गज़ल ; पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई – सत्येंद्र गुप्ता

पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई

पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई

सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।

मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी

मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।

एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में

मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।

 

 

 

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