संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश में राजनीति का एक नया टे्रंड चल निकला है। अब कहीं बड़ी-बड़ी जन सभाएं नहीं दिखतीं। सुविधा भोगी नेता जनता को लुभाने के लिए यात्राओं का सहारा लेने लगे हैं। वातानुकूलित और हाईटेक रथों पर सवार विभिन्न राजनैतिक दलों के शीर्ष नेता एक ही दिन में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पूरी कर लेते हैं। ऐसे रथों वह सभी सुविधाएं मौजूद होती हैं जो किसी पांच सितारा होटल में होती हैं। न धूल की चिंता, न गर्मी से परेशानी। इस बात की फिक्र भी नहीं की जनसभा फ्लाप हो गई तो मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगें। यहां तक कि विशाल जनसभा करने में माहिर बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी पिछले कई महीनों से प्रदेश में कोई जनसभा नहीं की है। जबकि चुनावी मौसम शबाब पर है। जनसभाएं की असफलता से परेशान रहने वाले नेताओं के लिए रथ यात्रा जनता से संवाद करने का आसान और सहज तरीका हो सकता है, लेकिन आम जनता का इससे कोई भला होता होगा,यह कहना मुश्किल है। पहले नेता आकर घंटों मंच पर बैठे रहते थे। इस दौरान जनता से संवाद चलता रहता था, लेकिन अब रथ किसी ठहराव पर रूकता है और एक मंच ऊपर आ जाता है। उसी में नेतागण विराजमान रहते हैं। अपनी बात कही और चलते बने। यह ट्रेंड उत्तर प्रदेश में कुछ तेजी से ही चल निकला है। खासकर भाजपा इस मामले में कुछ ज्यादा ही आतुर है। इसकी वजह है भाजपा की केन्द्र की सत्ता पर काबिज होने की तैयारी,जिसका रास्ता उसके लिए तो उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है।
उत्तर भारत में भाजपा को मजबूती मिलना मतलब केन्द्र में उसका ताकतवर होना।आज की तारीख में कांग्रेस कुछ राज्यों को छोड़कर भले ही उत्तर भारत में भाजपा के सामने उन्नीस पड़ रही हो, लेकिन उसकी भरपाई वह दक्षिण और पूरब के राज्यों से कर लेती है।वहीं भाजपा की बदकिस्मती यह है कि उसका परचम पूरे देश में कभी नहीं फहर पाया।उसके ऊपर उत्तर भारत की पार्टी होने का ठप्पा भी अक्सर लगता रहता था,लेकिन कर्नाटक (दक्षिण) और गुजरात (पश्चिम) में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनने से यह दाग थोड़ा धुल गया। भाजपा के पूरे देश में जड़े नहीं मजबूत कर पाने के कारण उसे कांग्रेस के मुकाबले केन्द्र में सरकार बनाने में ज्यादा दिक्कत आती है।यही वजह है भाजपा को दक्षिण और पूरब के राज्यों में अन्य दलों से समझौता करना पड़ता है। इसके लिए कई बार उसे अपनी विचारधारा भी त्यागना पड़ जाती है।यही वजह है उत्तर प्रदेश और बिहार में जब चुनाव होता है और उसमें भी खासकर उत्तर प्रदेश में तो भाजपा ज्यादा आक्रमक हो जाती है।अगले साल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में चुनाव होना है। भाजपा ने अपना सारा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केन्द्रित कर दिया है। उत्तर प्रदेश में दिग्गज नेताओं की टीम उतार दी गई है। यात्राओं के द्वारा भी ‘व्यवस्था परिवर्तन’ की बात की जा रही है। पूरे देश को मथने के लिए ‘जन चेतना यात्रा’ पर निकले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और उन्हीं की तर्ज पर उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनाथ और कलराज का रथ अपनी यात्रा के दौरान करीब 370 विधान सभा क्षेत्रों से गुजरेगा। भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा से ‘जन स्वाभिमान यात्रा’ पर निकले दिग्गज नेता राजनाथ सिंह और बाबा भोले नाथ की नगरी काशी से यात्रा पर निकले कलराज मिश्र को उम्मीद है कि इन यात्राओं से प्रदेश की राजनीति का पलड़ा भाजपा की तरफ झुक सकता है। ऐसा भाजपा नेता पूर्व की यात्राओं के आधार पर कह रहे हैं। तीनों की यात्राएं वैसे तो करीब-करीब एक जैसी हैं,लेकिन इसके बाद भी इसमें एक बहुत बड़ा अंतर है। अबकी आडवाणी अयोध्या से बचते रहे, जबकि राजनाथ और कलराज की यात्राएं अयोध्या में संयुक्त रूप से 17 नवंबर को सम्पन्न होंगी। भाजपा की यात्राओं से इतर सपा का भी क्रांति रथ काफी समय से दौड़ रहा है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव इस रथ पर सवार हैं।अखिलेश इस यात्रा के जरिए यह साबित करने में लगे हैं कि अब वह परिपक्त हो गए हैं और उनका अपना जनाधार है। उन्हें परिवारवाद से जोड़कर न देखा जाए। उधर कांग्रेस के युवराज पद यात्राओं, गांवों में चौपाल लगाने और दलितों की रसोई में खाना खाने के साथ मंदिर-मस्जिदों में माथा टेककर कांग्रेस की नैया पार कराने के चक्कर में लगे हैं। राहुल की देखा-देखी कांग्रेस के दिग्गज नेता भी पद यात्रा पर निकल पड़े हैं।
बात भाजपा की कि जाए तो आडवाणी का रथ उत्तर प्रदेश से गुजर चुका है। अपने पीछे वह और उनकी टीम कई सवाल भी खड़े कर गई है ,जैसे की आडवाणी का यह कहना, ‘क्यों कहूं पीएम का दावेदार नहीं।’ यह बयान काफी सुर्खियों में रहा। बहरहाल, उत्तर प्रदेश से गुजरने से पहले आडवाणी ने वाराणसी के भारत माता मंदिर में डॉ मुरली मनोहर जोशी के साथ मिलकर राज्यसभा सदस्य कलराज मिश्र को उनकी जनस्वाभिमान यात्रा की सफलता के लिए आशीर्वाद दिया।इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह यात्रा उनकी या भाजपा की नहीं बल्कि घोर भ्रष्टाचार पर सरकार की चुप्पी से निराश जनता को मायूसी से उबारकर उसमें नया विश्वास पैदा करने की यात्रा है। मंदिरों के शहर वाराणसी पहुंचे आडवाणी ने कहा ”2जी स्पेक्ट्रम आवंटन और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए घोटालों से देश का आत्मविश्वास हिल गया है। जनता इस बात से चिंतित है कि सरकार इतने भयंकर घोटालों पर कुछ कर क्यों नहीं रही है।आडवाणी की यात्रा में जबर्दस्त भीड़ ने भाजपा की उम्मीदों के पंख लगा दिए। आडवाणी ने कहा ”भ्रष्टाचार ही महंगाई का प्रमुख कारण है। हम विदेश में जमा काला धन वापस लाएंगे और देश के छह लाख गांवों को बिजली, पानी, सड़क और स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं से युक्त किया जाएगा। जो देश आज निर्धन लगता है, वह धनवान हो जाएगा। हमें यह काम करके दिखाना है।”
13 अक्टूबर को धूम-धड़ाके के साथ जनस्वाभिमान यात्रा पर निकले कलराज के लिए यात्रा की घड़ी शुभ नहीं रही।कलराज मिश्र के बीमार होने के कारण यात्रा के पहिएं 23 किलोमीटर के बाद थम गए। बाद में उनकी यात्रा मुगलसराय स्थित काली मंदिर से शुरू हुई। बहरहाल, बीमारी से पूर्व कलराज ने अपने संबोधन में बसपा सरकार को खूब कोसा और कांग्रेस की केन्द्र सरकार के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी।वहीं मथुरा से जनस्वाभिमान यात्रा पर निकले राजनाथ की हौसला अफजाई के लिए नेता विपक्ष सुषमा स्वराज, विनय कटियार, राजग के संयोजक शरद यादव आदि नेता मौजूद थे। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर सूबे के मतदाता भगवा पार्टी को फिर से सत्ता में लाते हैं तो बसपा राज के सभी घोटालों की जांच कराई जाएगी। यहां का युवा सपा व बसपा के दागी नेताओं को विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के रूप में नहीं स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार अब एक अहम मुद्दा बन चुका है। यूपी के लिए ही नहीं यह पूरे देश के लिए गंभीर बात है। राजग की सरकार के छह वर्ष के कार्यकाल में ऐसा कोई घोटाला सामने नहीं किया आया जिस प्रकार के इन दिनों केन्द्र व प्रदेश की सरकारों के समय में सामने आ रहे हैं।
भाजपा उपाध्यक्ष कलराज मिश्र की वाराणसी में और पूर्व पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के नेतृत्व में मथुरा से शुरू होने वाली ‘जन स्वाभिमान’ यात्राएं यात्राओं का पहला चरण 13 से 22 अक्तूबर के बाद दूसरा चरण नौ से 17 नवम्बर तक चलेगा। ये यात्राएं 17 नवम्बर को अयोध्या में ‘विजय संकल्प समागम’ के साथ सम्पन्न होंगी। सिंह की अगुवाई वाली यात्रा 34 जिलों में 216 विधानसभा क्षेत्रों के छह करोड़ 33 लाख 11 हजार मतदाताओं से सीधा संवाद करेगी जबकि मिश्र के नेतृत्व वाली यात्रा 27 जिलों के 153 विधानसभा क्षेत्रों के चार करोड़ 46 लाख नौ हजार 711 मतदाताओं तक पहुंचेगी,लेकिन इन दिग्गजों की यात्राएं तमाम कोशिशों के बाद भी गुटबाजी से पूरी तरह दूर नहीं रह पाईं। यात्राओं को लेकर पार्टी तीन खेमों में बंटती नजर आई। कलराज और राजनाथ की यात्रा को जहां प्रदेश भाजपा से सहयोग नहीं मिला,वहीं गुटबाजी के चलते आडवाणी की रथयात्रा यूपी में काफी कम समय ही गुजार पाई।
भाजपा के दिग्गज जन चेतना और जन स्वाभिमान यात्रा पर हैं तो कांग्रेस इसे साम्प्रदायिकता बढ़ाने वाला करार देने में लगी है। इसी क्रम में पदयात्रा पर रामपुर पधारे कांग्रेस के महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस को क्लीन चिट देते हुए देश में आतंकवाद लाने के लिए आडवाणी को जिम्मेदार ठहरा दिया। उनके सुर में सुर मिलाते हुए सांसद राजबब्बर ,केन्द्रीय राज्यमंत्री हरिश रावत ने भी भाजपा और बसपा पर जम कर निशाना साधा, लेकिन सपा पर मुंह खोलने से यह नेता बचते रहे और राहुल का गुणगान करने का धर्म निभाने में किसी नेता ने कोई कमी नहीं छोड़ी।
बात समाजवादी पार्टी की यात्रा की कि जाए तो अखिलेश यादव करीब महीने भर से क्रांतिरथ पर सवार होकर सपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं।पिछले विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी,इस लिए उसे लगता है कि उसकी दावेदारी इस बार सबसे मजबूत है। क्रांति रथ पर सवार अखिलेश वह सभी टोटके अपना रहे हैं जो वोट बैंक की राजनीति के लिए जरूरी है।वह दलितों,पिछड़ों,मुसलमानों सभी पर डोरे डाल रहे हैं। माया सरकार और खासकर मायावती के तानाशाही रवैये की कहानी गांव-गांव, गली-गली पहुंचाई जा रही है।अबकी बार युवा मतदाताओं का प्रतिशत काफी बढ़ा है,इसलिए युवाओं को साथ लाने के लिए अखिलेश को युवा चेहरे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।सपा के लिए संतोष की बात है कि अबकी उसके साथ जो भी भीड़ दिखाई दे रही है,वह खालिस है और किसी फिल्मी चेहरे को देखने के लिए नहीं जुट रही है।
जनसभाओं के मुकाबले यात्राओं को महत्व देने वाले उक्त नेतागणों को नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी रथ यात्राओं से राजनीति का भला हो जाता और पार्टी को जनाधार मिल जाता होता तो यात्राओं का दौर काफी पहले शुरू हो गया होता, लेकिन तब न जय प्रकाश नारायण को कोई पहचान पाता और डा. राम मनोहर लोहिया, इंदिरा गांधी, चन्द्रशेखर ,अटल बिहारी वाजपेयी, चरण सिंह, वीर बहादुर सिंह, मुलायम सिंह जैसे तमाम नेताओं को कोई लोहा मान पाता। जिनकी एक आवाज पर कभी जनता हुंकार भरने लगती थी।अब तो जन सभाएं करने का किसी में साहस ही नहीं रह गया है। जन सभाएं होती भी हैं तो उनका आकार नुक्कड़ सभा से अधिक नहीं होता।
बहरहाल, जनता के बीच ऐसी यात्राओं और अन्ना जैसे आंदोलनों की स्वत: स्फूर्ति कम मौकों पर दिखती है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनभावनाओं के मौजूदा प्रबल उभार की तुलना आपातकाल के दौरान उठे जनाक्रोश से की जा सकती है।यह यात्राएं परिवर्तन का माध्यम बन सकती है, बशर्ते इसे श्रेय लेने की होड़ और राजनीतिक दुरुपयोग की पारंपरिक प्रवृत्ति से मुक्त रखते एक राष्ट्रीय संकल्प के रूप में लिया जाए। मौजूदा आंदोलन और यात्राएं जन मानस पर गहरा प्रभाव डाल रही है और लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का संकल्प ले रहे हैं। इसका प्रभाव यह हुआ कि मायावती जैसी राजनेता भ्रष्ट और अपराधी तत्वों को मंत्रिमंडल से निकालने जैसी कार्रवाई करने को मजबूर हो गई।इसी तरह केंद्र सरकार के कई पूर्व मंत्री न सिर्फ हटाए गए हैं बल्कि जेल में पहुँचा दिए गए हैं, भले ही उसके पीछे अदालती दबाव जैसे अन्य कारण भी हैं। कुछ राज्यों में भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात मुख्यमंत्री बदले हैं। विभिन्न राज्यों में जन सेवा गारंटी अधिनियमों को लागू किए जाने की प्रक्रिया तेज हुई है जो निचले स्तर के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की उम्मीद जगाती है। कई राज्यों में लोकायुक्त की संस्था मजबूत हुई है और एक राज्य में तो उसकी वजह से सत्ता-परिवर्तन भी हो चुका है। चुनाव प्रक्रिया में गंभीर अपराधों वाले व्यक्तियों का प्रवेश रोकने के बारे में केंद्रीय स्तर पर गंभीर मंथन शुरू हुआ है और देर-सबेर इस पर अमल भी कर दिया जाएगा। जन-लोकपाल विधेयक को लेकर भी केंद्र सरकार रक्षात्मक स्थिति में आ चुकी है। सबसे बड़ी बात, जनता को अपनी शक्ति का अहसास हो गया है।