मनुष्य बाग का माली है, मालिक नहीं

मनुष्य भगवान की सर्वोत्तम कलाकृत्ति है । भगवान ने अपना यह सृजन बड़े मनोयोग और अरमानों के साथ किया है । वे उसे देर तक दयनीय स्थिति में रहने नहीं दे सकते । माली को बगीचा सौंपा तो जाता है पर उसके हाथों बेच नहीं दिया जाता । इस विश्व की व्यवस्था मनुष्य के हाथों सौंपी जरूर गई थी, वह उसे सुन्दर, सुरक्षित और समुन्नत रखे, यह उत्तरदायित्व दिया अवश्य गया था । पर यदि वह उसे सँभालता नहीं – व्यतिक्रम करता है, तो उसी की मनमर्जी नहीं चलती रहने दी जा सकती । माली बदलेगा, क्रम सुधरेगा या व़ह जो भी करेगा, अपने अरमानों के इस सुरम्य दुनियां को इस प्रकार अस्त-व्यस्त नहीं होने देगा, जैसा की हो रहा है, किया जा रहा है ।

 

बच्चे को आँगन में खेलने की छूट जरूर रहती है, पर जब काँच खाने या आग पकडऩे की कोशिश करता है तो माँ तत्काल भागी आती है । उसे रोकती ही नहीं, धमकाती भी है ताकि वह उस तरह के हानिकर काम भविष्य में न करे, डर जाय । ऐसा ही कुछ इन दिनों होने जा रहा है ।

 

 

Book: युग निर्माण योजना – दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (१.११)

 

 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here