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विरत करते घनेरें वन - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
कही कुछ था जो घट रहा था सतत, निरंतर। अहर्निश चल रहीं श्वासों में सतत उपजतें जा रहें थे कुछ घनेरें वन किन्तु जीवन की अविरलता में उन अनचाहें उपजें वनों को देखना उन वनों के निर्ब्रह्म रूप के साथ एकाकार हो जानें जैसा होता था। निरंजन रूपों में अवतरित…