बड़ी चुनौती है गांवों तक एलपीजी पहुंचाना

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lpgजगजीत शर्मा
पिछले महीने ही पेरिस में दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों, वैज्ञानिकों और स्वयंसेवी संस्थाओं ने ग्लोबल वॉर्मिंग और कार्बन उत्सर्जन अपनी चिंता जताई थी। पेरिस में हुए क्लाइमेट चेंज समिट में कई बड़े फैसले लिए गए। भारत में भी कहा गया कि ये फैसले भारत के पक्ष में हैं। भारत के प्रभाव के चलते ही विकसित देश कार्बन उत्सर्जन घटाने का फैसला लेने पर मजबूर हुए हैं। हालांकि भारत में होने वाला कार्बन उत्सर्जन विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। इसके बावजूद सच तो यही है कि भारत की ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली अधिसंख्य आबादी आज भी भोजन पकाने के लिए लकड़ी, उपलों और केरोसिन तेल पर ही निर्भर है। देश भर के गांवों में घूम आइए, मुश्किल से तीस-बत्तीस फीसदी घरों में खाना पकाने के लिए एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) सिलेंडर या सौर ऊर्जा से चलने वाले संयत्र मिलेंगे। कुछ गांवों में तो यह प्रतिशत बमुश्किल एक या दो ही मिलेगा। जो गांव शहरों के नजदीक हैं, उन गांवों का प्रतिशत भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन दूरदराज इलाकों में तो हालात बहुत बुरे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में गैस कंपनियों की पहुंच बिल्कुल शून्य है। शहरी क्षेत्रों में ही भारतीय गैस कंपनियां एलपीजी गैस सिलेंडर उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं, ऐसे में दूरदराज के गांवों में एलपीजी गैस सिलेंडरों का पहुंच पाना, किसी सपने से कम नहीं है। केंद्र सरकार ने जल्दी ही फैसला लिया है कि दस लाख रुपये से ज्यादा की सालाना आय वाले लोगों को एलपीजी सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी देना बंद कर दिया जाए। इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी इलाकों में रहने वाली गरीब जनता तक एलपीजी सिलेंडर पहुंचाना और यह सब्सिडी उनको मुहैय्या कराना है। यह योजना अगर सही ढंग से लागू की जा सके, तो वाकई कुछ लाख और परिवारों को गैस सिलेंडर मिल जाएंगे और भारत में होने वाला कार्बन उत्सर्जन थोड़ा और कम हो सकेगा।
एक आंकड़े के मुताबिक, ग्रामीण भारत में 67 से 70 फीसदी परिवार आज भी खाना पकाने के लिए लकडिय़ों और उपलों का उपयोग करते हैं। पिछले दो दशकों में सरकारी प्रयास और दूरसंचार के माध्यमों से प्रचार-प्रसार करने से 12 फीसदी लोगों ने ईंधन के रूप में लकडिय़ों का उपयोग करना बंद किया है, वरना दो दशक पहले तो यह आंकड़ा 80-85 फीसदी के बीच बैठता था। हां, इधर कुछ सालों में ग्रामीण इलाकों में एलपीजी के इस्तेमाल की प्रवृत्ति में 7.5 गुना की वृद्धि देखी गई है। वर्ष 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों में एलपीजी उपयोग का प्रतिशत जहां 2 फीसदी था, वहीं वर्ष 2011-12 तक आते-आते यह बढ़कर 15 फीसदी हो गया था।
देश में जो गांव शहरों से सटे हुए हैं, उन गांवों में भी ईंधन के रूप में एलपीजी का उपयोग करने की प्रवृत्ति कम देखी जा रही है। इसका कारण गांवों में रहने वाली अधिसंख्य आबादी का गरीब होना है। शहर से सटे और दूरदराज गांवों में रहने वाले गरीब एलपीजी अपनाना तो चाहते हैं, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते इसे अपना नहीं पा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, गांवों में लगभग 10-12 फीसदी लोग ईंधन के रूप में सिर्फ उपलों का उपयोग करके अपना काम चला रहे हैं। सरकार और एनजीओ के तमाम प्रोत्साहन के बावजूद उपलों का उपयोग करने वालों के प्रतिशत में 1993-94 के मुकाबले 11.5 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। वर्ष 193-94 में ईंधन के रूप में एलपीजी उपयोग करने वालों का प्रतिशत 1.9 था, वर्ष 1999-2000 में यह प्रतिशत बढ़कर 5.4 हुआ, वर्ष 2004-05 में यह आंकड़ा पहुंचा 8.6 पर। वर्ष 2009-10 में ग्रामीण इलाकों में एलपीजी का उपयोग करने वालों का आंकड़ा 11.5 प्रतिशत और वर्ष 2011-12 में 15 प्रतिशत तक पहुंचा। जिस तरह गांवों में रहने वाले धनाढ्य किसानों और ठीक-ठाक उपार्जन करने वालों में एलपीजी के उपयोग के प्रति रुचि बढ़ रही है, उसको देखते हुए पिछले दो-ढाई साल में इस आंकड़े के 30-32 फीसदी के आसपास पहुंच जाने का अनुमान है।
ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग पहले भी बहुत कम रहा है। वर्ष 1993-94 में ग्रामीण क्षेत्रों की 1.4 फीसदी, वर्ष 1999-2000 में 1.5 फीसदी, वर्ष 2004-05 और 2010-11 में 0.8-0.8 फीसदी और वर्ष 2012-13 में 1.1 फीसदी आबादी कोयले का उपयोग खाना बनाने में करती थी। वहीं, वर्ष 1993-94 में गांवों में लकड़ी का उपयोग करने वालों का प्रतिशत 78.2 था, जो वर्ष 2011-12 में 67.3 रह गया है। इस हिसाब से देखें, तो पिछले 14-15 वर्षों में  10.9 प्रतिशत लोगों ने ही लकड़ी का उपयोग छोड़ा है। हां, पिछले पंद्रह सालों में केरोसिन तेल का उपयोग करने वालों का भी आकंड़ा घटा है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 0.9 फीसदी लोग खाना बनाने में केरोसिन तेल का उपयोग करते हैं। 15 वर्ष पहले जहां शहरी इलाकों में 29.9 लोग ईंधन के रूप में लकड़ी का उपयोग करते थे, उनका प्रतिशत घटकर 14 पर पहुंच गया है। शहरों में तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का उपयोग करने वालों की आबादी 68.4 फीसदी है। अब भी लगभग 30 फीसदी लोगों तक एलपीजी का पहुंचना बाकी है। केंद्र और राज्य सरकारों ने हर व्यक्ति तक गैस सिलेंडर पहुंचाने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं। केंद्र सरकार का अमीरों की सब्सिडी रोकना भी, ऐसे ही प्रयास का एक हिस्सा है। कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए शहरी और ग्रामीण आबादी तक कार्बन रहित ईंधन पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है। हां, शहरी इलाकों में जिस तरह केरोसिन का उपयोग खाना बनाने में घट रहा है, वह सरकारी प्रयास की सफलता ही कही जाएगी। मोदी सरकार को भी इस दिशा में कुछ कठोर फैसले लेने होंगे। पहली बात तो एलपीजी सिलेंडरों की उपलब्धता बढ़ानी होगी क्योंकि कालाबाजारी, जमाखोरी तभी होती है, जब उपभोक्ताओं के मन में यह आशंका हो कि जरूरत के समय उन्हें ईंधन उपलब्ध नहीं होगा। जब तक उपभोक्ताओं के मन में आश्वस्ति नहीं होगी, तब तक कालाबाजारी, जमाखोरी से मुक्ति नहीं मिलेगी।

 

 

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