नर्मदातट पर बसा होशंगाबाद
एक पारदर्शी शीशे का शहर है
महत्वपूर्ण बात यह है कि
इसमें कुछ ऊंचे लोग बसते है
जो शहरवासियों को दुर्भावनाओ
षडयंत्रो ओर दुरभिसंधिओ के
काँच से निहार, पत्थर बने है ॥
आधे अधूरे गुमनाम से ये लोग
एक नहीं दो-दो पहचान रखते है
सत्ता के गलियारे ओर दरवाजे पर
गिरगिट से रंग बदलकर चलते है, ताकि
खुदके काले कारोबार को नजर न लगे ॥
इनके मुखारबिन्द पर नकली मुस्कुराहट
नवयोवना के योवन जैसी बिखरी होती है
क्रोध,घृणा से लबरेज इनके हाथ फेरना
एक बहाना है लोगों को सम्मोहित करने का
पीव इनके, उनके ओर भक्तों के बीच
अपना-अपना ख्याल रखो ,खेल चलता है ।
भूखे अजगर सा, इनका जीभ लपलपाना
पीव शिकार छोड़े नही, मित्र ये पहचानते है
होशंगाबाद पारदर्शी काँच का शहर है
शहरवासी समझ चुके, सबको जानते है
दस्ताने हाथो में पहन, लोग सुरक्षा आजमाते है
शीशा कही टूट न पाये, वे शीशमहल बचाते है ॥