लौटे घर को गंगाराम

लौटे घर को गंगाराम

एक साथ करके कई काम,

लौटे घरको गंगाराम|

 

बैंक गये रुपया निकलाया,

राशन कार्ड जमा करवाया|

बीमा के आफिस में जाकर,

किश्तों का पैसा भरवाया|

करके कई ,कई काम तमाम,

लौटे घर को गंगाराम|

 

जब भी घर से वे जाते हैं,

कई काम करके आते हैं|

राशन हल्दी धनिया मिर्ची,

सब्जी भी लेकर आते हैं|

समय नहीं करते बेकाम,

लौटे घर को गंगाराम|

 

वे कहते कितनी मँहगाई,

मंहगी है पेट्रोल भराई|

एक बार में सब निपटाकर,

करते ईंधन की भरपाई|

बचते इसी तरह कुछ दाम,

लौटे घर को गंगाराम|

 

ब‌च्चों को शाला ले जाते,

हुई छुट्टी तो लेने जाते

खेल‌ खेल‌ में शाम‌ ढ‌ले त‌क‌,

उन‌का सारा स‌ब‌क‌ क‌राते|

हँस‌ते गाते बीत‌ रही है,

इसी त‌र‌ह‌ जीव‌न‌ की शाम‌|

घ‌र‌ को लौटे गंगाराम‌|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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