घुन और खत-पतवार  

0
157

एक बार विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारी तेनालीराम से पूछा कि साल में कितने महीने होते हैं ? तेनाली ने कहा, “दो महाराज।”  राजा हैरान हो गये। इस पर वह बोला, “महाराज, वैसे तो महीने बारह हैं; पर यदि उनमें से सावन और भादों निकाल दें, तो फिर बाकी सब सूखा ही सूखा है। इसलिए असली महीने ये दो ही हैं।”

राजा और तेनाली की बात वे ही जानें; पर ये सच है कि वर्षा में मन सचमुच बाग-बाग हो जाता है। आजकल हरियाली के कारण इंसान ही नहीं, पशु-पक्षी भी मस्त हैं। मां की डांट के बावजूद बच्चे गंदे पानी में छप-छप कर रहे हैं। कोई कागज की नाव पर अपना नाम लिखकर पानी में छोड़ रहा है, तो कोई तालाब के किनारे ऐसे आनंदमग्न बैठा है, मानो मेंढकों के वार्षिक गायन समारोह का मुख्य अतिथि वही हो। युवक घूमते समय दायें-बायें देखकर ‘मेरी छतरी के नीचे आ जा..’ गुनगुनाते हैं, तो युवतियां ‘हाय-हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी..’ की धुन पर आहें भरती नजर आती हैं। क्या करें, ये दो महीने हैं ही ऐसे।

लेकिन इसके बावजूद शर्मा जी बहुत दुखी हैं। पिछले दिनों उनके साले के पौत्र का नामकरण था। उसके लिए वे गुजरात गये। वहां की उठापटक से उनका रक्तचाप दो सौ पार कर गया। फिर अपनी बहन की सास की तेरहवीं में शामिल होने के लिए उन्हें लखनऊ जाना पड़ा। वहां की हलचल से उनकी शुगर बढ़ गयी। इससे पहले बिहार के मियादी बुखार से वे त्रस्त थे ही। हफ्ते भर के प्रवास के बाद कल वे लौटे। मुझे उनकी बीमारी का पता लगा, तो मिलने चला गया। वे चादर से मुंह ढककर लेटे हुए थे। मुझे देखकर वे उठ गये।

– वर्मा, ये देश में क्या हो रहा है ? तुम्हारे अमित शाह जहां भी जाते हैं, वहीं दूसरे दलों से कुछ लोग आकर उनसे चिपक जाते हैं। ये आदमी है या चुंबक ?

– शर्मा जी, ‘बिलीव इट और नॉट’ नामक एक प्रसिद्ध किताब में ऐसे कई लोगों की चर्चा है, जिनमें कुछ विशेष गुण हैं। उससे शायद कुछ जानकारी मिल सकती है।

– मेरा दिल मत जलाओ वर्मा। तुम तो बस ये बताओ कि अमित शाह और मोदी चाहते क्या हैं ?

– शर्मा जी, मोदी राजा हैं और अमित शाह उनके सेनापति। मोदी ने पिछले चुनाव के समय ही कहा था कि वे भारत को कांग्रेस से मुक्त करना चाहते हैं। सो जनता ने उन्हें दिल्ली की गद्दी पर बैठा दिया।

– तो फिर अब वे फिर क्या चाहते हैं ?

– वही, जो उन्होंने कहा था। भारत को कांग्रेस से मुक्त करना। दिल्ली का ताज तो मिल गया; पर देश अभी कांग्रेस से मुक्त नहीं हुआ। अतः राजा बनने के बाद उन्होंने अमित शाह को इस अभियान में लगा दिया है।

– लेकिन उनके काम का तरीका गलत है। चुनाव में तो हार-जीत लगी रहती है; पर ये तो चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी तोड़फोड़ में लगे हैं। ये तो न्याय नहीं है।

– शर्मा जी, आप किसे न्याय पढ़ा रहे हैं ? इंदिरा गांधी ने विपक्ष को कुचलने के लिए 1975 में आपातकाल लगाकर पूरे देश को जेल बना दिया था। 1992 में कांग्रेस ने ही तीन राज्यों की भा.ज.पा. सरकारों को बिना वजह बर्खास्त किया था। जो काम गुजरात में बाघेला कर रहे हैं, उसकी नींव तो केशुभाई के समय में कांग्रेस ने ही डाली थी। सबसे अधिक राष्ट्रपति शासन लगाने का रिकार्ड भी कांग्रेस के ही नाम है।

– वो तो पुरानी बात हो गयी है।

– जी नहीं, पुरानी राजनीति की नींव पर ही नयी दीवार खड़ी होती है। दुष्यंत कुमार ने लिखा है –

कैसे मंजर सामने आने लगे हैं, गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं।

वो सलीबों के करीब आये तो हमको, कायदे कानून समझाने लगे हैं।।

– पर इसका वर्तमान राजनीति से क्या संबंध है।

– संबंध है शर्मा जी। कल तक आपके हाथ में ताकत थी, तो आपने जो चाहा वो किया। आज वो हाथ लुुंज-पुंज हो गया है, तो आपको दर्द हो रहा है।

– लेकिन वर्मा, मोदी देश को कांग्रेस से मुक्त करना चाहते हैं; पर शाह तो उ.प्र. में स.पा. और ब.स.पा. को भी तोड़ रहे हैं ?

– शर्मा जी, जैसे गेहूं के साथ घुन पिसती है; वैसे ही गेहूं के साथ खर-पतवार कटती भी है। जब देश कांग्रेस से मुक्त होने की ओर बढ़ रहा है, तो ऐसी खर-पतवार को भी तो कटना ही है। कुछ समझे ?

ये सुनकर शर्मा जी चुपचाप चादर से मुंह ढककर फिर लेट गये।

– विजय कुमार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here