गौसेवा में बढ़ेगी जवाबदेही संवेदना व पवित्रता

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संदर्भ: प्रधानमंत्री का गौरक्षा बयान

modi-goraksha

इस देश के शीर्ष पुरुष गाय पर कोई पहली बार नहीं बोले हैं. हिन्दू शासक तो गाय के विषय में संवेदनशील रहे ही हैं मुगल भी मज़बूरी में गौरक्षा को लेकर सचेत रहे हैं. बाबर ने अपने पुत्र हुमायूं को लिखा था कि उसके राज्य में कभी गौहत्या न होने पाए, अबुल फजल ने आईने अकबरी में गौमांस पर प्रतिबंध की घोषणा का उल्लेख किया है, अपनी यात्रा संस्मरण में बर्नियर ने लिखा है कि जहांगीर के शासन में गौवध पर पूर्ण प्रतिबंध था, सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय में उल्लेख है कि 18 वीं शताब्दी में हैदर अली के शासन में गौवध करनें वाले के हाथ काट दिए जाने के आदेश थे. वल्लभ भाई पटेल, वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, बाल गंगाधरतिलक, मदनमोहन मालवीय, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपतराय से लेकर महात्मा गांधी तक व अन्य अनेकों शीर्ष नेता गौहत्या के विरोध में आव्हान कर चुके हैं. इस प्रकार इस देश में शीर्ष राजनीतिज्ञों का गौ बोध सदैव जागृत दिखता रहा है, किन्तु फिर भी इस देश में गौवंश समाप्ति की ओर बढ़ रहा है तो इसकी चिंता अब निर्णायक रूप से करनी ही होगी. यदि नरेंद्र मोदी गौवध पर उस निर्णायक चिंता के अंश के रूप में बोले हैं तो वे बड़े ही पुण्यशाली प्रधानमंत्री सिद्ध होंगे.

पिछले एक वर्ष में देश में गाय के नाम पर राजनीति के बहुतेरे प्रयास हुए हैं. गाय के नाम पर पुरे देश में वातावरण बनानें और बिगाड़ने के इन प्रयत्नों दुष्प्रयत्नों के मध्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर भी सैकड़ों प्रश्न उठे. नरेंद्र मोदी से बार बार गौरक्षा के मुद्दें पर व्यक्तव्य देनें के आव्हान भी बहुतेरे उठे. इस बीच बहुतेरे प्रयास ऐसे भी देखने में आये जब अपराधी तत्वों ने गौरक्षा के नाम पर सरकार को घेरने के लिए गौरक्षक बनकर समाज में विद्वेष फैलाने का काम किया (वे इस काम को और बड़े पैमाने पर करते इसकी बड़ी आशंका थी). अब पहली बार जब नरेंद्र मोदी गौरक्षा पर कुछ बोले हैं तो बहुत ही गजब का बोलें हैं और पुरे देश को भौचक्का कर गए हैं. प्रधानमंत्री ने जनता से सीधे संवाद करते हुए गौरक्षा और गाय पर जो कहा वह एक नया अध्याय लिखनें वाला व्यक्तव्य है. यद्दपि प्रधानमंत्री का समूचा व्यक्तव्य गौरक्षा के रचनात्मक उपाय न सुझाने व सच्चे गौसेवक को बदनामी से बचाने के विषय में चुप्पा सा है जो कि गलत है तथापि इस व्यक्तव्य से एक नया मार्ग खुलता सा दिखता है. नरेंद्र मोदी और उनकें तुरंत बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में पद की दृष्टि से न. दो की स्थिति वाले भैयाजी जोशी के व्यक्तव्य आनें को हमें सहजता से या हलके फुल्के में नहीं लेना चाहिए! यह एक बड़ी महत्वाकांक्षी, विस्तृत, संवेदनशील व रचनात्मक पहल का प्रारंभ है !! प्रधानमंत्री ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि इन दिनों कई लोगों ने गोरक्षा के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं, मुझे इतना गुस्सा आता है इन्हें देखकर, कुछ लोग जो पूरी रात एंटी सोशल एक्टिविटी करते हैं लेकिन दिन में वो गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं. मैं राज्य सरकारों से अनुरोध करता हूं कि ऐसे जो स्वंयसेवी निकले हैं उनका डोजियर तैयार करें, इनमें से 70-80 फीसदी एंटी सोशल एलिमेंट निकलेंगे. मोदी ने आगे यह भी कहा कि अगर सचमुच में वो गोरक्षक हैं तो वो प्लास्टिक फेंकना बंद करवा दें. गायों का प्लास्टिक खाना रुकवा दें तो ये सच्ची गोसेवा होगी क्योंकि कत्ल से नहीं बल्कि सबसे ज्यादा गायें प्लास्टिक खाने की वजह से मरती हैं. मोदी ने कहा कि स्वयंसेवा दूसरों को कष्ट देकर नहीं होती, वह तो करुणा से होती है.

प्रश्न यह है कि मोदी ने यह सब क्यों कहा? इस बात को कहनें के लिए सचमुच ही 56 ईंच का सीना चाहिए था क्योंकि जिन समर्थकों और हिन्दू संगठनों के बल पर वे लोकसभा में स्पष्ट बहुमत लेकर आये हैं उन समर्थकों में मोदी के इस बयान से हडकंप मचना व नाराजगी की लहर उपजना अवश्यम्भावी था. नरेंद्र मोदी के बयान पर हिन्दू संगठनों से नाराजगी का ज्वार उठता उसके पूर्व ही बेहद सधे हुए स्वर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने एक विस्तृत व्यक्तव्य जारी करके नरेंद्र मोदी की बात का समर्थन कर दिया. आरएसएस के सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने वक्तव्य जारी कर कहा कि समाज के कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा गौरक्षा के नाम पर कुछ स्थानों पर कानून अपने हाथ में ले कर एवं हिंसा फैलाकर समाज का सौहार्द दूषित करने के प्रयास किया जा रहे हैं. इससे गौरक्षा एवं गौसेवा के पवित्र कार्य के प्रति आशंकाएं उठ सकती है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशवासियों से आह्वान करता है कि गौरक्षा के नाम पर कुछ मुठ्ठी भर अवसरवादी लोगों के ऐसे निंदनीय प्रयासों को, गौरक्षा के पवित्र कार्य में लगे देशवासियों से ना जोड़ें और उनका असली चेहरा सामने लायें. राज्य सरकारों से भी हम आवाहन करते हैं कि ऐसे तत्वों पर उचित कानूनी कार्रवाई करें तथा गौरक्षा एवं गौसेवा के सच्चे कार्य को बाधित न होने दें. भैया जी जोशी ने स्पष्ट करते हुए करते हुए कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय गौ सदैव देश की कृषि का आधार रही हैं. रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से जब सारा विश्व पीड़ित है तब गौ आधारित आर्गेनिक कृषि का महत्व और भी बढ़ जाता है, इसलिए गौसेवा और गौरक्षा के सम्बन्ध में हिन्दू समाज तथा अन्य समाज के बंधुओं की श्रद्धा एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है.

वस्तुतः भारत में वर्तमान दौर के गौरक्षा आन्दोलन को आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद्, और भाजपा ने ही परवान चढ़ाया है. मोदी के नेतृत्व में भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होनें के पूर्व के एक दशक में भाजपा को कुछ राज्यों विशेषतः मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में गौरक्षा के नाम पर अपनें ही कार्यकर्ताओं से दो-चार होनें के विस्तृत अनुभव मिल चुके थे. इन हिन्दीभाषी भाजपा शासित राज्यों में पिछले दशक में विहिप, भाजपा और संघ के कार्यकर्ता गौरक्षा के नाम पर कई गंभीर और महत्वाकांक्षी और गंभीर प्रकल्प तैयार करनें में भी सफल रहे हैं. यद्दपि अनुशासित कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फ़ौज के बल पर संघ, विहिप और भाजपा कार्यकर्ता गौरक्षा को एक सामाजिक आन्दोलन की दिशा देनें में सफलता के समीप पहुंचे तथापि इस बात को भी स्वीकार करना ही होगा कि फर्जी गौरक्षको की एक भारी भरकम समानांतर भीड़ भी उपज गई जिसके तरफ प्रधानमंत्री और भैया जी जोशी ने अपनें व्यतव्य में संकेत किया है. अपने प्राण पण से गौरक्षा का कार्य करनें वाले अनेकों व्यक्तियों, समूहों, संस्थाओं व प्रकल्पों को इन फर्जी गोरखधंधे वालों ने प्रतिष्ठा की हानि पहुंचाई है. भोले भाले अनेकों गौसेवकों को भी संदेह की दृष्टि से देखें जानें का जो क्रम समाज में हाल ही में चल पड़ा वह अत्यंत घातक था. मैं स्वयं एक लम्बे समय से विश्व हिन्दू परिषद् का एक दायित्ववान कार्यकर्ता रहा हूँ व अपनें कार्यकाल में मैनें अनेकों अवसरों पर समाज बंधुओं के समक्ष फर्जी गौरक्षा के नाम होनें वाली चर्चा में स्वयं को निरुत्तर रहनें को मजबूर पाया है. मुझे स्मरण है कि किस प्रकार फर्जी गौरक्षको के नाम पर विहिप और बजरंग दल के सच्चे, समर्पित व लगनशील कार्यकर्ताओं को भी संदेह की दृष्टि झेलनें को मजबूर होना पड़ता था. आरएसएस और नरेंद्र मोदी के एक ही समय में गौरक्षा के नाम पर बड़े व्यक्तव्यों के आ जानें से गौसेवा के क्षेत्र में एक बड़ा परिवर्तन आनें के स्पष्ट संकेत मुझे दिखते हैं. अब गौरक्षा और अधिक संगठित, समर्पित, संयमित और सादगी भरे रूप में सामने आएगी. यह आवश्यक भी था क्योंकि गौरक्षा व गौसेवा जैसा एक परम आवश्यक, सामयिक, समीचीन, पवित्र व ईश्वरीय कार्य गोरखधंधे के गहरे तिलिस्म में फंस गया था. आज के समय में बिगड़ते पर्यावरण, ह्रास होती परम्परागत कृषि, रसायनों के बढ़ते प्रयोग आदि अनेकों ऐसे कोण है जहां से गौरक्षा की परम आवश्यकता प्रतीत होती

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