मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं।
कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं।
हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं।
बात का खुलासा होता भी तो कैसे
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं।
फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं।
यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं।
मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं।
पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया।
धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया।
एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया।
तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया।
लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया।
दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया।
चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया।
दोस्ती की कसौटी पे उतरो खरे,
जान देदेंगे हम दोस्ती के लिए.
_इकबाल हिन्दुस्तानी नजीबाबाद
आपको हार्दिक बधाई.