कूड़ा करकट
    और अस्थि विसेर्गन गंगा में
    गंगा सबकी गंदगी ग्रहद कर
    सबको स्वच्छ बनती है
    जो तुम्हे स्वच्छ करे
    तुम उसे गन्दा करो
    ये कौन सा ग्रन्थ बतलाती है ……….

  11. सर! आपने तो पवित्र गंगा को लगता है भोपाल में ही उतार दिया …………………. बहुत खूब सर …..

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