गहलोत समझें तो यह तमाचे से कम नहीं है

0
173

राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व राज्य सरकार के सामने एक ऐसा सवाल खड़ा कर दिया है, जो कि अगर गहलोत समझें तो किसी तमाचे से कम नहीं है।

उल्लेखनीय है कि विधानसभा में नरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर हो रही बहस के दौरान जब मुख्यमंत्री गहलोत ने वसुंधरा पर भी भ्रष्टाचार के आरोप होने की बात कह कर मामले को दबाना चाहा तो वसुंधरा ने बाहर आ कर एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया और लिखित बयान बांट कर उसमें ठोक कर कहा कि गहलोत पिछले तीन साल में उन पर एक भी आरोप साबित नहीं पाए हैं, फिर भी एक ही रट लगाए हुए हैं। वसुंधरा ने चुनौती दी कि या तो आरोप साबित करो और जो जी में आए सजा दो, वरना जनता से माफी मांगो। उन्होंने चाहे जितने आयोग बनाने तक की चुनौती भी दे दी।

सरकार ने भले ही उनकी बात को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया हो, मगर आरोप-प्रत्यारोप जब मुख्यमंत्री स्तर के दो दिग्गजों पर हो, तो यह एक गंभीर प्रश्न है। इसका सीधा सीधा संबंध भाजपा के सत्ता च्युत होने से है। कांग्रेस ने ऐसे ही आरोपों की दुहाई दे कर पिछला चुनाव जीता था। हालांकि ऐसा कहना ठीक नहीं होगा कि इन्हीं आरोपों के चलते ही वसुंधरा सत्ता से बाहर हुईं, क्योंकि सच्चाई ये है कि वे तो कुछ राजनीतिक समीकरणों के बिगडऩे की वजह से हाशिये पर आई थीं, वरना कांग्रेस सत्ता में आने का सपना ही देखती रहती।

खैर, कांग्रेस ने जब वसुंधरा पर आरोप लगाने के बाद सत्ता हासिल की तो यह उसकी जिम्मेदारी थी कि वह आरोपों को साबित करती। ऐसा करने के लिए उसने जो माथुर आयोग गठित किया, वह कानूनी पेचीदगियों के कारण हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट की ओर से नकार दिया गया। उसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए। इस पर वसुंधरा ने कई बार उन्हें चुनौती दी कि आरोप साबित करके दिखाओ। यहां तक कि कांग्रेसियों ने भी गहलोत से अपेक्षा की कि वे कुछ करें, वसुंधरा की बोलती बंद करें, वरना वे दुबारा सत्ता में आने की स्थिति में आ जाएंगी, मगर गहलोत कुछ भी नहीं कर पाए।

अब जब कि भाजपा सत्ता में लौटने को आतुर है, वसुंधरा का यह वार बहुत भारी है। असल में यह तमाचा ही है, अगर गहलोत इसे समझें तो, क्योंकि वसुंधरा न केवल आरोप साबित करने की चुनौती दे रही हैं, अपितु गहलोत पर जल महल प्रकरण, कल्पतरू कंपनी को फायदा देना, वेयर हाउस कॉर्पोरेशन को शुभम कंपनी को सौंपने और होटल मेरेडीयन को फायदा पहुंचाने संबंधी कई आरोप भी दोहरा रही हैं। यानि कि एक ओर तो गहलोत पर आरोप साबित करने की चुनौती है तो दूसरी ओर खुद को पाक साफ साबित करने की।

वसुंधरा के तेवरों से तो यही लगता है कि उनके हाथ गहलोत की कोई कमजोर नस लग गई है, इसी कारण इस प्रकार दहाड़ रही हैं। आम जनता में भी यही संदेश जा रहा है कि दाल में जरूर काला है, वरना वसुंधरा से कहीं अधिक साफ-सुथरी छवि के गहलोत चुप क्यों हैं? गहलोत को यह ख्याल में होगा कि केन्द्र में कांग्रेस के वापस सत्ता में आने की एक बड़ी वजह ये रही है कि जिस बोफोर्स सौदे में दलाली के आरोप लगने की वजह से कांग्रेस सत्ता च्युत हुई, उसकी प्याज के छिलकों की तरह जांच करने के बाद भी उसे साबित नहीं किया जा सका था। कहीं ऐसा न हो कि वसुंधरा केवल इसी कारण सत्ता के करीब न पहुंच जाएं, क्योंकि उन पर लगाए गए आरोप कांग्रेस सरकार साबित नहीं कर पाई।

Previous articleएक कदम जिंदगी की ओर
Next articleपालक पनीर भुजिया – Palak Paneer Bhurji Recipe
तेजवानी गिरधर
अजमेर निवासी लेखक तेजवानी गिरधर दैनिक भास्कर में सिटी चीफ सहित अनेक दैनिक समाचार पत्रों में संपादकीय प्रभारी व संपादक रहे हैं। राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रदेश सचिव व जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के अजमेर जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। हाल ही अजमेर के इतिहास पर उनका एक ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। वर्तमान में अपना स्थानीय न्यूज वेब पोर्टल संचालित करने के अतिरिक्त नियमित ब्लॉग लेखन भी कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here