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कण कण मे वही - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
आस्था नहीं तो, प्रभु कहीं भी हैं नहीं, आस्था हो तो, कण कण मे है वही! पत्थर को गढ़कर, एक शिल्पकार ने कभी, तीन मूर्तियाँ अद्भुत, बनाईं थीं कभी। एक मंदिर मे पुजी, एक राजा के थी कक्ष मे सजी, और एक, किसी संग्रहालय मे लगी। शिल्प तो एक सा…