गीत ज़िन्दगी के हम गुनगुनाते रहे
छूटती रही ख़ुशियों की डोर हाथों से
वक़्त हमें, हम उसे आजमाते रहे
राहों में न सही हौसलों में दम है
बस क़दम दर क़दम हम उठाते रहे
आरज़ू थी जो दिल की रह गयी दिल में
हादसे दर हादसे कहर ढाते रहे
नादां थे, जो उनको मसीहा जाना
संगदिलों को हाले दिल सुनाते रहे
जो हटा हिजाब तो टूटा भरम सारा
सजदे में किसके हम सर झुकाते रह
भाई श्याम जी,
इन पंक्तियों पर तो सदके ही सदके । और संगदिलों का अर्थ जानने के बाद तो पढ़ने में और ही आनंद आया है कई कई बार पढ़ी है-
नादां थे, जो उनको मसीहा जाना
संगदिलों को हाले दिल सुनाते रहे
जो हटा हिजाब तो टूटा भरम सारा
सजदे में किसके हम सर झुकाते रहे— सारे रिश्ते नाते टटोल लिए इस तराजू में रख कर गिनती के मिले जिनके हिजाब नहीं था और सदके के लायक थे । वाह वाह , लगता है मुझसे भी ज्यादा बीती है आपके कलेजे पर – ऐसे ही लिखते रहें – अगली गजल में अब इस नादानी का क्या करें , पर कुछ रोशनी फेंकें, कर तो दीं तबाह भी हो गए,अब क्या करें ।
शुभकामनाएं
शुक्रिया भाई राजीव जी, आपके ये लफ्ज़ मेरे हौसलों में इजाफा कर रहे हैं. इनायत बनाएँ रखें. उक्त शेर में ‘संगदिलों’ शब्द का ही प्रयोग किया गया है. संगदिल यानि निर्दय, बेरहम, सख्तदिल या पत्थरदिल.
तंगदिल उसे कहेंगे जिसका दिल छोटा हो. तंगदिल यानि अनुदार, ओछी मानसिकता का व्यक्ति या यूँ कहें कि ऐसा व्यक्ति जो खुले दिमाग का ना हो. मेरी समझ से संगदिलों को हाले दिल सुनाते रहें ज्यादा सटीक बैठता है. शुक्रगुज़ार हूँ आपका कि आपने अपने ख्यालात से हमें अवगत कराया. आगे भी आपसे यही गुज़ारिश है.
आदरणीय श्याम जी,
बहुत अच्छी गजल, वाह ।वक्त हमें और हम उसे आजमाते रहे …
कृपया स्पष्ट करें कि –
नादां थे, जो उनको मसीहा जाना
संगदिलों को हाले दिल सुनाते रहे — में संग दिल है या तंगदिलों । कहीं कुछ खटक सा रहा है- ज्यादा तो मैं नहीं जानता .
सादर