प्रदूषण मुक्त गंगा, प्रदूषण मुक्त सार्वजनिक जीवन

लालकृष्ण आडवाणी

परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के स्वामी चिदानंद सरस्वती उन आध्यात्मिक विभूतियों में से एक हैं जिनका मैं अत्यंत आदर करता हूं। गंगा के किनारे उनका आश्रम सचमुच में शांति, पवित्रता और दिव्यता का स्वर्ग है। मैं अपने परिवार के साथ वहां अनेक बार गया हूं। घाट पर संध्या आरती के समय जब स्वामीजी अपने गुरुकुल के शिष्यों के भजनों के साथ मंत्रोच्चारण करते हैं तो वह अनुभव मेरे लिए सदैव अनुपम रहा है। यह हरिद्वार और ऋषिकेश आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण रहता है।

भारत को चारों ओर से घेरे खड़ी समस्याओं के समाधान हेतु उपयोगी हो सकने वाले नए विचारों को स्वामीजी जिस जोश और दृढ़ता से आगे बढ़ाते हैं, मैं उससे सदैव विस्मित हो जाता हूं। कल जब वह हमारे घर पधारे, तो उन्होंने दो नई और परस्पर सम्बध्द पहलों का वर्णन किया: मिशन सोलर, भारत को ‘सोलर (सौर) भारत‘ बनाने का; और मिशन गंगा-पवित्र गंगा की इसकी असली शुध्दता पुनर्स्थापित करने का। वे हाल ही में अमेरिका और यूरोप के लम्बे प्रवास से लौटे हैं, जहां उन्होंने नवीनीकरण ऊर्जा विशेषकर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों और उद्यमियों से सघन विचार-विमर्श किया। उन्होंने बताया कि सौर ऊर्जा अनुसंधान में और अधिक किफायती ‘Concentrated Photovoltaic‘ (संकेद्रित चित्र वैद्युत) जैसी क्रांतिकारी नई शोधें सामने आ रही हैं। जिसका नतीजा घटी हुई कीमत पर सौर ऊर्जा प्लांटों की महत्वपूर्ण रुप से उत्पादन क्षमता बढ़ने के रुप में सामने आ सकता है। उन्होंने कहा कि ये अधिकांश वैज्ञानिक और उद्यमी भारत मूल के हैं और चाहते हैं कि भारत ‘ग्रीन एनर्जी‘ विकल्पों को अपनाने में इन नवीनतम प्रौद्योगिकी वाले नए अनुसंधानों को अपनाकर बढ़त हासिल करे।

इन भारतीय मूल के वैज्ञानिकों में से एक दर्शन गोस्वामी हैं, जो अमेरिका के ऊर्जा विभाग में कार्यरत हैं। उनके द्वारा तैयार प्रेजेंटेशन, जिसे स्वामीजी ने मुझे दिखाया का आकर्षक शीर्षक है-‘भारत के लिए नवीनीकरण ऊर्जा समाधान: एक रणनीतिक विकास योजना (Renewable Energy Solutions for India: A Strategic Development Plan)। सूर्य को ”हरित ऊर्जा की सोने की खान” वर्णित करते हुए यह बताता है कि अप्रदूषित नवीनीकरण ऊर्जा समाधानों का प्रयोग करते हुए सन् 2050 तक भारत अपनी भविष्य की ऊर्जा जरुरतों की 100 प्रतिशत पूर्ति कर सकता है।

स्वामीजी ने गुजरात सरकार द्वारा सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की प्रशंसा की और कहा कि हमारे सभी प्रदेशों को इस कार्य को मिशन के रुप में अपनाना चाहिए।

लेकिन इससे ज्यादा असर मेरे दिमाग पर इस पहलू का हुआ कि कैसे स्वामीजी ने भारत को ‘सौर भारत‘ बनाने की रणनीतिक योजना को पवित्र गंगा को प्रदूषण मुक्त करने (और साथ ही भारत की अन्य पवित्र नदियों को भी) की कहीं अधिक महत्वपूर्ण पहल से जोड़ दिया है, जिससे ‘गंगा पट्टी‘ में रहने वाले विभिन्न प्रदेशों के करीब 50 करोड़ लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में भी बदलाव आएगा, और समूचे भारत में एक समग्र सांस्कृतिक परिवर्तन का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

गंगा भारत की सर्वाधिक पवित्र नदी है। और यह अनादि काल से बनी हुई है। वस्तुत: आज इसकी यह स्थिति हो गई है कि काशी तक में लोग इसके जल में स्नान करने से हिचकते हैं। यह लापरवाह और गलत नियोजित औद्योगिकरण्ा तथा शहरीकरण का नतीजा है, जिसे गंगा के साथ वाले शहरों और गांवों में प्राथमिक नागरिक सुविधाओं के अभाव ने और बढ़ा दिया है। दो घुमावों के बीच नदी के सतत् प्रवाह पर जल-विद्युत परियोजनाओं ने गंगा और इसके नैर्सिगक पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है, जिसके चलते नदी तलहटी का लम्बा क्षेत्र सूखने और आस-पास के गांवों के लिए पानी के मुख्य स्त्रोतों से वंचित होने के रुप में सामने आ रहा है।

स्वामीजी उत्साहपूर्वक तर्क देते हैं कि भारत में सौर ऊर्जा के विकास की एक रणनीतिक योजना को अपनाने से बड़ी जल विद्युत योजनाओं (जिनसे हमारी नदियों को नुकसान पहुच रहा हैं), बड़ी तापीयविद्युत परियोजनाओं (जो अस्वीकार्य कार्बन उत्सर्जन का कारण है जो पृथ्वी की जलवायु को हानि पहुंचा रहे हैं) और साथ ही आयातित जीवाश्म ईंधन (जो हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ी चपत लगता है) पर हमारे देश की निर्भरता पहले कम और अंतत: पूरी तरह से समाप्त हो सकती है। ‘सौर भारत‘ योजना के लाभदायक परिणाम तुरंत सामने नहीं आएंगे अपितु हमारे देश को अभी इस योजना को लागू करने का ‘संकल्प‘ लेना पड़ेगा और इस मिशनरी भावना से लागू करना होगा।

स्वामीजी ने अपनी बात जारी रखते हुए बताया कि ”सौर ऊर्जा मिशन”, गंगा को स्वच्छ करने के वृहद मिशन का एक अंग है। आज बहुत से लोगों को यह अहसास नहीं है कि गंगा के किनारे रहने वाले लगभग एक मिलियन लोग, इसके प्रदूषित जल से पैदा होने वाली बीमारियों के कारण प्रत्येक वर्ष मृत्यु का ग्रास बनते हैं। भारत में बम विस्फोटों में कुछ दर्जन मरने वाले लोगों की दुनिया भर में बड़ी खबर बनती है और यह बननी भी चाहिए। लेकिन गंगा पर आश्रित अनेक लोगों की दु:खद मौत भारत में भी खबर नहीं बन पाती। हमें यह हालात बदलने हैं। हमें नदी को स्वच्छ करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना ही चाहिए। और, वस्तुत: सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और जल शुध्दिकरण तथा पुनरावर्तन में अनेक नई-नई खोजें सामने आ रही हैं। इसके साथ-साथ हमें 3टी मिशन‘ भी शुरु करना चाहिए-प्रत्येक घर में एक शौचालय (टायलेट), प्रत्येक घर में स्वच्छ जल लाने के लिए एक नल (टैप) और प्रत्येक गांव तथा शहर में व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण (ट्री प्लांटेशन) किया जाए। यदि भारत इस समग्र गंगा मिशन को अपनाता है तो विदेशों में रह रहे लाखों भारतीय इससे प्रेरित होंगे। वे इसके लिए खुले दिल से पर्याप्त योगदान के लिए भी तैयार होंगे।”

स्वामीजी ने गंगा पर अमेरिका में विकसित किए जा रहे एक बड़े पोर्टल सम्बंधी महत्वाकांक्षी परियोजना की जानकारी दी जिसमें इंटरनेट की शक्ति का उपयोग करते हुए 3टी अभियान हेतु चंदा देने वाले भारत और विदेशों के संभावित दानदाताओं को गांव या शहर चुनने के विकल्प की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। और ऑनलाइन इसके क्रियान्वयन की निगरानी रखने की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी; ”इस प्रकार, प्रत्येक भारतीय को भावनात्मक और आध्यात्मिक रुप से गंगा मिशन में जोड़ना संभव होगा।”

इसके आगे स्वामीजी ने जो कहा, उसने मुझे भीतर तक छू लिया। ”भारत में प्रत्येक हिन्दू अपने प्रियजनों को उनके जीवन के अंतिम क्षणों में गंगाजल देना चाहता है। मेरा सपना यह देखना है कि जब लोग गंगाजल लें तो यह न केवल पवित्र हो अपितु शुध्द भी हो।”

उनकी इस भावना ने मुझे अपना पहला और कभी न भुलाए जा सकने वाला अनुभव कि-गंगा नदी का भारतीयों, चाहें वे उससे बहुत दूर रहते हों जैसे मेरा परिवार सिंध में रहता था-के लिए सदैव क्या महत्व है, को बताने को प्रोत्साहित किया। जब विभाजन के चलते हमें सिंध छोड़ने को बाध्य होना पड़ा और 1947 में भारत के इस भाग में आए तो मेरे पिताजी ने कच्छ के कांढला में बसने का निर्णय किया जहां सिंधियों के लिए एक नया शहर बनाया जा रहा था। लेकिन 80 वर्षीय मेरी दादी ने मेरे पिताजी को कहा:‘ मैं और ज्यादा वर्षों तक जिन्दा रहने वाली नहीं हूं। मेरी इच्छा है कि मैं अपने अंतिम वर्ष वाराणसी में पवित्र गंगा के किनारे बिताऊं। और मेरे मरने के बाद तुम कच्छ में बस जाना। ”मेरे पिताजी चार वर्षों तक वाराणसी में रहे और बाद में कच्छ के आदीपुर गए।

गंगा और विदेश में ‘भारतीय सभ्यता से जुड़े‘ के बीच के कभी न टूटने वाली डोर को दर्शाने वाले दूसरे अनुभव को मैंने स्वामीजी को बताया। विगत् वर्ष, मैं अपने परिवार के साथ इण्डोनेशिया गया था और बाली के एक रिसोर्ट में रुका था। हमारी बग्गी का ड्राइवर बाली में अन्य अनेकों की तरह एक हिन्दू था। वह भारत की एक ही चीज के बारे में जानने का इच्छुक था और वह थी गंगा।

”गंगा दिल्ली से कितनी दूर है?” कोई वहां कैसे पहुंच सकता है? उसकी स्पष्ट सघन गंगाभक्ति को देखते हुए मैंने अपनी पुत्री प्रतिभा से कहा; ”कुछ महीने पहले हम गंगोत्री गए थे और वहां से गंगाजल लाकर रामेश्वरम के शिवलिंग पर चढ़ाया था। मुझे लगता है कि अच्छा होता यदि हम कुछ गंगाजल यहां इस भक्त के लिए ले आते। वह कितना खुश होता!”

मेरे जैसा व्यक्ति जो छ: दशक से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन में रहा हो और जो राजनीति में शुचिता की वकालत करता रहा हो, तो मैं मानता हूं कि भारत में समूचे राजनीतिक वर्ग के लिए गंगा को स्वच्छ करने का मिशन आवश्यक और महत्वपूर्ण है। आज के भारत का राजनीतिक जीवन इतने अधिक भ्रष्टाचार और अनैतिकता से ग्रस्त है कि राजनीति की भी प्रदूषण मुक्त रखना स्वामीजी द्वारा बताए गए गंगा मिशन का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए।

 

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