पीढ़ियों से जमी धूल-झाड़ कर उतार दो

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swachh bharat abhiyan पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो l
हर परस्पर भेदभाव को, आज भूलकर बिसार दो Il

हो कहीं भी दूरियां-दस्तूरियाँ, उनको अब मिटा दो
चरैवेति-चरैवेति, स्वर चहुँओर- वह हमें भी सूना दो ll
आज जब तुम झाड़ू लगा रहे, हमें अपनें में मिला दो l
दो बातें हैं मेरें मन में, उन पर अब मन ध्यान दो ll
हर समरस, समभाव को मेरी धरती पर उतार दो l
मेरें भाव की दीनता को तुम आज अब बस उठा लो ll

पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो
हर परस्पर भेदभाव को, आज भूलकर बिसार दो ll

आज कह रहा, कई सदी बीत गई मन की नहीं कहीl
हो आये मंगल गृह, बस मेरें घर श्रीवर तुम आये नहीं ll
आज कुछ करो कि मैं अलग रहता हूँ ऐसा लगे नहीं l
आज कुछ करो कि श्रीवर मुझे अलग समझतें नहीं ll
मेरी व्यथा नहीं कही किसी युग ने, ऐसा तो था नहीं l
अपनें में रहा समाज, सुनी-समझी किसी पीढ़ी नें नहीं ll

पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो l
हर परस्पर भेदभाव को, आज भूलकर बिसार दो ll

इस समाज को जब तुम झाड़ रहें मुझे भी संग लेना l
हर विचार-दृष्टि में मैं रहूँ सम-एकरस भाव ऐसा देना ll
पीढ़ीगत वेदना निकल रही, इसे सह्रदय हो सुन लेना l
मेरें अंतस हर दर्द को तुम इस मन झाड़ू से बुहारना ll
बर्फ दबी हैं गलबहियां, मेरी तुम्हारी, उसे भी निकालना l
हम चढ़ें,संग सभी के,सब सीढियाँ, हल ऐसा निकालना ll

पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो l
हर परस्पर भेदभाव को, आज भूलकर बिसार दो ll
पीढ़ियों से जमी है धूल, आज झाड़ कर उतार दो

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