भारत की अंतरिक्ष में एक महान उपलब्धि : एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी

राकेश कुमार आर्य 

अमेरिका , रूस और चीन के बाद भारत में सैटेलाइट को मार गिराने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करके सारे संसार को दिखा दिया है कि भारत अपनी सुदृढ़ सुरक्षा व्यवस्था के उपाय करने के लिए कितना सजग है ? इस क्षमता को प्राप्त करने पर भारत को पाकिस्तान और चीन पर रणनीतिक बढ़त मिल सकती है। यद्यपि चीन के पास भारत से अधिक उन्नत तकनीक है , परंतु अंतरिक्ष में इस क्षमता को प्राप्त करने से हम चीन को चुनौती देने की स्थिति में आ गए हैं , जबकि पाकिस्तान तो इस क्षमता के आसपास भी नहीं दिख रहा । 
इस महान उपलब्धि के लिए देश के वैज्ञानिकों को तो बधाई दी ही जानी चाहिए साथ ही देश के सजग नेतृत्व को भी बधाई दी जानी चाहिए। कुछ लोगों ने इस बात को लेकर राजनीति की है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी को इस बात का कोई श्रेय नहीं जाता कि उन्होंने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में दुनिया का चौथा देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । जो लोग प्रधानमंत्री श्री मोदी की ऐसी आलोचना कर रहे हैं उनकी बात में कुछ सीमा तक सत्य हो सकता है। निश्चित रूप से इस सब के लिए बधाई के पात्र हमारे वैज्ञानिक हैं , परंतु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब तक राजनीतिक नेतृत्व की इच्छा शक्ति प्रबल ना हो, तब तक विज्ञान के क्षेत्र में लगे हमारे वैज्ञानिक कुछ भी नहीं कर पाएंगे । निष्पक्ष चिंतन करते हुए यदि विचार किया जाए तो पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब भारत को 1947 में ही विश्व का अग्रणी देश बनाने के लिए भारत के वैज्ञानिकों को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी तो उन्होंने ही यह स्पष्ट कर दिया था कि हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में बहुत दूर तक जाएंगे ।यदि उनकी वह प्रेरणा आज बधाई और अभिनंदन की पात्र है तो निष्पक्ष रूप से प्रधानमंत्री श्री मोदी का सजग नेतृत्व भी इसके लिए बधाई का पात्र है । विशेष रूप से तब जब डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष श्री सारस्वत यह स्वीकार कर कह रहे हैं कि यह क्षमता हमने 2012 में ही प्राप्त कर ली थी , परंतु तत्कालीन मनमोहन सरकार ने हमें आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी थी । 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात हमें इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अनुमति दी गई । कहने का अभिप्राय है कि विज्ञान और वैज्ञानिक तो हमारे पास 2014 से पूर्व भी थे , परंतु उस समय के नेतृत्व ने हमारे विज्ञान और वैज्ञानिकों के हाथ बांधकर रख दिए थे। श्री मोदी ने अपने प्रधानमंत्री बनते ही विज्ञान और वैज्ञानिक दोनों से बोल दिया कि तुम चाहे जितनी दूर तक जाना है, जाइए । हम आपके साथ हैं । यही वह निर्णय लेने की प्रधानमंत्री श्री मोदी की अद्भुत क्षमता है जिसके लिए उन्हें बधाई दी ही जानी चाहिए ।अतः प्रधानमंत्री श्री मोदी का सजग नेतृत्व भी इस महान उपलब्धि के लिए बधाई का पात्र है । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब देश की संसद पर हमला हुआ था तो उस समय हमारा तत्कालीन नेतृत्व यूएन के सामने जाकर के याचक की मुद्रा में खड़ा हो गया था और कह रहा था कि हमारे साथ इतनी बड़ी घटना हो गई है, हमको बचाओ । तब यूएन ने हमारे नेतृत्व से बोल दिया था कि आराम से बैठिए , धैर्य रखिए , सब कुछ ठीक हो जाएगा , और हम आराम से धैर्यपूर्वक घर बैठ गए । कुछ भी नहीं हुआ । 
वह दिन भी हमको याद करना चाहिए जब देश के एक विदेशमंत्री को एक आतंकवादी को मुक्त करने के लिए देश से कंधार ले जाना पड़ा था । उन अपमानजनक क्षणों में विमान में हमारे तत्कालीन विदेशमंत्री को क्या क्या नहीं सुनना पड़ा था और उस समय देश को कितनी अपमानजनक स्थिति से गुजरना पड़ा था ? – यह सब जानते हैं । जबकि 2019 का भारत वह भारत है जिसके एक वायु सैनिक अभिनंदन को छोड़ने के लिए पूरे पाकिस्तान को 24 घंटे में ही झुकना पड़ गया , और उसके प्रधानमंत्री को वहां की संसद के भीतर स्वयं यह घोषणा करनी पड़ी कि हम भारत के इस वायुवीर को बिना शर्त छोड़ने के लिए तैयार हैं , साथ ही हम भारत से शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं। पाक प्रधानमंत्री की इस घोषणा में संसार के नेताओं के लिए स्पष्ट याचना थी कि संसार के नेताओ ! हम जैसे आप चाहेंगे वैसे करेंगे , पर हमें भारत से बचा लो । इतना ही नहीं , भारत ने जब पुलवामा के प्रतिशोध में पाकिस्तान के विरुद्ध कार्यवाही की तो उसकी सूचना भी संसारवासियों को यह कहकर अमेरिका के राष्ट्रपति ने ही दी थी कि — ‘भारत कुछ बड़ा करने वाला है ।’ अमेरिका के राष्ट्रपति के उस कहने का अभिप्राय यह था कि अब भारत हमारी नहीं मानेगा और भारत अपने आपको अब संप्रभु राष्ट्र मानता है । अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं लेता है, और वह कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है । उसका तेजस्वी राष्ट्रवाद जागृत हो चुका है और अब वह सत्यमेव जयते में विश्वास रखने के उपरांत भी शस्त्रमेव जयते की बात करने लगा है । यह नेतृत्व का प्रभाव होता है , जब आपको संसार की सबसे बड़ी शक्ति यह कहने लगे कि — ‘भारत अब कुछ बड़ा करने वाला है । ‘ अतः उचित सीमा तक भारत के नेतृत्व को भी इस महान उपलब्धि के लिए बधाई दी ही जानी चाहिए। 
स्वतंत्र भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु शक्ति क्षेत्र के वैज्ञानिक स्वर्गीय डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा , अंतरिक्ष क्षेत्र में डॉक्टर विक्रम साराभाई का चयन किया था । आज उनका पुरुषार्थ भी सर चढ़कर बोला है । वे दोनों महान वैज्ञानिक भी हमारी इस महान उपलब्धि के लिए बधाई के पात्र हैं , जो नींव की ईंट बने और नींव की उसी ईंट पर आज हम भव्य भवन का निर्माण कर रहे हैं।
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी अमेरिका व रूस के बीच के शीतयुद्ध के समय से है । यह एक ऐसा हथियार है जिन्हें मुख्य रूप से अंतरिक्ष में शत्रु देशों की सेटेलाइट को नष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार के हथियार विकसित करने का कार्य अमेरिका ने 1950 में आरम्भ किया था । 1960 में रूस (उस समय का सोवियत यूनियन) ने भी इस पर काम करना आरंभ कर दिया था। शीतयुद्ध के समय अमेरिका और रूस ने इस प्रकार के हथियार बनाए , परंतु उत्पादन अधिक बड़े पैमाने पर नहीं किया गया । 
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन ने जब 2007 में एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण आरंभ किया , तब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर ने कहा था कि चीन इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है और भविष्य में अंतरिक्ष ही हाई मिलिट्री ग्राउंड होगा। उसके पश्चात 2012 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन अर्थात डीआरडीओ के तत्कालीन प्रमुख वीके सारस्वत ने कहा था कि लो अर्थ आर्बिट में शत्रु के उपग्रहों को मार गिराने के उद्देश्य से एंटी सैटेलाइट हथियार बनाने के लिए भारत के पास पूरी तैयारी है । भारत में पिछले 4- 5 वर्ष से इस तरह की टेक्नोलॉजी पर तेजी से कार्य आरंभ हुआ । अन्ततः 27 मार्च 2019 को भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल की तकनीक प्राप्त कर ली । भारत के पास इस प्रकार के परीक्षण के 2 उपाय थे । वह या तो फ्लाई बाय करता अर्थात लक्ष्य से कुछ दूरी से एंटी सैटेलाइट मिसाइल गुजार सकता था , या फिर किसी सैटेलाइट को जाम कर सकता था । दोनों ही उपाय सॉफ्ट स्किल्स कहलाते । पर भारत ने सबसे कठिन रास्ता चुना ।
आज जब भारत तेजी से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में अपना स्थान विश्व स्तर पर बनाता जा रहा है तो इस उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए उतने ही बड़े स्तर पर शत्रु भी बढ़ते जा रहे हैं । जो देश आगे से हम से हाथ मिलाने का नाटक करते हैं , उन्हीं के दिलों में हमारे लिए घृणा का अंबार लगा होता है । ऐसे में हमें बहुत सावधानीपूर्वक आगे बढ़ना होगा। हमारी विकास की गति भी नहीं रुके और हम युद्ध के लिए आक्रामक देश की छवि बनाने से भी अपने आप को बचाएं । ऐसी संतुलित नीतियों को अपनाकर ही देश वास्तव में विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है । यह प्रसन्नता का विषय है कि पिछले चार-पांच वर्ष में भारत का नेतृत्व इस दिशा में सजग है । वह हाथ में लाठी भी रखना चाहता है और अपनी सत्यमेव जयते की परंपरा पर चलते रहना भी चाहता है । वास्तव में इस समय सत्यमेव जयते और शस्त्रमेव जयते – दोनों का बहुत सुंदर समन्वय बन गया है । यही भारत की परंपरा है। भारत आज इसी परंपरा पर आगे बढ़ते हुए कार्य कर रहा है । इसी पर हमें आगे काम करना चाहिए। वीर सावरकर जी ने यह मंत्र दिया था कि सत्यमेव जयते से काम नहीं चलेगा , जब तक शस्त्रमेव जयते उसके साथ नहीं होगा । आज उन्हीं के सपने को साकार करते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी यदि शस्त्रमेव जयते में विश्वास रखते हुए देश को तेजस्वी राष्ट्रवाद के रास्ते पर आगे बढ़ा रहे हैं तो इसके लिए हम उनका भी अभिनंदन करते हैं। 
माना कि सीमा पर जवान लड़ते हैं , पर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सीमा पर लड़ने वाले जवान के ऊपर उसके अपने अधिकारी खड़े होते हैं और उन अधिकारियों के ऊपर देश का नेतृत्व खड़ा होता है । यदि देश का नेतृत्व दुर्बल हाथों में हो और वहां से कांपती हुई आवाज में अपने अधिकारियों से यह कह दिया जाए कि चुप रहो , शत्रु जो कुछ कर रहा है, करने दो ,तो यह सत्य है कि हमारे सैनिकों के हाथ से हथियार अपने आप नीचे गिर जाएंगे । तब वह सैनिक सैनिक होकर भी भेड़िए के सामने मेमना बना खड़ा होगा । ऐसी मूर्खताएं हमने अतीत में देखी भी हैं , जब हमारे दुर्बल नेतृत्व के कारण हमारे वीर सैनिक मेमना मात्र बनकर खड़े हो गए और शत्रुरूपी भेड़िया ने उनके सर कलम कर लिए । इस प्रकार सैनिक के हाथों से निकलने वाली गोलियों की दनदनाहट में हमारा तेजस्वी नेतृत्व भी झांकता होता है जो शेर की सी हुंकार भरते हुए पीछे खड़ा होता है , और बस आज के भारत के पास यही सबसे बड़ी ताकत है कि उसके पास तेजस्वी राष्ट्रवाद का नायक एक योद्धा उपलब्ध है।

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