गेम चैंजर साबित होगा सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण

एससी-एसटी एक्ट में बिना जाँच गिरफ्तारी पर उठे सवर्णों के विरोध और तीन राज्यों में हार के नतीजों के बाद बने विरोधी माहोल को हवा करते हुये मोदी सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने की घोषणा की है । इसके लिये सरकार संविधान में संशोधन प्रक्रिया को भी अपनायगी । निश्चित तौर पर यह मोदी सरकार का गेम चेंजर फैंसला लागू हो सकता है । सोमवार को केबीनेट की बैठक में यह फैंसला लिया गया । सरकार मंगल या बुधवार में सविंधान में संशोधन के लिये विधेयक पेश कर सकती है । मोदी सरकार का यह फैंसला 2019 चुनाव के लिये गेम चैंजर माना जा रहा है ।कुछ दिन पहले ही राममंदिर पर अदालत के फैंसलें का इंतजार करने और विधेयक द्वारा निर्माण पर ‘न’ की बात कहकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्टी समर्थकों और सहयोगियों को असहज कर दिया था । राफेल पर राहुल के आरोपों का भले ही बीजेपी नेता जोरदारी से जवाब दे रहे थे लेकिन राममंदिर पर वे अपने प्रधानमंत्री के बयान से अलग विचार रखते नजर आये । राममंदिर पर मोदी के इस तरह के निर्णय की उम्मीद कॉंग्रेस को भी नहीं थी । कॉंग्रेस ने इस पर सधा हुआ विरोध किया और ज्यादा ध्यान सरकार को राफेल में घेरने पर दिया । लेकिन बीजेपी समर्थकों में इससे उपजी मायूसी अब भी साफ नहीं हुई है । सवर्णों को आरक्षण देने का मोदी सरकार का यह फैंसला बीजेपी कार्यकर्ताओं में नई जान तो फूकेंगा ही साथ में नाराज सवर्णों को मनाने में भी यह शस्त्र काम आयेगा । हालांकि शोशल मीडिया पर विरोधी अभी भी इसे केवल चुनावी स्टंट में मोदी का नया जुमला बता रहे हैं लेकिन मोदी सरकार ने साफ किया है कि इसके लिये सविंधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 में संशोधन कर इसे लागू भी किया जायेगा । यह भी दीगर बात है कि बीजेपी समर्थकोंं में भले ही आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करने को लेकर माँग उठती रही हो लेकिन नरेन्द्र मोदी सहित बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने हमेशा आरक्षण का बचाव करने वाले बयान दिये हैं । इसके विपरीत गरीब सवर्णों को आरक्षण की मॉंग को बीजेपी ने गम्भीरता से लिया । एससी-एसटी एक्ट में बिना जाँच गिरफ्तारी की व्यवस्था वाले विधेयक के बाद सवर्ण समाज ने मोदी सरकार के सामने अपनी नाराजगी खुलकर रखी । केन्द्र सरकार द्वारा तबज्जों न दिये जाने पर यह नाराजरगी तीन राज्यों में विरोधी वोटों और नोटा में तब्दील हो गयी । जिसके कारण बीजेपी को तीन राज्यों में हार का मुँह देखना पडा । सवर्णों को आरक्षण देने की घोषणा कर मोदी सरकार ने सवर्णों के विरोध को थामने की कोशिश की है । जानकारों का मत है कि मोदी की यह कोशिश कामयाब भी होगी । 2019 के लोकसभा चुनावों में यह मोदी सरकार की नैया पार लगाने में मददगार होगा ।एससी-एसटी एक्ट में बिना जाँच गिरफ्तारी का मुखर विरोध करने वाले अखण्ड भारत मिशन के अध्यक्ष एवं भागवत प्रवक्ता देवकीनंदन महाराज ने भी मोदी सरकार की इस पहल का स्वागत किया है । सहारनपुर में व्यासपीठ से उन्होने कहा कि गरीबी जाति देखकर नहीं आती । आज देश के गरीबों में किसी एक वर्ग विशेष के नहीं बल्कि सभी वर्गां के लोग शामिल हैं । समाज में सभी वर्गों के लिये रोजगार, शिक्षा, और न्याय के समान अवसर की व्यवस्था होनी चाहिये । आज गरीब और किसानों के दर्द को समझने की सबसे ज्यादा आवश्यकता है । सवर्ण समाज द्वारा बहुत समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग की जा रही थी । जिसे मंजूरी देकर मोदी सरकार ने बडा कार्य किया है ।                                                  -जगदीश वर्मा ‘समन्दर’ 

2 COMMENTS

  1. क्या यह आरक्षण सचमुच गरीब सवर्णों के लिए है?अगर ऐसा है, तो इसमें वार्षिक आय की सीमा 8 लाख क्यों रखी गयी है? भारत में जिनकी सालाना आमदनी 2.5 लाख से ऊपर होती है, उसे इनकम टैक्स पे करना पड़ता है।क्या इनकम टैक्स पे करने वाला गरीब कहा जा सकता है?अगर यह विधेयक गरीबों के लिए है, तो आय सीमा 2.5 लाख से कम होनी चाहिए थी,मगर उससे मामला सुलझता नहीं, क्योंकि किसी गरीब ने तो नोटा का इस्तेमाल किया नहीं था।

    • आपका सवाल बिल्कुज जायज है । लेकिन मोटे तौर पर मोदी के इस तीर का असर सवर्णों की नाराजगी दूर करने पर होगा । बहुत बड़ी संख्या में लोगां की मॉंग जातिगत आरक्षण खत्म कर आर्थिक आरक्षण लागू करने को लेकर भी है । असल में आरक्षण को पूरी तरह खत्म करना इतना आसान नहीं है । कोई भी सरकार सीधे तौर पर इसे खत्म करने की दिशा में कार्य नहीं कर सकती । मोदी सरकार की इस घोषणा को इसकी शुरूआत भी माना जा सकता है । 8 लाख की सीमा तक का इस दायरे में लेने के पीछे मंशा साफ है कि अधिक से अधिक सवर्ण वोटरो का टारगेट किया गया है । बहुत सम्भव है कि चुनावों से पूर्व सरकार आयकर के दायरे को बढ़ाकर 5 लाख तक कर दे । सवर्ण आरक्षण की आय सीमा के संशोधन पर विचार किया जा सकता है । क्योंकि यह सवाल सही है ।

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